लिंक्डइन का अधिग्रहण माइक्रोसॉफ्ट की रणनीतिक कामयाबी
माइक्रोसॉफ्ट जहां दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक कंपनी है, वहीं लिंक्डइन भी दुनिया के पेशेवरों को कनेक्ट करने वाली सबसे बड़ी नेटवर्किंग साइट है, जिसके पास सर्वाधिक विश्वसनीय ''यूजरबेस'' है।
बड़ी कंपनियों को मार्किट में अपना दबदबा कायम रखने के लिए अक्सर अपनी रणनीतियां बदलनी ही पड़ती हैं और इसका सबसे नया उदाहरण 'टेक जायंट' माइक्रोसॉफ्ट को माना जा सकता है। दुनिया भर में सर्वाधिक इस्तेमाल किये जाने वाले 'ऑपरेटिंग सिस्टम' यानि माइक्रोसॉफ्ट विंडोज की सीरीज ने इस कंपनी को आज तक शीर्ष पर कायम रखा है। उसके बाद 'माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस' इसका दूसरा लोकप्रिय प्रोडक्ट रहा है। हालाँकि, इसके बाद कंपनी ने बदलती तकनीक के दौर में संघर्ष भी किया और कई बार उसकी 'इनोवेशन' पर सवाल भी उठे। खासकर 'इंटरनेट और वेबसाइट' के बढ़ते प्रभाव के दौर में गूगल, फेसबुक, ऐमज़ॉन जैसी कंपनियों ने माइक्रोसॉफ्ट के शीर्ष अधिकारियों के माथे पर चिंता की लकीरें उकेर दी थीं। इसके साथ-साथ माइक्रोसॉफ्ट का जो बड़ा कंप्यूटर कारोबार था, उसका बड़ा यूजर बेस कब मोबाइल पर शिफ्ट हो गया, इसे भांपने में माइक्रोसॉफ्ट ने बड़ी चूक की, जिसे इसके सीईओ भारतीय मूल के सत्य नडेला ने खुलकर स्वीकार भी किया।
पिछले साल माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला ने साफ़ तौर पर स्वीकार किया था कि माइक्रोसॉफ्ट ने यह मानकर बड़ी गलती की कि पर्सनल कंप्यूटर का दबदबा हमेशा बना रहेगा। उनके अनुसार कंपनी मोबाइल फोन के तकनीकी बदलाव को समझने में फेल रही, जिसके कारण उसे इस मार्किट में पिछलग्गू बनने को मजबूर होना पड़ा। 'विंडोज़ आपरेटिंग सिस्टम' के माध्यम से कंप्यूटर सॉफ्टवेयर मार्किट पर एकछत्र राज करने वाली माइक्रोसॉफ्ट का दर्द समझा जा सकता है, क्योंकि गूगल के 'एंड्राइड' ऑपरेटिंग सिस्टम ने माइक्रोसॉफ्ट के वर्चस्व को जबरदस्त तरीके से चुनौती दी है। उसने यह चुनौती सीधे पेश करने की बजाय थोड़ा घुमाकर पेश किया, जिसने दूसरी कंपनियों के समझने से पहले ही स्मार्टफोन की दुनिया में जबरदस्त क्रांति ला दी है। एंड्राइड के आने से पहले फोन सिर्फ बात करने या मेसेज भेजने तक ही सीमित रहा करते थे या कुछ फीचर इत्यादि देकर संतुष्ट हो जाया करते थे, लेकिन गूगल के इस इनोवेटिव अविष्कार ने स्मार्टफोन फोन को 'पर्सनल कंप्यूटर' बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पर्सनल कंप्यूटर ही क्यों, बल्कि कई मायनों में कंप्यूटर से बढ़कर इसकी सुविधाएं हैं। आखिर, कम्प्यूटर यूजर्स को 'प्ले स्टोर' जैसा प्लेटफॉर्म कहाँ उपलब्ध है, जिसकी सहायता से वह हर एक अनुभव से गुजर सकता है, जो वह सोचता है। वह भले ही गेम हो, एप हो या ऑनलाइन बुक्स, मूवी ही क्यों न हों! इनोवेटिव आविष्कारों के क्रम में 'एप्पल' से भी कड़ी चुनौती मिली माइक्रोसॉफ्ट को और इनसे निपटने के लिए इस कंपनी ने 'नोकिया' जैसी बड़ी कंपनी का अधिग्रहण किया और उसका 'लुमिया' सीरीज अपने नाम से लांच किया, किन्तु दुर्भाग्य यह रहा कि इसने भी मार्किट में माइक्रोसॉफ्ट की स्थिति कुछ ख़ास मजबूत नहीं की। हालाँकि, अब स्थिति में बदलाव लाने के लिए माइक्रोसॉफ्ट ने 'लिंकेडीन अधिग्रहण' के रूप में बड़ा दांव खेला है।
