देश और परिवार को याद कर मिला हौसला: पी गुरूराजा

''For my family and country'': P Gururaja wins India''s first medal at 2018 Commonwealth Games
[email protected] । Apr 5 2018 5:28PM

राष्ट्रमंडल खेलों में देश के लिए पहला पदक जीतने वाले भारोत्तोलक पी गुरूराजा ने कहा कि पहले दो प्रयास में विफल होने के बाद उन्होंने देश और परिवार को याद किया जिससे उन्हें भार उठाने का हौसला दिया।

गोल्ड कोस्ट। राष्ट्रमंडल खेलों में देश के लिए पहला पदक जीतने वाले भारोत्तोलक पी गुरूराजा ने कहा कि पहले दो प्रयास में विफल होने के बाद उन्होंने देश और परिवार को याद किया जिससे उन्हें भार उठाने का हौसला दिया। कर्नाटक के छोटे से गांव से आने वाले 25 साल के इस खिलाड़ी ने प्रतिस्पर्धा के पहले ही दिन पुरूषों के 56 किलो वर्ग में रजत पदक जीतकर 21 राष्ट्रमंडल खेलों में भारत की झोली में पहला पदक डाला ।क्लीन और जर्क के पहले दो प्रयास में विफल होने वाले गुरूराजा ने कहा, ‘‘जब मैं पहले दो प्रयास में विफल रहा था तब मेरे कोच ने मुझे समझाया कि मेरे लिए जीवन का काफी कुछ इस प्रयास पर निर्भर करता है। मैंने अपने परिवार और देश को याद किया। राष्ट्रमंडल खेलों में पदार्पण कर रहे गुरूराजा ने अपना सर्वश्रेष्ठ व्यक्तिगत प्रदर्शन दोहराते हुए 249 किलो (111 और 138) वजन उठाया। गुरूराजा स्नैच के बाद तीसरे स्थान पर थे जिन्होंने दो प्रयास में 111 किलो वजन उठाया। क्लीन और जर्क में पहले दो प्रयास में वह नाकाम रहे लेकिन आखिरी प्रयास में 138 किलो वजन उठाकर रजत सुनिश्चित किया। उन्होनें कहा, ‘‘2010 में जब मैंने भारोत्तोलन में किस्मत आजमाना शुरू किया था, प्रशिक्षण के पहले महीने में मैं काफी हताश था क्योंकि मुझे यह भी पता नहीं था कि वजन कैसे उठाया जाए यह मेरे लिए बहुत भारी था।’’ ट्रक ड्राइवर के बेटे गुरूराजा पहलवान बनना चाहते थे लेकिन कोच की पैनी नजरों ने उनमें भारोत्तोलन की प्रतिभा देखी और इस खेल में पदार्पण कराया।

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे याद हैं, जब मैंने सुशील कुमार को 2010 राष्ट्रमंडल खेलों में देखा था, तब मैने भारोत्तोलन शुरू किया था। जब मैंने उन्हें देखा था तब मैं पहलवान बनना चाहता था। तभी मैं अपने कोच राजेन्द्र प्रसाद से मिला जिन्होंने मुझे भारोत्तोलन सिखायाा।’’ भारतीय वायुसेना के निचली श्रेणी के कर्मचारी गुरूराजा ने देश के पिछड़े क्षेत्रों में आने वाली जीवन की सारी समस्याओं को देखा है। उन्होंने आठ भाई-बहन के परिवार का भरणपोषण करने वाले अपने ट्रक चालक पिता को काफी मेहनत करते हुए देखा है। उन्होंने कहा, ‘‘जब पहले दो प्रयास में मै विफल हो गया तो मेरे दिमाग में मेरा परिवार था। वे (परिवार के सदस्य) मेरे लिये काफी मायने रखते है। जब उनसे पूछा गया कि क्या वह अभी भी कुश्ती में हाथ आजमाना चाहेंगे तो वह खिलखिला कर हंस पड़े। उन्होंने कहा, ‘‘मैं अभी भी कुश्ती का लुत्फ उठाता हूं। मुझे अभी भी उस खेल से काफी लगाव है। मैं ओलंपिक कि तैयारी करूंगा, राष्ट्रीय महासंघ और मेरे सफर में मेरा साथ देने वालों से मुझे काफी मदद मिली है। मेरे सभी कोचों ने करियर को संवारा है।’’

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