क्या गूगल अपने ''एकाधिकार'' का दुरूपयोग कर रहा है?
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गूगल ने अपने बाज़ार एकाधिकार का दुरूपयोग करने की कोशिश की है। इस कड़ी में हम देखते हैं तो पाते हैं कि दुनिया में किसी भी व्यवसाय के क्षेत्र का लीडर ही उस क्षेत्र के नियम-कानून बनाता है और गूगल इसका अपवाद नहीं है।
यूं तो 'गूगल' की तमाम इन्नोवेटिव आइडियाज ने तमाम लोगों की ज़िन्दगी में अकल्पनीय सुविधाएं और सहूलियतें बढ़ायी हैं, किन्तु कई बार ऐसी ख़बरें बेहद चिंतित कर जाती हैं, जिसमें कहा जाता है कि गूगल ने अपने बाज़ार एकाधिकार का दुरूपयोग करने की कोशिश की है। इस कड़ी में हम देखते हैं तो पाते हैं कि दुनिया में किसी भी व्यवसाय के क्षेत्र का लीडर ही उस क्षेत्र के नियम-कानून बनाता है और गूगल इसका अपवाद नहीं है। आप किसी भी क्षेत्र में मार्किट-लीडर्स की ओर नज़रें घुमा लें, उनकी स्ट्रेटेजी काफी हद तक आप समझ जाएंगे कि अपना बिजनेस वो इस तरीके से आगे बढ़ाने की कोशिश में लगे रहते हैं, ताकि मार्किट में उनकी मोनोपॉली स्थापित हो जाए, बेशक इसके लिए कई बार 'हुक और क्रूक' का इस्तेमाल भी किया ही जाता है। विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम से माइक्रोसॉफ्ट, सोशल मीडिया में फेसबुक और इंटरनेट-सर्च को लेकर गूगल के बारे में भी यही कहानी है। हालाँकि, अगर व्यापार-एथिक्स की बात की जाए तो, नियम बनाने या उनका पालन करने में भेदभाव किया जाये तो यह कानूनी रूप से गलत माना जाता है। इसमें कोई शक नहीं हैं कि इंटरनेट के सर्च इंजन पर गूगल की बादशाहत कायम है, तो दुनिया का तीसरा सबसे कीमती ब्रांड है गूगल। हालाँकि कई सारी कंपनियों ने सर्च-इंजन बिजनेस में अपने हाथ आजमाए, लेकिन वह गूगल को चुनौती देना तो दूर की बात, अपना स्थान ही नहीं बना पाए।
ऐसे में जब इंटरनेट ने अपने पाँव पूरी दुनिया में तेजी से फैलाए हैं तो गूगल-सर्च की कीमत भी आप ही बढ़ी है। उस पर गूगल की रिसर्च और सटीक शोध ने अन्य प्रतिद्वंद्वी कंपनियों का बोरिया-बिस्तर समेट रखा है। ऐसे में अपने एकाधिकार का फायदा उठाते हुए गूगल मनमानी भी करता है, यह आरोप थोड़ा चौंकाता तो जरूर है, किन्तु यूरोपीय यूनियन जैसी बड़ी संस्था ने गूगल पर 'मनमानी और पक्षपात' का जो आरोप लगाया है, उसे अनदेखा करना बेहद मुश्किल है। इस संस्था का कहना है कि गूगल पक्षपात करते हुए विज्ञापन व्यवसाय में अपनी प्रतिस्पर्धा वाले विज्ञापन को अपनी वेबसाइट पर दिखने से रोक रहा है, जो गलत है। अगर ऐसा सच में है तो यह बेशक गलत है, क्योंकि किसी भी प्रतियोगी को रोकने का गूगल को कोई अधिकार नहीं है और न ही होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, जो और आरोप सामने आए हैं, उसके अनुसार गूगल 'ऑनलाइन शॉपिंग' में भी पक्षपात कर रहा है। इसके पीछे जो तर्क दिया जा रहा है, उसके अनुसार शॉपिंग-सर्च में गूगल अपनी शॉपिंग साइट को पहले और शेष साइट को बाद में दिखाता है, जिसके लिए 'ईयू' में गूगल पर मामले चल रहे हैं। गौरतलब है कि ईयू के इंटरनेट सर्च बाजार के 90 फीसदी और अमेरिका में 70 फीसदी हिस्से पर गूगल का एकछत्र साम्राज्य है।