माइक्रोसॉफ्ट जहां दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक कंपनी है, वहीं लिंक्डइन भी दुनिया के पेशेवरों को कनेक्ट करने वाली सबसे बड़ी नेटवर्किंग
साइट है, जिसके पास सर्वाधिक विश्वसनीय 'यूजरबेस' है। जी हाँ, आज बेशक फेसबुक, ट्विटर या दूसरी सोशल नेटवर्किंग कंपनियों की चर्चा हो रही है, किन्तु इन सबके बीच लिंकेडीन का एक अलग स्थान और सम्मान बरकरार है, क्योंकि इसके यूजर्स तमाम प्रोफेशनल्स हैं और यहाँ अपेक्षाकृत टाइम पास वाले सोशल नेटवर्किंग की बजाय, प्रोडक्टिविटी पर ज़ोर दिया जाता है। लगभग 433 मिलियन यूजर्स के साथ लिंकेडीन की साख भी प्रोफेशनल्स के बीच जबरदस्त है। जाहिर है काफी सोच-समझकर यह विलय प्रक्रिया शुरू की गयी होगी, पर इस क्रम में बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या इस अधिग्रहण के बाद 'लिंकेडीन' की साख वैसी ही रह पायेगी? हालाँकि, सत्य नडेला ने इस आशंका को भांप लिया है और उनका तत्काल बयान आया कि लिंकेडीन का खास वर्क-कल्चर बरकरार रहेगा! फरवरी 2016 से चली आ रही बातचीत के बाद अपने-अपने क्षेत्रो में महारत रखने वाली दो कंपनी के बीच हुए इस सौदे में माइक्रोसॉफ्ट ने लिंक्डइन को खरीद लिया है।
माइक्रोसॉफ्ट और लिंक्डइन के अधिकारियों के बीच 196 डॉलर प्रति शेयर के हिसाब से 26.2 अरब डॉलर नकदी पर यह सौदा हुआ है। यह सौदा कितना बड़ा है, यह इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसके लिए माइक्रोसॉफ्ट को कर्ज तक लेना पड़ा है। हालाँकि, सत्य नाडेला इस सौदे के बाद काफी राहत महसूस कर रहे हैं और उनके अनुसार यह माइक्रोसॉफ्ट का सबसे बड़ा अधिग्रहण है। इस क्रम में उनका यह भी मानना है कि लिंक्डइन के साथ एकीकरण पूरा होने के साथ मौद्रिकरण के लिए नए अवसर का उभार होगा। विशेषज्ञ इसे रेडमॉन्ड की कंपनी के इतिहास का सबसे बड़ा सौदा करार दे रहे हैं तो नाडेला का मानना है कि लिंक्डइन से इस सौदे के बाद क्लाउड कंप्यूटिंग और सर्विस सेगमेंट की उत्पादकता और बिज़नेस कार्यप्रणाली को दुबारा शेप देने में सहायता मिलेगी। सच कहें तो माइक्रोसॉफ्ट भी अब इस सौदे के बाद ऑनलाइन दुनिया में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कर चुकी है और अगर लिंकेडीन को इसी रफ़्तार से स्वायत्ता के साथ बढ़ने दिया गया तो कोई कारण नहीं है कि फेसबुक, गूगल प्लस और ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स को माइक्रोसॉफ्ट चुनौती न दे सके।
लिंक्डइन को खरीदने के पीछे माइक्रोसॉफ्ट का जो उद्देश्य बताया जा रहा है, उसके अनुसार दुनिया के पेशेवरों को जोड़कर माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस 365 के द्वारा अपने बिज़नेस को आगे बढ़ाना, क्योंकि माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस 365 के फीचर को पेशेवरों द्वारा अक्सर ही इस्तेमाल किया जाता है। बताते चलें कि माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस 365 के द्वारा सर्वर एक्सचेंज का होस्टेड वर्जन, बिज़नेस सर्वर के लिए स्काइप, शेयरपॉइंट, ऑफिस ऑनलाइन और ईमेल का प्लान उब्लब्ध कराती है। जाहिर है लिंकेडीन से माइक्रोसॉफ्ट को कस्टमर का बड़ा बस मिल जायेगा। देखा जाये तो आजकल लोगों का झुकाव क्लाउड कंप्यूटिंग की तरफ तेजी से बढ़ रहा है और ऐसे में लिंक्डइन यूजर के लिए भी क्लाउड कंप्यूटिंग आसान हो जाएगी।
