500 साल पुराना मेहरानगढ़ किले से दिखता है पूरा पाकिस्तान
जोधपुर का मेहरानगढ़ किला 120 मीटर ऊंची एक पहाड़ी पर बना हुआ है। इस तरह से यह किला दिल्ली के कुतुब मीनार की ऊंचाई (73मीटर) से भी ऊंचा है। किले के परिसर में सती माता का मंदिर भी है।
भारत में घूमने के लिए इतने खूबसूरत पर्यटन स्थल हैं कि आपकी पूरी जिंदगी कम पड़ जाएगी। यहां ऐतिहासिक किलों को देखने के लिए आपको सालों-साल लग जाएंगे। आज हम आपको ऐसे ही दिलचस्प किले के बारे में बताने जा रहे हैं। जोधपुर का मेहरानगढ़ किला 120 मीटर ऊंची एक पहाड़ी पर बना हुआ है। इस तरह से यह किला दिल्ली के कुतुब मीनार की ऊंचाई (73 मीटर) से भी ऊंचा है। किले के परिसर में सती माता का मंदिर भी है।
क्या है खास
इस किले के दीवारों की परिधि 10 किलोमीटर तक फैली है। इनकी ऊंचाई 20 फुट से 120 फुट तथा चौड़ाई 12 फुट से 70 फुट तक है। इसके परकोटे में दुर्गम रास्तों वाले सात आरक्षित दुर्ग बने हुए थे। किले के अंदर कई भव्य महल, अद्भुत नक्काशीदार दरवाजे, जालीदार खिड़कियां हैं।
इस किले के भीतर बहुत से बेहतरीन चित्रित और सजे हुए महल हैं जिनमें मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना और दौलत खाने का समावेश है। साथ ही किले के म्यूजियम में पालकियों, पोशाकों, संगीत वाद्य, शाही पालनों और फर्नीचर को जमा किया हुआ है। किले की दीवारों पर तोपें भी रखी गयी हैं, जिससे इसकी सुन्दरता को चार चाँद भी लग जाते हैं।
जोधपुर शासक राव जोधा ने 12 मई 1459 को इस किले की नींव डाली और महाराज जसवंत सिंह (1638-78) ने इसे पूरा किया। यानि इस किले का इतिहास 500 साल पुराना है।
इस किले में कुल सात दरवाजे हैं जिनमें से सबसे प्रसिद्ध द्वारों का उल्लेख नीचे किया गया हैः
- जय पोल (विजय का द्वार), इसका निर्माण महाराजा मान सिंह ने 1806 में जयपुर और बीकानेर पर युद्ध में मिली जीत की ख़ुशी में किया था।
- फ़तेह पोल, इसका निर्माण 1707 में मुगलों पर मिली जीत की ख़ुशी में किया गया।
- डेढ़ कंग्र पोल, जिसे आज भी तोपों से की जाने वाली बमबारी का डर लगा रहता है।
- लोह पोल, यह किले का अंतिम द्वार है जो किले के परिसर के मुख्य भाग में बना हुआ है। इसके बायीं तरफ ही रानियों के हाथों के निशान हैं, जिन्होंने 1843 में अपने पति, महाराजा मान सिंह के अंतिम संस्कार में खुद को कुर्बान कर दिया था।
किले से दिखता है पाकिस्तान
1965 में भारत-पाक के युद्ध में सबसे पहले मेहरानगढ़ के किले को टारगेट किया गया था लेकिन माना जाता है कि माता की कृपा से यहां किसी का बाल भी बांका नहीं हुआ। यहां किले की चोटी से पाकिस्तान की सीमा दिखती है।
दौलत खाना- मेहरानगढ़ संग्रहालय का खजानाः
ये गैलरी भारतीय इतिहास के मुग़ल शासन काल के सबसे महत्वपूर्ण और अच्छे संरक्षित कलेक्शन्स में से एक है, राठौर शासकों के दौरान जोधपुर ने मुग़ल शासकों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखे थे। इनमें कुछ अवशेष मुग़ल सम्राट अकबर के भी हैं।
शस्त्रागार: इस गैलरी में जोधपुर के सभी वर्षों के कवचों के दुर्लभ कलेक्शन को दर्शाया गया है। प्रदर्शनी में तलवार की जेड, चांदी, राइनो सींग, हाथी दांत, रत्न जड़ित कवच, पन्ना और मोती और बंदूकें जिनकी नलियों पर गोल्ड व सिल्वर से काम किया गया है शामिल है। इस प्रदर्शनी में सम्राटों की व्यक्तिगत तलवारों को भी दर्शाया गया है, जैसे राव जोधा की खांडा के कुछ ऐतिहासिक अवशेष, जिसका वजन लगभग 3 kg है, महान अकबर की तलवार और तैमूर की तलवार।
पेंटिंग्स: इस गैलरी में मारवाड़ और जोधपुर के रंगों को दर्शाया गया है, जो मारवाड़ के चित्रों का बेहतरीन उदाहरण है।
पगड़ी गैलरी: मेहरानगढ़ संग्रहालय की पगड़ी गैलरी में रक्षा, दस्तावेज और राजस्थान में प्रचलित पगड़ियों के कई अलग अलग प्रकार को दर्शाया गया है; क्योंकि हर समुदाय, क्षेत्र और त्योहारों की अपनी अलग पहचान होती है।
कैसे पहुंचें: फ्लाइट से जा रहे हैं, तो आप जोधपुर एयरपोर्ट द्वारा आसानी से पहुंच सकते हैं। वहीं ट्रेन से जाने के लिए जोधपुर स्टेशन से सभी मुख्य शहरों के लिए टैक्सी या बस मिल जाएगी। आप यहां बस से भी पहुंच सकते हैं। नई दिल्ली और आगरा से जयपुर के लिए कई सीधी बसें मिलती हैं। दिल्ली और आगरा के बीच का यह सड़क मार्ग गोल्डुन ट्रैवल क्षेत्र का हिस्सा है।
घूमने के लिए बेस्ट टाइम: अक्टूबर से मार्च।
कहां ठहरें: आपको यहां कई होटल, रिसॉर्ट मिल जाएंगे। इसके अलावा अगर आपका बजट थोड़ा कम है तो यहां धर्मशालाएं भी बनाई गई हैं।
- रेनू तिवारी
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