हालाँकि, गूगल ने इन आरोपों से इनकार किया है और उसका कहना है कि ग्राहकों और प्रतिद्वंद्वियों को नुकसान पहुंचाने का आरोप सरासर गलत है। हालाँकि, देखना दिलचस्प होगा कि यह सारे आरोप कहाँ तक साबित होते हैं, क्योंकि कई बार यह भी देखा जाता है कि व्यवसायिक प्रतिद्वंद्वी आरोप-प्रत्यारोप के खेल में एक-दूसरे को फंसाने के लिए तमाम चालें चलते ही हैं। इसी सन्दर्भ में, यूरोपीय संघ द्वारा गूगल पर विज्ञापन व्यवसाय के साथ-साथ मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम 'एंड्रायड' के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है। यूरोपीय संघ की प्रतिस्पर्धा आयुक्त मार्गरीटा वेस्टेयर के अनुसार कंपनी प्रतिद्वंद्वी ऑपरेटिंग सिस्टमों, ऐप्लीकेशनों और सेवाओं की राह में अड़ंगा लगा रही थी। प्राप्त जानकारी के अनुसार, मार्गरीटा को मोबाइल फोन और टैबलेट बनाने वाली कंपनियों ने शिकायत की थी कि गूगल द्वारा उन पर एंड्रायड इस्तेमाल करने का दबाव बनाया जा रहा है।
गौरतलब है कि मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम के बाजार के सबसे बड़े हिस्से पर गूगल द्वारा डेवलप एंड्रायड का ही कब्जा है। अगर हम भारत के सन्दर्भ में इस कंपनी की नीतियों की बात करें तो, भारत में सबसे पहले भारत मैट्रीमोनी और जयपुर की एनजीओ कंज्यूमर यूनिटी एंड ट्रस्ट सोसाइटी ने गूगल के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। इसके बाद माइक्रोसॉफ्ट ने गूगल पर अपनी ताकत का गलत उपयोग करने के संबंध में शिकायत किया। उसके बाद एक-एक करके फ्लिपकार्ट, फेसबुक, नोकिया की मैप डिविजन, मेकमाय-ट्रिप, मैप-माय इंडिया, हंगामा डिजिटल और ग्रुपएम सहित कई कंपनियों ने भी भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) से गूगल के खिलाफ शिकायत की थी। जिसके लिए सीसीआई ने अपनी जांच शाखा- डीजी (डाइरेक्टर जनरल) को 2012 में गूगल पर लगे इन आरोपों की जांच के आदेश दिए थे।
हालाँकि, यह बेहद दुर्भाग्य की बात है कि गूगल ने इस जांच में सहयोग नहीं किया था, जिसके लिए पिछली साल सीसीआई ने गूगल पर एक करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया था। वैसे, गूगल जैसी इनोवेटिव कंपनी ऐसा करती है, तो यह बेहद गलत स्थिति है, क्योंकि वैसे ही इंडिया में कॉर्पोरेट भ्रष्टाचार काफी हद तक फैला हुआ है और अगर बेहतर साख वाली कंपनियां भी यही करने लगीं तो फिर ग्राहकों और वेंडर्स का भरोसा उनके ऊपर से धीरे-धीरे उठेगा ही। अगर भारत में गूगल पर लगे आरोपों की बात करें तो यह 'ऑनलाइन सर्च' से संबंधित है, जिसके अनुसार गूगल सर्च पर कोई शब्द टाइप करने पर स्वाभाविक परिणाम यानी 'ऑर्गेनिक सर्च' का रिजल्ट्स देने की प्रक्रिया में गूगल अपनी दूसरी सेवाओं या अपने कारोबारी सहयोगियों को फायदा पहुंचाने का काम करता है। जाहिर है, यह व्यवसायिक नियमों का खुला उल्लंघन है तो कहीं न कहीं गूगल की पालिसी पर भी सवाल खड़ा करता ही है। ऐसे ही गूगल पर एडवर्ड्स-बिडिंग को लेकर भी आरोप लगे हैं, जिसके बारे में सीसीआई (भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग) का कहना है कि यह प्रक्रिया इतनी अस्पष्ट है, जिससे विज्ञापनदाता को कभी पता नहीं चल पाता कि यह काम कैसे करती है, तो एडवर्ड्स द्वारा 'गूगल सर्च' को प्रभावित करने की बात भी कही गयी है। देखा जाए तो गूगल की मुख्य कमाई का स्रोत भी 'एडवर्ड्स' ही है, जिसे लेकर विज्ञापनदाताओं की एक शिकायत यह भी है कि विज्ञापनों पर गूगल की एकतरफा और अस्पष्ट शर्तें होती हैं, जबकि कंपनी किसी भी कैंपेन को अपनी मर्जी से कभी-भी खत्म कर देती है और इसकी वजह भी साफ नहीं होती। हालाँकि, इस मामले में गूगल पर आरोप साबित नहीं हो पाए हैं और वह अपनी तरफ से 'एडवर्ड्स' को लेकर काफी कुछ साफ़ करने की कोशिश में लगा ही रहता है। हालाँकि, कई तर्क-एक्सपर्ट भी इस बात पर सहमत हैं कि गूगल को 'सर्च' और 'एडवर्ड' मामले में और साफ़ होने की आवश्यकता है, क्योंकि वह मार्किट-लीडर है और अगर लीडर ही अन-एथिकल रास्ता अपनाने लगेगा तो फिर बाकियों का क्या होगा?
