- |
- |
Unlock-5 का 112वां दिन: देश में उपचाराधीन मरीजों की संख्या घट कर दो लाख से नीचे आई
- प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क
- जनवरी 20, 2021 20:20
- Like

सरकार ने कहा कि उपचाराधीन मरीजों की संख्या घटकर 1,637 रह गयी। उसमें कहा गया कि चित्तूर जिले में 46 और विशाखापत्तनम में 27 नए मामले सामने आए। शेष 11 जिलों में 20 से कम मामले सामने आए। राज्यभर में करीब 1.27 करोड़ नमूनों की जांच हो चुकी हैं।
नयी दिल्ली। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बुधवार को कहा कि देश में करीब सात महीने बाद कोविड-19 के उपचाराधीन मरीजों की संख्या घट कर दो लाख के आंकड़े से नीचे आ गई है और यह कुल संक्रमितों का महज 1.86 प्रतिशत है। मंत्रालय ने कहा कि उपचाराधीन मरीजों में 72 प्रतिशत केरल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में हैं। वहीं, देश के 34 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में उपचाराधीन मरीजों की संख्या 10,000 से भी कम है। मंत्रालय ने कहा, ‘‘उपाचाराधीन मरीजों की कुल संख्या घट कर 1,97,201 रह गई है। 207 दिनों के बाद यह सबसे कम संख्या है।’’ मंत्रालय ने कहा कि कुल 16,988 लोग पिछले 24 घंटे में इस रोग से उबरे हैं। इससे कुल उपचाराधीन मरीजों की संख्या में 3,327 की कमी आई है। मंत्रालय ने यह उल्लेख किया है कि भारत में कोविड-19 के मामलों में क्रमिक रूप से कमी आ रही है, जिसके चलते भी उपचाराधीन मरीजों की संख्या घटी है।
इसे भी पढ़ें: उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमित आठ और लोगों की मौत, 390 नए मरीज
मंत्रालय ने कहा, ‘‘वैश्विक स्तर पर, भारत उन कुछ देशों में शामिल है, जहां पिछले सात दिनों में प्रति 10 लाख की आबादी पर प्रतिदिन के नये मामले सबसे कम रहे हैं।’’ मंत्रालय ने कहा कि 20 जनवरी 2021 तक कुल 6,74,835 लाभार्थियों को कोविड-19 का टीका लगाया गया है। 24 घंटे की अवधि में 3,860 सत्रों के तहत 2,20,786 लोगों को टीका लगाया गया। अब तक कुल 11,720 सत्र आयोजित किये गये हैं।’’ देश में कोविड-19 के अब तक कुल 1.02 करोड़ मरीज ठीक हो चुके हैं। मंत्रालय ने कहा कि ठीक हो चुके मरीजों की संख्या और उपचाराधीन मरीजों की संख्या में अभी 10,048,540 का अंतर है। पिछले 24 घंटे में महाराष्ट्र में सर्वाधिक संख्या में मरीज ठीक हुए और उनकी संख्या 4,516 है। वहीं, केरल में 4,296 और कर्नाटक में 807 मरीज ठीक हुए। नये मामलों में 79 प्रतिशत से अधिक सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से हैं। केरल में प्रतिदिन के सर्वाधिक नये मामले सामने आये और यह संख्या 6,186 है। इसके बाद 2,294 नये मामलों के साथ महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर है। कोरोना वायरस संक्रमण से प्रतिदिन मरने वाले लोगों की संख्या भी घटी है जो आज 162 रही। पिछले एक दिन में हुई मौतों में 71.6 प्रतिशत छह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से हैं। मंत्रालय के अनुसार महाराष्ट्र में सर्वाधिक संख्या में लोगों की मौत हुई और यह संख्या 50 है। वहीं, केरल में 26 और पश्चिम बंगाल में 11 लोगों की मौत हुई।
बुधवार शाम छह बजे तक कुल 7.86 लाख स्वास्थ्यकर्मियों को लगा कोविड-19 का टीका
