मोबाइल पर ट्वीटर उपयोग करते हैं तो ''डेटा'' को खतरा है!

If you use Twitter on mobile then there is a danger to ''data''!
राहुल लाल । Sep 13 2017 12:55PM

यह आपके लिए तब और भी खतरनाक हो सकता है, जब आप मोबाइल पर ही ट्वीटर प्रयोग कर रहे हों तथा इन्हीं स्मार्टफोन का प्रयोग कर बैंकों और सरकार के साथ वित्तीय लेन देन कर रहे हों।

अगर आप भी माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइट ट्वीटर प्रयोग कर रहे हैं तो सावधान हो जाएं। ट्वीटर भारत में अपने यूजरों के डेटा विदेश ले जा सकती है। यह आपके लिए तब और भी खतरनाक हो सकता है, जब आप मोबाइल पर ही ट्वीटर प्रयोग कर रहे हों तथा इन्हीं स्मार्टफोन का प्रयोग कर बैंकों और सरकार के साथ वित्तीय लेन देन कर रहे हों। दरअसल माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइट ट्वीटर ने हाल ही में संकेत दिया कि यूजर्स के डेटा को विदेश ले जाना उसकी सेवा शर्तों के दायरे में है। वहीं दूसरी ओर सरकार विदेशी इंटरनेट और मोबाइल कंपनियों के लिए लोकल स्तर पर ही डेटा स्टोर करने की अनिवार्यता पर विचार कर रही है। इस संपू्र्ण मामले में राइट टू प्राइवेसी और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों ही गंभीर मामले संबद्ध हैं। यह नई नीति 2 अक्टूबर से लागू होनी है।

आखिर ये मामला अब क्यों उठा?

माइक्रोब्लॉगिंग कंपनी ट्वीटर ने भारत सहित दुनियाभर के अपने प्रयोग कर्ताओं के लिए सेवा की शर्तों और निजता नीति (प्राइवेसी पॉलिसी) को अपडेट किया है, जो 2 अक्टूबर से लागू होंगी। इन शर्तों के अनुसार कंपनी अपने यूजर्स के डेटा न केवल विदेश ले जा सकती है, बल्कि वहाँ भी अपनी सहयोगी कंपनियों के साथ इसे साझा कर सकती है। ट्वीटर के लिए भारत एक बहुत बड़े बाजार के रूप में है। कंपनी के सबसे अधिक दैनिक सक्रिय यूजरों की संख्या भारत में ही है। इस कारण ट्वीटर की इस नई नीति का सबसे ज्यादा प्रभाव भारत पर ही होगा।

गूगल, फेसबुक, ट्वीटर जैसी वैश्विक इंटरनेट कंपनियाँ विज्ञापनों के लिए अपने यूजर्स के डेटा का जमकर प्रयोग कर रही हैं। भारत में जिस तरह से सोशल वेबसाइटों का जमकर प्रयोग हो रहा है, ऐसे में  साइबर सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा व अति महत्वपूर्ण राइट टू प्राइवेसी को देखते हुए, इन मामलों पर सरकार को शीघ्र एक ठोस नीति बनाने की आवश्यकता है।

सोशल वेबसाइटों की प्राइवेसी पॉलिसी का प्रभावित होना तय

यह संपू्र्ण प्रकरण तब सामने आया है, जब 24 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने एक अतिविशिष्ट एवं ऐतिहासिक फैसले में "राइट टू प्राइवेसी" को भारतीय संविधान के अति महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार "जीवन के अधिकार" में शामिल किया था। व्हाट्सएप के भारतीय यूजरों के डेटा का मालिकाना हक रखने वाली कंपनी फेसबुक द्वारा इस्तेमाल किए जाने के मामले पर उच्चतम न्यायालय में भी सुनवाई चल रही है। इसकी अगली सुनवाई नवंबर में होनी है। सुप्रीम कोर्ट के राइट टू प्राइवेसी वाले आदेश का प्रभाव व्हाट्सएप मामले पर पड़ना भी तय है। दिल्ली हाई कोर्ट ने 23 सितंबर 2016 को दिए अपने आदेश में व्हाट्सएप को नई निजता नीति लागू करने की इजाजत दी थी। परंतु न्यायालय ने व्हाट्सएप को 25 सितंबर 2016 तक एकत्रित किए गए अपने यूजर्स का डाटा फेसबुक या किसी दूसरी कंपनी को देने पर रोक लगा दी थी। इसी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट के 24 अगस्त के निजता के अधिकार फैसले से प्राइवेसी मामले में भारतीय विधिक स्थिति स्पष्ट हो चुकी है, ऐसे में ट्वीटर की नई प्राइवेसी पॉलिसी समझ से परे है।

डेटा के विदेश जाने से उत्पन्न खतरे

अगर निजी जानकारी देश से बाहर स्थित सर्वरों पर ले जाई जाती है तो निश्चित रूप से यह निजता के कानून का उल्लंघन होगा, क्योंकि इसका कई तरीकों से दुरुपयोग हो सकता है। साथ ही देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा होगा। ऐसे में भारत के लिए अब अनिवार्य हो गया है कि इन मामलों के लिए कानून बने तथा डेटा को देश के अंदर ही रखने के विकल्प पर पूर्ण विचार हो। अगर इस तरह के कानून बनाने में समय लगता है तो सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 83 के तहत सरकार नियम बनाकर सेवा प्रदाता कंपनियों को भारतीय यूजरों और भारत में मौजूद कंप्यूटरों के डेटा को सुरक्षित करने के लिए कदम उठाने के लिए कह सकती है। जैसा मैं बार-बार कह रहा हूं कि राष्ट्रीय सुरक्षा, साइबर सुरक्षा और निजता के अधिकार को भी संरक्षित करने के लिए ऐसा करना अनिवार्य है।

इंटरनेट कंपनियाँ तथा मोबाइल कंपनियाँ यूजर्स की व्यक्तिगत जानकारी, उनके संपर्क और अन्य जानकारियों के बारे में डाटा जुटाती हैं तथा इन जानकारियों को जिस प्रकार हाथोंहाथ अन्य कंपनियों के साथ साझा करती हैं, यह हम यूजर्स के लिए खतरनाक है। ऐसे में हमारा ध्यान भारत में डेटा के स्टोर पर तो होना ही चाहिए, लेकिन केवल यह पर्याप्त नहीं है। हम लोगों को भारत में भी डेटा को सुरक्षित रखने तथा कॉपी करने से रोकने के लिए यूरोपीय व्यवस्था लागू करने की जरूरत है। भारत को यूरोपीय संघ की तरह ही नियम बनाना चाहिए जिसमें साफ कहा गया है कि यूरोपीय संघ के किसी नागरिक से लिए गए डेटा पर उसके नियम लागू होंगे। भारत में अब जिस तरह से सोशल वेबसाइटें काफी लोकप्रिय हो रही हैं, ऐसे में उसके समुचित नियमन के लिए नई नीति और कानून अब अपरिहार्य हो गए हैं।

- राहुल लाल

(लेखक साइबर कानून मामलों के विशेषज्ञ हैं।)

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