अगर हम गूगल के कुछ और नकारात्मक पहलुओं की बात करते हैं तो भारत के मानचित्र के साथ भी गूगल में छेड़छाड़ हुई है और भारत का मानचित्र हर देश के हिसाब से अलग-अलग दिखलाता है 'गूगल'। जाहिर है, अपने व्यवसाय के लिए गूगल तथ्यों के साथ छेड़छाड़ का भी यहाँ साफ़ तौर पर दोषी दिख जाता है। गूगल की इसी मनमानी की वजह से चीन ने गूगल नकार दिया था। हालाँकि जर्मनी, ताइवान, मिस्र, और ब्राजील सहित दुनियाभर के नियामकों और अदालतों में 'गूगल' पर सवाल खड़े किए जा चुके हैं, लेकिन उन्हें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला। वहीं अमेरिका में 2011 के दौरान ये आरोप लगे थे लेकिन दो साल की जांच के बाद 2013 में गूगल को आरोपों से बरी कर दिया गया। ऐसे में यूरोपियन युनियन द्वारा अपने ऊपर लगाए तमाम आरोपों के जवाब में गूगल कहता है कि "हमें यकीन है कि हमारी नई खोज और बेहतर प्रोडक्ट्स ने यूरोपीय ग्राहकों की पसंद का दायरा बढ़ाया है और इससे कंपटीशन भी बढ़ा है। हम यूरोपीय कमीशन के नए केस की जाँच करेंगे और आगे इस पर विस्तार से अपनी बात रखेंगे।" जाहिर है, गूगल इन मामलों और आरोपों से विचलित होता नहीं दिख रहा है और अपने बिजनेस-मॉडल के पक्ष में मजबूती से खड़ा है। एक यूजर के नजरिए से अगर देखा जाए तो गूगल के तमाम-प्रोडक्ट्स बेहद मजबूत हैं और तमाम सुविधाओं में उसके प्रतिद्वंद्वी दूर-दूर तक नज़र नहीं आते हैं।
अगर प्रतिद्वंद्वी कंपनियां बेहतर प्रोडक्ट पेश करती हैं तो कोई कारण नहीं है कि 'फेसबुक' जैसी कोई नयी कंपनी न उभरे या फिर एप्पल जैसी क्वालिटी कोई न दे सके। आज इस बात में दो राय नहीं है कि ग्लोबल-मार्किट में आपको बेहद सक्षम प्रोडक्ट्स बनाना होगा, अन्यथा आप टिक नहीं सकेंगे। ऐसा नहीं है कि गूगल के सभी प्रोडक्ट सफल ही हुए हैं, बल्कि सोशल मीडिया में फेसबुक का मुकाबला करने के लिए गूगल ने जी-जान लगा दिया, किन्तु वह कुछ ख़ास सफल न हो सका तो अमेज़न, फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों ने उसे ई-कॉमर्स में पाँव नहीं जमाने दिया। हाँ, उसका सर्च-इंजिन या एंड्राइड अगर मार्किट में चल रहा है तो निश्चित रूप से उसमें बेहद दम और इनोवेशन है। हालाँकि, इस बात में भी दो राय नहीं है कि गूगल को अपनी पॉलिसीज को काफी ट्रांसपेरेंट बनाने की जरूरत है, खासकर सर्च और एडवर्ड्स के मामले में तो भारत जैसे देशों की तमाम चिंताओं की ओर भी अगर यह बड़ी कंपनी ध्यान दे तो आने वाले दिनों में यह और मजबूत होकर उभर सकती है, इसमें दो राय नहीं।
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