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बुधवार को बताया कि 16 जनवरी से देश में शुरू हुए कोविड-19 टीकाकरण अभियान के तहत आज शाम छह बजे तक कुल 7.86 लाख स्वस्थ्य कर्मियों का टीकाकरण हुआ है। प्रोविजनल रिपोर्ट के आधार पर मंत्रालय ने बताया कि बुधवार को देश के 20 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में शाम छह बजे तक 1,12,007 लोगों को टीका लगा है। मंत्रालय का कहना है कि वास्तविक आंकड़ा रात को एकत्र करने के बाद एक दिन की देरी से उपलब्ध होगा। स्वास्थ्य मंत्रालय में अवर सचिव मनोहर अगनानी ने बताया कि टीकाकरण के दुष्प्रभाव के 10 मामले आए हैं... दिल्ली में चार, कर्नाटक में दो जबकि उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान और पश्चिम बंगाल से एक-एक मामले आए हैं। इन सभी को अस्पताल में भर्ती करने की जरुरत पड़ी है। अगनानी ने कहा, ‘‘कोविड-19 टीकाकरण का अभी तक कोई गंभीर दुष्प्रभाव नहीं हुआ है।
इसे भी पढ़ें: वैक्सीनेशन में नंबर 1 है हिन्दुस्तान, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस से भी ज्यादा तेजी से टीकाकरण
नाक में दिए जाने वाला कोविड-19 टीका बच्चों को देने में आसान होगा: एम्स निदेशक
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने बुधवार को कहा कि नाक के जरिए दिए जाने वाले कोविड-19 टीके स्कूली बच्चों को देना आसान होगा जिनमें कोरोना वायरस संक्रमण ‘‘बहुत हल्का’’ होता है। प्रख्यात पल्मोनोलॉजिस्ट गुलेरिया ने यहां राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) के 16वें स्थापना दिवस समारोह के दौरान उनके कर्मियों के साथ बातचीत के दौरान यह बात कही। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं, उन्हें भी ठीक होने के लगभग चार से छह हफ्ते बाद टीके लगाए जाने चाहिए। उन्होंने कहा, यह (कोरोना वायरस संक्रमण) बच्चों में बहुत हल्का होता है लेकिन वह संक्रामक होतर है। उनसे बीमारी फैल सकती है। उन्होंने कहा, जो टीके आए हैं उन्हें बच्चों के लिए मंजूर नहीं की गई हैं क्योंकि बच्चों पर इसका कोई अध्ययन नहीं किया गया है लेकिन यह (टीकाकरण) एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है और परीक्षण पूरा किया जा रहा है। दिल्ली स्थित एम्स के निदेशक ने कहा कि जब बच्चे नियमित रूप से स्कूल जाना शुरू कर देंगे और वे कोविड-19 से संक्रमित हो जाते हैं, तो उन्हें ज्यादा समस्या नहीं होगी, लेकिन अगर उनके साथ यह बीमारी घर पर आ जाती हैं, तो उनसे यह बीमारी उनके माता-पिता या दादा-दादी को फैल सकती है।
इसे भी पढ़ें: भारत ने भूटान और मालदीव को कोविड-19 के टीके की पहली खेप भेजी
पुडुचेरी में कोविड-19 के 31 नए मामले सामने आए
पुडुचेरी में कोविड-19 के 31 नए मामले सामने आने के बाद बुधवार को केन्द्र शासित प्रदेश में संक्रमण के मामले बढ़कर 38,737 हो गए। अधिकारी ने बताया कि चारों संभागों पुडुचेरी, कराईकल, माहे और यानम में संक्रमण से मौत का कोई नया मामला सामने नहीं आया है। वायरस से यहां अब भी मृतक संख्या 643 ही है। उन्होंने बताया कि 3,679 नमूनों की जांच के बाद 31 नए मामले सामने आए। निदेशक एस. मोहन कुमार ने बताया कि पिछले 24 घंटे में 32 लोग संक्रमण मुक्त भी हुए। उन्होंने बताया कि राज्य में मरीजों के ठीक होने की दर 97.58 प्रतिशत और कोविड-19 से मृत्यु दर 1.66 प्रतिशत है। निदेशक ने बताया कि नए 31 मामलों में से पुडुचेरी में 24, कराईकल में दो और माहे में पांच नए मामले सामने आए। उन्होंने बताया कि यानम में संक्रमण का कोई नया मामला सामने नहीं आया। उन्होंने बताया कि केन्द्र शासित प्रदेश में अभी 296 लोगों का कोरोना वायरस संक्रमण का इलाज चल रहा है और 37,798 लोग संक्रमण मुक्त हो चुके हैं।
