मल्लिकार्जुन खरगे का 50 साल का सियासी सफर, आगे बहुत मुश्किल है डगर

Mallikarjun Kharge
ANI

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मल्लिकार्जुन खरगे कर्नाटक खासकर हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र में नरेंद्र मोदी लहर के बावजूद गुलबर्ग से 74 हजार मतों के अंतर से जीत हासिल की। वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव के जरिए राष्ट्रीय राजनीति में आने से पहले उन्होंने गुरुमितकल विधानसभा क्षेत्र से नौ बार जीत दर्ज की।

कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच ‘सोलिल्लादा सरदारा’ (अजेय नेता) के रूप में लोकप्रिय मल्लिकार्जुन खरगे ने 26 अक्टूबर 2022 को देश की सबसे पुरानी पार्टी के प्रमुख की जिम्मेदारी संभाल ली है। हालांकि इस जिम्मेदारी को उनके लिए ‘कांटों का ताज’ कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। बहुत साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले खरगे एक साधारण कार्यकर्ता से अपने सियासी सफर की शुरुआत कर इस मुकाम तक पहुंचे हैं। अपने पांच दशकों से अधिक के राजनीतिक जीवन में उन्होंने कुशलता से कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली और राजनीति तथा सत्ता के तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद गांधी परिवार के प्रति पूरी दृढ़ता के साथ वफादार बने रहे। कावेरी नदी जल विवाद हो या शीर्ष कन्नड़ अभिनेता दिवंगत राजकुमार का अपहरण, खरगे दो दशक पहले कर्नाटक के गृह मंत्री के रूप में ऐसी कई संकटपूर्ण स्थितियों से निपट चुके हैं। खरगे (80) का सार्वजनिक जीवन अपने गृह जिले गुलबर्ग (अब कलबुर्गी) में एक यूनियन नेता के रूप में शुरू हुआ और वर्ष 1969 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए तथा गुलबर्ग शहरी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने। अपनी युवावस्था में जाने माने कबड्डी और हॉकी खिलाड़ी रहे खरगे दशकों तक चुनावी राजनीति में अजेय रहे और कन्नड़ के अलावा हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, उर्दू में उनकी दक्षता से उनके अपने नए पद पर अच्छी स्थिति में होने की उम्मीद है।

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वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कर्नाटक खासकर हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र में नरेंद्र मोदी लहर के बावजूद गुलबर्ग से 74 हजार मतों के अंतर से जीत हासिल की। वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव के जरिए राष्ट्रीय राजनीति में आने से पहले उन्होंने गुरुमितकल विधानसभा क्षेत्र से नौ बार जीत दर्ज की। वह गुलबर्ग से दो बार लोकसभा सदस्य रह चुके हैं। हालांकि, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में खरगे को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता उमेश जाधव से गुलबर्ग में 95,452 मतों से हार का सामना करना पड़ा। अपने गृह राज्य कर्नाटक में ‘सोलिल्लादा सरदारा’ (कभी नहीं हारने वाला नेता) के रूप में मशहूर खरगे के कई दशकों के सियासी सफर में यह उनकी पहली हार थी। खरगे ने कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली जिससे एक प्रशासक के तौर पर उनका अनुभव समृद्ध हुआ। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में खरगे ने केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में श्रम एवं रोजगार, रेलवे और सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण विभाग संभाला। उन्होंने कर्नाटक में कांग्रेस की लगातार कई सरकारों में विभिन्न विभागों का कार्यभार संभाला था। खरगे कर्नाटक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे और कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) प्रमुख भी नियुक्त किए गए। 

लोकसभा में वर्ष 2014 से 2019 तक खरगे कांग्रेस के नेता रहे। जून, 2020 में खरगे कर्नाटक से राज्यसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित हुए और हाल तक उच्च सदन में विपक्ष के 17वें नेता थे। खरगे को कई बार कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद के शीर्ष दावेदार के रूप में देखा गया, लेकिन वह कभी इस पद पर नहीं पहुंच पाए। मिजाज और स्वभाव से सौम्य खरगे कभी किसी बड़ी राजनीतिक समस्या या विवाद में नहीं फंसे। बीदर जिले के वारावट्टी में 21 जुलाई, 1942 को गरीब परिवार में जन्मे खरगे ने स्कूली पढ़ाई के अलावा स्नातक की पढ़ाई कलबुर्गी में की। विधि स्नातक खरगे राजनीति में आने से पहले वकालत के पेशे में थे। वह बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं और कलबुर्गी में बुद्ध विहार परिसर में निर्मित सिद्धार्थ विहार ट्रस्ट के संस्थापक-अध्यक्ष हैं। उन्होंने 13 मई, 1968 को राधाबाई से विवाह रचाया और उनकी दो बेटियां और तीन बेटे हैं। उनके एक बेटे प्रियंक खरगे विधायक हैं और कर्नाटक में मंत्री रहे हैं। नरेंद्र मोदी नीत सरकार के मुखर आलोचक खरगे के कांग्रेस का नेतृत्व करने से कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहन मिलने और राज्य में पार्टी में एकजुटता की उम्मीद है, जहां अगले साल अप्रैल तक विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। खरगे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के अध्यक्ष बनने वाले एस निजालिंगप्पा के बाद कर्नाटक के दूसरे नेता हैं।

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