हिन्दी और उर्दू भाषाओं की मां हैं देश की खड़ी बोलियां: शायरों ने कहा

Hindi and Urdu languages are the country's vertical dialects, says Shayar
[email protected] । Apr 16 2018 2:58PM

उर्दू को हिन्दुस्तान की ज़बान बताते हुए देश-विदेश के शायरों का मानना है कि हिन्दी और उर्दू दोनों ही भाषाओं की मां देश की खड़ी बोलियां हैं।

नयी दिल्ली। उर्दू को हिन्दुस्तान की ज़बान बताते हुए देश-विदेश के शायरों का मानना है कि हिन्दी और उर्दू दोनों ही भाषाओं की मां देश की खड़ी बोलियां हैं। साथ ही इन शायरों ने इन दोनों ही भाषाओं को जिंदा रखने के लिए मैथिली, पंजाबी समेत अन्य ज़बानों से अल्फाज़ (शब्द) लेने की हिमायत भी की। जाने माने शायर और उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य वसीम बरेलवी ने जश्न-ए-बहार मुशायरे के इतर कहा कि, ‘उर्दू किसी मज़हब की नहीं बल्कि हिन्दुस्तान की भाषा है। यह कभी खत्म नहीं हो सकती। यह लोगों के ख्यालात में जिंदा है और पूरी दुनिया में रहेगी। उर्दू चाहे देवनागरी में लिखी जाए या रोमन में, सवाल उर्दू की लिपि का होना चाहिए।’

उन्होंने कहा, ‘लिपि को बचाने के लिए काम होना चाहिए। साथ ही लोगों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को अन्य विषयों और भाषाओं के अलावा उर्दू भी पढ़ाएं।’ वहीं वैज्ञानिक और शायर गौहर रज़ा ने कहा, ‘अंग्रेजों ने सांप्रदायिक राजनीति के जरिए उर्दू और हिन्दी दोनों को एहसास-ए-क़मतरी (हीन भावना का एहसास) कराया और यह फैलाया कि हिन्दी की मां संस्कृत और उर्दू की मां फ़ारसी है।’

उन्होंने कहा, ‘हिंदी में 15-20 फ़ीसदी शब्द ही संस्कृत के हैं और यह बात भी सामने आई है कि वह लफ्ज़ संस्कृत में भी दूसरी भारतीय भाषाओं से आए हैं। उर्दू में भी 15 से 20 प्रतिशत शब्द फ़ारसी, तुर्की और अरबी भाषा से हैं। ऐसे में उन भाषाओं को हिन्दी और उर्दू की मां बना देने का काम सिर्फ राजनीति ही कर सकती है।’ रज़ा ने कहा, ‘अगर हम हिन्दी और उर्दू की मां किसी को कह सकते हैं तो वे यहां की खड़ी बोलियां हैं, जो मिट्टी से जुड़ी हुई हैं और लोगों के संघर्ष से निकली हैं।’

उन्होंने कहा, ‘दोनों भाषाओं को बचे रहने के लिए मैथिली, पंजाबी, राजस्थानी जैसी अन्य बोलियों से शब्द लेने होंगे। इसके अलावा अंग्रेज़ी, जापानी, फ्रेंच तथा दूसरी भाषाओं से भी शब्द लेने से गुरेज़ नहीं करना चाहिए।’ जापान के ओसाका विश्वविद्यालय में उर्दू के प्रोफेसर सो यामाने ने कहा, ‘उर्दू एक संपर्क की ज़बान है। इसका किसी ख़ास तबके या मज़हब से कोई ताल्लुक़ नहीं है। वस्तुत: उर्दू एक ज़बान नहीं है, बल्कि यह एक मिज़ाज़ है। इसलिए यह कभी खत्म नहीं हो सकती।’ यामाने ओसाका विश्वविद्यालय में बीए स्तर में जापानियों को उर्दू पढ़ाते हैं। उन्होंने कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर हिन्दी और उर्दू को मिला दें तो दुनिया भर में इसे समझने वालों की तादाद 50 करोड़ से ज्यादा है। 

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