भारत ने भूटान, मालदीव को कोविड-19 के टीके की पहली खेप भेजी
भारत ने सहायता अनुदान के तहत पड़ोसी एवं सहयोगी देशों को कोविड-19 के टीके की आपूर्ति बुधवार को शुरू कर दी और इस श्रृंखला में भूटान और मालदीव को टीके की खेप भेजी गई। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने ट्वीट किया, ‘‘ भारत ने पड़ोसी एवं सहयोगी देशों को कोविड-19 के टीके की आपूर्ति शुरू कर दी। पहली खेप भूटान के लिये रवाना हो गई। ’’ प्रवक्ता ने ट्वीट के साथ चित्र भी साझा किया। उन्होंने एक अन्य ट्वीट में कहा, ‘‘ मालदीव के लिये कोविड टीके की खेप रवाना हुई। ’’ गौरतलब है कि मंगलवार को विदेश मंत्रालय ने कहा था कि भारत सहायता अनुदान के तहत भूटान, मालदीव, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमा, सेशेल्स को कोविड-19 के टीके की आपूर्ति करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्वीट में कहा था कि भारत वैश्विक समुदाय की स्वास्थ्य सेवा जरूरतों को पूरा करने के लिये ‘भरोसेमंद’ सहयोगी बनकर काफी सम्मानित महसूस कर रहा है और बुधवार से टीकों की आपूर्ति शुरू होगी तथा आने वाले दिनों में और काफी कुछ होगा। गौरतलब है कि भारत दुनिया केबड़े टीका निर्माताओं में से एक है और कोरोना वायरस का टीका खरीदने के लिये काफी देशों ने सम्पर्क किया है। समझा जाता है कि पाकिस्तान को इसका फायदा नहीं मिलेगा क्योंकि अभी तक इस पड़ोसी देश ने भारत से सम्पर्क नहीं किया है। विदेश मंत्रालय ने कहा था कि घरेलू जरूरतों को ध्यान में रखते हुए भारत आगामी हफ्ते, महीने में चरणबद्ध तरीके से सहयोगी देशों को कोविड-19 टीकों की आपूर्ति करेगा। भारत इस संबंध में श्रीलंका, अफगानिस्तान और मारिशस से टीके की आपूर्ति के लिये जरूरी नियामक मंजूरी की पुष्टि की प्रतीक्षा कर रहा है। गौरतलब है कि भारत ने देशभर में अग्रिम मोर्चे पर तैनात स्वास्थ कर्मियों को दो टीको कोविशिल्ड और कोवैक्सीन लगाने के लिये व्यापक टीकाकरण अभियान शुरू किया है।
इसे भी पढ़ें: बजट सत्र 29 जनवरी से हो रहा शुरू, ओम बिरला ने सभी सांसदों से कोरोना टेस्ट कराने का किया अनुरोध
अंडमान निकोबार द्वीप समूह में कोविड-19 का एक और नया मामला सामने आया
अंडमान निकोबार द्वीप समूह में कोरोना वायरस से एक और व्यक्ति के संक्रमित होने की पुष्टि होने के साथ इस केंद्र शासित प्रदेश में अब तक संक्रमित हुए लोगों की कुल संख्या बढ़ कर 4,989 हो गई है। स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने बुधवार को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए लोगों की जांच के बाद यह नया मामला सामने आया। अधिकारी ने बताया कि 16 जनवरी को टीकाकरण अभियान शुरू होने के बाद से केंद्र शासित प्रदेश में कुल 645 लोगों को टीका लगाया जा चुका है। उन्होंने बताया कि अब तक कुल 4,897 लोग इस रोग से उबर चुके हैं। वहीं, कुल मृतक संख्या 62 है। केंद्र शासित प्रदेश में उपचाराधीन मरीजों की संख्या 30 है।
जम्मू-कश्मीर में संक्रमण के 109 नए मामले, पिछले 24 घंटों में एक भी व्यक्ति की मौत नहीं
