उम्मीद है कि अब नौकायन को सम्मान और तवज्जो मिलेगी: कोच बेग

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[email protected] । Aug 24 2018 3:32PM

पिछले 18 साल से नौकायन में चैम्पियन तैयार कर रहे मुख्य कोच इस्माइल बेग को मलाल है कि अच्छे प्रदर्शन के बावजूद इस खेल को और खिलाड़ियों को अभी तक भारत में वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार हैं।

नयी दिल्ली। पिछले 18 साल से नौकायन में चैम्पियन तैयार कर रहे मुख्य कोच इस्माइल बेग को मलाल है कि अच्छे प्रदर्शन के बावजूद इस खेल को और खिलाड़ियों को अभी तक भारत में वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार हैं। इंडोनेशिया में चल रहे 18वें एशियाई खेलों में भारतीय रोअर्स ने चौकड़ी स्कल्स में ऐतिहासिक स्वर्ण और एकल स्कल्स तथा युगल स्कल्स में कांस्य पदक जीते। इससे पहले 2010 में ग्वांग्झू एशियाई खेलों में बजरंग लाल ताखड़ ने पीला तमगा जीतकर नौकायन को सुर्खियों में जगह दिलाई थी।

द्रोणाचार्य पुरस्कार प्राप्त बेग ने पालेमबांग से भाषा से फोन पर बातचीत में कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि इस प्रदर्शन के बाद हमारे खेल को भी अखबारों में जगह मिलेगी। हमें बहुत निराशा होती है जब साधारण परिवारों से आये हमारे खिलाड़ी इतनी मेहनत करके पदक जीतते हैं और उन्हें वह सम्मान या तवज्जो नहीं मिलती जो बाकी खेलों को मिलती है। पदक तो पदक ही होता है।’

भारत में 2010 से नौकायन खिलाड़ियों को तैयार कर रहे बेग ने कहा कि पदक जीतने के थोड़े समय बाद लोग नौकायन को भूल जाते हैं। उन्होंने कहा, ‘2010 में भी ताखड़ के पदक के बाद कुछ दिन नौकायन पर ध्यान रहा लेकिन बाद में लोग भूल गए। यह बहुत निराशाजनक है।’ नौकायन खिलाड़ी अक्सर देश में प्रशिक्षण के लिये अच्छे केंद्रों के अभाव की शिकायत करते हैं। इस बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, ‘मैं यह तो नहीं कहूंगा कि हमारे पास सर्वश्रेष्ठ सुविधायें हैं। हैदराबाद, पुणे या भोपाल तक ही केंद्र सिमटे हैं जबकि पूरे देश में 10.15 प्रशिक्षण केंद्र होने चाहिये ताकि रोअर्स का अच्छा पूल तैयार हो सके।’

बेग भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) के कोच नहीं है और सिर्फ राष्ट्रीय शिविर के दौरान उन्हें साइ से 75000 रूपये मासिक मिलते हैं। इसके अलावा गुजर बसर के लिये कोई स्थायी नौकरी नहीं है जबकि 18 साल में एशियाई खेलों के दो स्वर्ण समेत वह भारत को करीब 135 अंतरराष्ट्रीय पदक दिला चुके हैं। उन्होंने कहा कि रोइंग मेरा जीवन है और हम देश के लिये काम कर रहे हैं। कोई शिकायत नहीं है लेकिन विदेशी कोचों को मिलने वाले वेतन का एक चौथाई भी हमें (भारतीय कोचों को) मिल जाता तो बहुत अच्छा होता। मैं सिर्फ रोइंग की बात नहीं कर रहा हूं।

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