दुनिया में लोग भिन्न-भिन्न तरीकों से मनाते हैं अप्रैल फूल डे

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अप्रैल लेटिन भाषा के ''एपिराट्रर'' का मूल शब्द है जिसका अर्थ है शुरुआत। यूरोप में अप्रैल माह को बसंत ऋतु का शुरुआती माह माना जाता है। सोलहवीं शताब्दी में फ्रांस में एक अप्रैल को नए वर्ष का शुरुआती दिन माना जाता था।

'अप्रैल फूल डे' का प्रचलन सिर्फ भारत में ही नहीं है, सारी दुनिया में लोग भिन्न−तरीकों से लोगों को अप्रैल फूल बनाते आए हैं। भिन्न−भिन्न जगहों पर इस दिन लोगों को मूर्ख बनाने के लिए कई रोमांचकारी तरीके अपनाए जाते हैं। इटली में एक अप्रैल को कार्निवल फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है जिसमें लोग नृत्य नाटिकाओं और हास्य व्यंग्य का मज़ा लेते हैं। चीन में इस दिन को 'फन डे' के नाम से मनाया जाता है जिसमें यहां के स्त्री पुरुष विभिन्न प्रकार के मुखौटों को पहनकर लोगों का मनोरंजन करते हैं। फ्रांस में 'पाइजन ऑफ दि अप्रैल'...अप्रैल फिश के नाम से इस दिन एक समारोह द्वारा मनोरंजन करते हैं। स्काटलैंड में यह समारोह 2 दिन चलता है दूसरे दिन को 'टैली डे' के नाम से सैलीब्रेट किया जाता है। इसके अलावा जर्मनी, इंग्लैंड आदि देशों में भी अपने−अपने तरीकों से इस दिन को सेलिब्रेट किया जाता है।

अवश्य ही आपके मन में प्रश्न उठ रहा होगा कि आखिर 'अप्रैल फूल डे' क्यों मनाते हैं एवं इसकी शुरुआत कहां से और कैसे हुई आइये जानते हैं...

अप्रैल लेटिन भाषा के 'एपिराट्रर' का मूल शब्द है जिसका अर्थ है शुरुआत। यूरोप में अप्रैल माह को बसंत ऋतु का शुरुआती माह माना जाता है। सोलहवीं शताब्दी में फ्रांस में एक अप्रैल को नए वर्ष का शुरुआती दिन माना जाता था। बाद में रोम की सत्ता जब ईसाइयों के हाथ आई तो 1582 में पोप ग्रेगरी थर्टीन ने एक जनवरी को नये साल का शुरुआती दिन माना और इसके लिए कैलेण्डर भी प्रचलित किया किन्तु कुछ लोगों ने पहली अप्रैल को ही नया साल मनाना जारी रखा। एक जनवरी को नया साल मानने वाले लोगों को यह पसंद नहीं था। उन्होंने इन परम्परावादियों को 'अप्रैल फूल' कहकर चिढ़ाना और उनका मजाक बनाना शुरू कर दिया, वे भिन्न−भिन्न तरीकों से इन लोगों का मजाक बनाने लगे। इस तरह अप्रैल फूल डे की शुरुआत यूरोपिय देशों से मानी जा सकती है।

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आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 1957 में बीबीसी इस दिन एक साथ एक दो नहीं बल्कि हजारों लोगों को फूल बना चुका है। बीबीसी ने अपने एक विशेष टीवी कार्यक्रम में लोगों को फूल बनाने के लिए यह खबर प्रसारित की थी कि स्विट्जरलैण्ड में एक खास तरह के पेड़ में स्पेगेटी (पास्ता) उग रहे हैं। कुछ लोगों ने तो बीबीसी को फोन द्वारा पास्ता के पौधों को मंगाने का आर्डर भी दे दिया बाद में पता चला कि यह मजाक था। 1965 में बीबीसी ने एक बार फिर दर्शकों को अप्रैल फूल बनाया और खबरों में उसने बताया कि बीबीसी ने एक नई तकनीक विकसित की है जिससे टीवी में आप अपने मन पसंदीदा प्रोग्राम देखने के साथ कई तरह की सुगंधों का आनन्द भी ले सकेंगे। बाकायदा कई दर्शकों ने कार्यक्रम के दौरान खुश्बू आने की बात स्वीकारी भी पर यह भी अप्रैल फूल का एक मजाक था।

तो दोस्तों, आप भी इस दिन का लुत्फ उठाइये अप्रैल फूल बनकर नहीं बल्कि बनाकर। बस, ध्यान रहे बनाने का तरीका ऐसा हो जो किसी के आवश्यक कार्य में बाधा न बने और न ही किसी के मन को आपके झूठ से ठेस पहुंचे, मजाक ऐसा हो कि बनने वाला और उसके आसपास के लोग हंसे बिना न रह सके।

− अमृता गोस्वामी

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