दुनिया का सबसे बड़ा किलों का शहर है ''मांडू''

ईशा । May 19 2017 3:12PM

यह दुनिया का सबसे बड़ा किलों का शहर है। किलों ने चारों तरफ से इस शहर को घेर रखा है। यहां की दीवारें आज भी वैसी ही लगती हैं, जैसी 300 साल पहले लगती थीं।

इंदौर से लगभग 90 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक पर्यटक स्थल हैं 'मांडू' जिसे खुशियों का शहर भी कहा जाता है। दसवीं शताब्दी में मांडू मालवा के परमार राजाओं की राजधानी हुआ करता थी। लगभग 13वीं शताब्दी तक उस पर मालवा के सुल्तान का शासन रहा। तब इसका नाम शादियाबाद रखा गया। मांडू विंध्य पहाड़ियों से लगभग 592 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह दुनिया का सबसे बड़ा किलों का शहर है। किलों ने चारों तरफ से इस शहर को घेर रखा है। यहां की दीवारें आज भी वैसी ही लगती हैं, जैसी 300 साल पहले लगती थीं। यहां पर आप आम, इमली और बरगद के सैंकड़ों पेड़ देख सकते हैं। बारिश के बाद मांडू की खूबसूरती और हरियाली बढ़ जाती है। यहां की हरियाली ऐसी लगती है जैसे चारों तरफ पन्ना रत्न बिखरा हुआ हो।

मांडू की बेहतरीन वास्तुकला देखने के लिए दूर−दूर से पर्यटक आते हैं। यहां की छोटी−छोटी पहाड़ियों पर बने खूबसूरत किले हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। हालांकि समय के साथ ये किले टूट−फूट गए हैं पर इसका आकर्षण अभी भी है। मांडू की खूबसूरती में शांति के साथ−साथ एक प्रेम कथा भी छिपी है। कहा जाता है कि राजा बाज बहादुर अपनी प्रेमिका यानी रूपमती को बेहद प्यार करते थे, जो बेहद ही खूबसूरत राजपूताना राजकुमारी थी। एक दिन जंगलों से गुजरते हुए राजा बाज बहादुर ने रूपमती का गाना सुना और फिर वह उनसे बेहद प्यार करने लगे। राजा ने उनके लिए कई महल भी बनवाए। पर दोनों को मुगलों ने बंदी बना लिया। रानी रूपमती को मुगल सेनापति के मनोरंजन के लिए रखा गया मगर उसके छूने से पहले ही रानी ने आत्महत्या कर ली।

मांडू की खोज राजा भोज ने दसवीं शताब्दी में की थी। लगभग 14वीं शताब्दी में यहां के शासक अफगान के राजा बने थे। मांडू की सबसे ऊंची पहाड़ी पर बने किले की खोज भी 10वीं शताब्दी में हुई थीं। 15वीं शताब्दी में जब यहां मालवा का शासन शुरू हुआ, तब बहुत सारे महल बनवाए गए जैसे जहाज महल, हिंडोला महल और रूपमती मंडप। मांडू का इतिहास वृहद साम्राज्य की कहानी कहता है। अफगान शासक, मालवा, मोहम्मद शाह, मुगल और फिर अंत में मराठों ने इस पर राज्य किया। 1732 में यह मराठों के हाथ में चला गया। बाद में मराठों ने मांडू को जर्जर हालत में छोड़ पड़ोसी धार में अपनी राजधानी बनाई।

मांडू में देखने के लिए बहुत कुछ है जैसे जामा मस्जिद, जहाज महल, हिंडोला महल, नीलकंठ मंदिर, रेखा कुंड, रानी रूपमती महल और होशंग शाह का मकबरा।

होशंग शाह का मकबरा संगमरमर से बनाया गया है और इसमें अफगान वास्तुकला की खूबसूरत झलक है। शाहजहां ने अपने चार कारीगर भेजे थे इस मकबरे को देखने की लिए ताकि वह भी ताजमहल के अंदर ऐसा ही मकबरा बना सकें। जामा मस्जिद मांडू के मुख्य आकर्षणों में से एक है। यह मस्जिद अफगान वास्तुकला के बेहतर उदाहरण में से एक है। इस मस्जिद को कोई भी व्यक्ति देखता ही रह जाता है। इसका बड़ा आंगन और भव्य प्रवेश द्वार लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता है।

जहाज महल को सुल्तान गियासउद्दीन खिलजी ने बनवाया था। यह महल देखने में बिलकुल ऐसा लगता है मानो कोई जहाज पानी में तैर रहा हो। दो झीलों के बीच बना यह सुंदर महल सभी को चकित कर देता है। हिंडोला महल की दीवार एक तरफ से झुकी होने के कारण यह महल बिल्कुल एक झूले की तरह प्रतीत होता है। पर अब यह महल बरबादी के कगार पर है। जबकि यह मालवा के राजाओं का महल हुआ करता था।

रेखा कुंड मांडू के लिए एक खास झील है। यह झील नर्मदा नदी के पानी से भरी है। कहा जाता है कि रानी रूपमती इस शर्त पर बाज बहादुर से शादी के लिए तैयार हुई थीं कि वह नर्मदा नदी का पानी मांडू जरूर लाएंगे और रेखा कुंड इस शर्त को पूरा करता है। रूपमती महल रेखा कुंड के किनारे बनवाया गया था। यह महल बाज बहादुर ने अपनी रानी रूपमती के लिए बनवाया था। इसी महल में रानी नर्मदा नदी का खूबसूरत नजारा देखती थीं।

मांडू से 35 किलोमीटर की दूरी पर धार शहर है। यह परमार राजाओं की राजधानी हुआ करता था। बाद में इस पर मुसिलम शासकों का शासन शुरू हो गया। यहां के स्मारक में हिंदू, अफगान और मुगल वास्तुकला की झलक देखने को मिलती है।

यहां का मौसम साल भर अच्छा रहता है। सर्दी हो या गर्मी, मांडू हर मौसम में आकर्षक लगता है। मांडू जाने के लिए आप रेल, हवाई या सड़क मार्ग से जा सकते हैं।

ईशा

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