गौरतलब है कि लिंक्डइन अपने यूजर को पेशेवरों से जोड़ने का काम करती है, जिससे उनको नौकरी ढूंढ़ने में मदद मिलती है तो उनकी सोशल-नेटवर्किंग की जरूरत भी यह कंपनी बेहद मैनेज तरीके से पूरी करती है। नाडेला इसी मौके को अपने बिज़नेस में बदलने की तैयारी में दिख रहे हैं। इस सम्बन्ध में उनका कहना है कि "जरा सोचिये, लोग नौकरी कैसे तलाशेंगे, स्किल्ड बनेंगे, प्रोडक्ट्स-सर्विस को कैसे सील करेंगे, मार्किट तक कैसे पहुंचेंगे और काम कैसे करेंगे। ऐसे में सफलता के लिए एक ऐसे समाज की जरूरत हैं जिससे पेशेवर लोग जुड़े हों।" स्पष्ट है कि लिंकेडीन अधिग्रहण को लेकर माइक्रोसॉफ्ट की बड़ी महत्वाकांक्षा जुड़ी हुई है। इस सन्दर्भ में, माइक्रोसॉफ्ट के अधिग्रहण का असर 'लिंकेडीन' के करोबार पर ना हो इसके लिए, लिंकेडीन का ब्रांड, उसके कल्चर और काम को माइक्रोसॉफ्ट से स्वतन्त्र रखने की बात कही गयी है। अधिग्रहण के बाद भी लिंक्डइन सीईओ जेफ वेइनर ही होंगे, लेकिन वेइनर को नाडेला के अंडर में काम करना होगा, जो कि सामान्य बात है। इस डील पर जेफ वेइनर का कहना है कि माइक्रोसॉफ्ट का साथ दुनिया में कामकाज के तरीके को बदलने के लिए एक सुनहरा मौका है। जाहिर है दोनों पक्ष इस सौदे को 'विन-विन' सिचुएशन की तरह देख रहे हैं। हालाँकि, इस सौदे को पूरा होने में कुछ महीने और लगेगा। यह भी दिलचस्प है कि इस डील में सहसंस्थापक हाफमैन का पूरा सहयोग रहा है। कैसे एक छोटी वेबसाइट दुनिया की बड़ी कंपनी बन जाती है, इसका उदाहरण लिंकेडीन से बेहतर दूसरा नहीं।
लिंक्डइन की शुरुआत हाफमैन ने 2002 में अपने घर से किया था, जिसकी औपचारिकता 5 मई, 2003 को पूरी की गई। अब लिंक्डइन का हेडक्वार्टर कैलिफोर्निया में है जबकि दुनिया के 30 शहरों में इसके शाखा-कार्यालय हैं। इस कंपनी की मजबूती का अंदाजा आप इस बात से ही लगा सकते है कि इसके कार्यालय के हर क्वार्टर में 45 अरब से ज्यादा पेज व्यू हैं। भारत में इसका अनुसंधान व विकास केंद्र बेंगलुरू में है जिसमें लगभग 650 कर्मचारी कार्यरत हैं। कुल मिलकर लिंक्डइन में 9700 कर्मचारी हैं, तो विश्व में 43.3 करोड़ पेशेवर लोग इसको यूज करते हैं, जो सालाना 19 प्रतिशत की दर से बढ़ रहे हैं। भारतीय भी इस मामले में पीछे नहीं हैं और लिंक्डइन के यूजरों में इंडियन्स की संख्या 10 फीसदी है। हालाँकि, कई विशेषज्ञ लिंक्डइन के इस फैसले को थोड़ा आश्चर्य से देखते हैं, किन्तु इस सौदे से पहले लिंक्डइन के बिज़नेस में बहुत ही उतर चढाव नजर आया है। मार्च में कंपनी को 4.6 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा था, तो पिछले साल भी 16.6 करोड़ के लॉस में यह कंपनी रही है। इतना नुकसान उठाने के बाद कंपनी के शेयर का मूल्य भी पिछले साल के मुकाबले कम हो गया था। जाहिर है, दोनों को एक-दुसरे की जरूरत थी। लिंक्डइन बिज़नेस को आगे बढ़ाने के लिए मोबाइल एप्प और न्यूज़ फीड का मदद ले रही थी, जो आज के समय में मुख्य रास्ता बन चुका है। यह डील दोनों कंपनियों के लिए फायदेमंद हो सकती है, और इसका संकेत तब मिला जब इसके बाद से लिंक्डइन के शेयर की कीमत में 48 फीसदी की वृद्धि हुई। निश्चित रूप से माइक्रोसॉफ्ट के उत्साह में उछाल आया है और अब देखने वाली बात यह होगी कि आने वाले समय में वह लिंक्डइन के सहारे अपनी महत्वाकांक्षा को कहाँ तक पूरा कर पाती है।
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