शरद पवार और एन. श्रीनिवासन की दावेदारी खत्म

[email protected] । Jul 19 2016 11:26AM

उच्चतम न्यायालय ने बीसीसीआई में प्रशासनिक सुधारों की लोढ़ा समिति की अधिकांश सिफारिशें मंजूर कर ली जिसके कारण शरद पवार और एन श्रीनिवासन जैसे पूर्व प्रमुख क्रिकेट बोर्ड में पद की दौड़ से बाहर हो गए हैं।

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बीसीसीआई में प्रशासनिक सुधारों की लोढ़ा समिति की अधिकांश सिफारिशें मंजूर कर ली जिसके कारण शरद पवार और एन श्रीनिवासन जैसे पूर्व प्रमुख क्रिकेट बोर्ड में पद की दौड़ से बाहर हो गए हैं क्योंकि बोर्ड में पदाधिकारियों की उम्र को 70 बरस तक सीमित कर दिया गया है। इसके अलावा बोर्ड में मंत्रियों और लोक सेवकों के पद पर काबिज होने पर भी रोक लगा दी गई है। न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा समिति की ये सिफारिशें जब लागू होंगी तो बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर और सचिव अजय शिर्के को भी अपने राज्य क्रिकेट संघों क्रमश: हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र में अपने पद छोड़ने होंगे। प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने भारत के सेवानिवृत प्रधान न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली समिति की यह सिफारिश भी मान ली कि बीसीसीआई में कैग का एक प्रतिनिधि होना चाहिये। पीठ ने एक राज्य-एक वोट और एक सदस्य-एक पद की सिफारिश को भी स्वीकार कर दिया जबकि संसद और विधि आयोग से कहा कि वे बीसीसीआई को आरटीआई कानून और क्रिकेट में सट्टेबाजी को वैध बनाने के सुझावों पर विचार करें।प्रधान न्यायाधीश ठाकुर और न्यायमूर्ति एफएमआई कलीफुल्ला की पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘हम समिति की रिपोर्ट को स्वीकार करते हैं और बदलाव तथा स्पष्टीकरण के साथ सिफारिशें भी।’’

उच्चतम न्यायालय ने इन सिफारिशों को लागू करने के लिए बीसीसीआई को छह महीने का समय दिया है। पीठ ने 143 पन्ने के अपने फैसले में बीसीसीआई और उसके कुछ सदस्यों की सिफारिशों के खिलाफ याचिकाओं को खारिज कर दिया।एक राज्य-एक वोट की सिफारिश पर न्यायालय ने कहा कि बीसीसीआई में ढांचागत सुधार के लिए यह सिफारिश की गई जिससे कि यह अधिक प्रतिक्रियावादी और जवाबदेह हो। गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में तीन-तीन क्रिकेट संघ हैं और सभी बीसीसीआई के पूर्ण सदस्य हैं। पीठ ने कहा, ‘‘इस समस्या का एकमात्र उचित और तर्कसंगत जवाब यह होगा कि एक राज्य एक मत का सिद्धांत लागू हो जिसमें बीसीसीआई की पूर्ण सदस्यता वाषिर्क तौर पर तीन क्लबों में रोटेट हो।’’ उच्चतम न्यायालय ने इन सुझावों का समर्थन किया कि रेलवे खेल संवर्धन बोर्ड, एसोसिएशन आफ इंडियन यूनिवर्सिटीज, सेना खेल नियंत्रण बोर्ड, राष्ट्रीय क्रिकेट क्लब (कोलकाता) और क्रिकेट क्लब आफ इंडिया (मुंबई) जैसे क्लब और बोर्ड का दर्जा पूर्ण सदस्य के रूप में नहीं माना जाए क्योंकि वे किसी भौगोलिक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं करते।

इसने समिति का यह सुझाव भी मान लिया कि बीसीसीआई में एक खिलाड़ियों का संघ होगा और उसके वित्तपोषण को भी मंजूरी दे दी लेकिन इसकी धनराशि का फैसला बीसीसीआई पर छोड़ दिया। इसके अलावा प्रसारण अधिकारों संबंधी मौजूदा करार में किसी बदलाव का फैसला भी बोर्ड पर छोड़ दिया है। यह भी बोर्ड ही तय करेगा कि हितों के टकराव को टालने के लिये क्या फ्रेंचाइजी के सदस्य को बोर्ड में होना चाहिये। पीठ ने तीन सदस्यीय समिति से बीसीसीआई के प्रशासनिक ढांचे में होने वाले इन बदलावों पर निगरानी रखने के लिये भी कहा जो छह महीने के भीतर होने चाहिये। समिति में उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश अशोक भान और आर वी रविंद्रन भी हैं। लोढा समिति ने चार जनवरी को बीसीसीआई प्रशासन में आमूलचूल बदलावों की सिफारिश की थी। इसमें मंत्रियों को पद लेने से रोकना, पदाधिकारियों के उम्र और कार्यकाल की सीमा तय करना और सट्टेबाजी को वैधानिक बनाना शामिल था। कुछ राज्य क्रिकेट संघ, कीर्ति आजाद और बिशन सिंह बेदी जैसे पूर्व क्रिकेटर और क्रिकेट प्रशासकों ने लोढा समिति की सिफारिशें लागू करने को लेकर उच्चतम न्यायालय का द्वार खटखटाया था।

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