जम्मू-कश्मीर में बुधवार को कोरोना वायरस संक्रमण के 109 नए मामले आने के साथ ही केन्द्र शासित प्रदेश में संक्रमितों की कुल संख्या बढ़कर 1,23,647 हो गई है। अधिकारियों ने बताया कि पिछले 24 घंटों में संक्रमण से किसी की मौत नहीं हुई है। उन्होंने बताया कि नए मामलों में जम्मू में 45, जबकि कश्मीर में 64 सामने आए हैं। अधिकारियों ने बताया कि चार जिलों गांदेरबल, कठुआ, किश्तवाड़ और रामबन में कोई नया मामला सामने नहीं आया है। वहीं, 14 अन्य जिलों में 10 से कम नए मामले आए हैं। केन्द्र शासित प्रदेश में फिलहाल 1,099 लोगों का कोविड-19 का इलाज चल रहा है, जबकि 1,20,625 मरीज स्वस्थ हो चुके हैं। अधिकारियों ने बताया कि पिछले 24 घंटों में संक्रमण से किसी की मौत नहीं हुई है। केंद्र शासित प्रदेश में अभी तक 1,923 लोगों की संक्रमण से मौत हुई है।
इसे भी पढ़ें: राजस्थान में कोरोना से दो और संक्रमित की मौत, 209 नये संक्रमित
महाराष्ट्र में कोरोना वायरस संक्रमण के 3,015 नए मामले
महाराष्ट्र में बुधवार को कोरोना वायरस संक्रमण के 3,015 नए मामले सामने आए तथा 59 और मरीजों की मौत हो गई। इसके साथ ही कुल मामले बढ़कर 19,97,992 हो गए और मृतकों की संख्या 50,582 पर पहुंच गई। स्वास्थ्य विभाग ने यह जानकारी दी। विभाग की ओर से जारी एक वक्तव्य में कहा गया कि दिन भर में 4,589 मरीज ठीक हो गए। राज्य में अब तक कोविड-19 के 18,99,428 मरीज ठीक हो चुके हैं। अभी 46,769 मरीज उपचाराधीन हैं।
आंध्र प्रदेश में कोविड-19 से कोई मौत नहीं, 173 नए मामले आए
आंध्र प्रदेश में बुधवार को कोविड-19 से कोई मौत नहीं हुई, जबकि संक्रमण के 173 नए मामले आए, तो वहीं 196 और लोग इस बीमारी से ठीक हुए। राज्य सरकार के नवीनतम बुलेटिन के अनुसार, राज्य में अब संक्रमण के कुल मामले 8,86,418 हो चुके हैं, जबकि 8,77,639 लोग ठीक हो चुके हैं और 7,142 मौतें हुई हैं। सरकार ने कहा कि उपचाराधीन मरीजों की संख्या घटकर 1,637 रह गयी। उसमें कहा गया कि चित्तूर जिले में 46 और विशाखापत्तनम में 27 नए मामले सामने आए। शेष 11 जिलों में 20 से कम मामले सामने आए। राज्यभर में करीब 1.27 करोड़ नमूनों की जांच हो चुकी हैं।
Related Topics
भारत बायोटेक कोवैक्सीन Bharat Biotech Covaxin unlock 5 unlock 5 guidelines unlock 5 rules unlock 5 latest news lockdown news lockdown unlock 5 lockdown unlock 5 guidelines unlock 5 india unlock 5 phase 5 news Coronavirus Covid-19 Pandemic narendra modi New Covid strain नरेंद्र मोदी कोरोना टीकाकरण अभियान लॉकडाउन कोरोना वायरस कोरोना संकट कोरोना वायरस से बचाव के उपाय कोरोना टेस्ट अनलॉक-5 भारत सरकार स्वास्थ्य मंत्रालय कोरोना का नया प्रकार कोरोना का नया स्वरूप कोरोना ड्राई रन कोरोना पूर्वाभ्यासअन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस: भारतीय नारी कब तक रहेगी बेचारी?
- ललित गर्ग
- मार्च 6, 2021 16:18
- Like

महिलाओं के प्रति एक अलग तरह का नजरिया इन सालों में बनने लगा है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नारी के संपूर्ण विकास की संकल्पना को प्रस्तुत करते हुए अनेक योजनाएं लागू की है, जिनमें अब नारी सशक्तीकरण और सुरक्षा के अलावा और भी कई आयाम जोडे़ गए हैं।
नारी का नारी के लिये सकारात्मक दृष्टिकोण न होने का ही परिणाम है कि पुरुष उसका पीढ़ी-दर-पीढ़ी शोषण करता आ रहा हैं। इसी कारण नारी में हीनता एवं पराधीनता के संस्कार संक्रान्त होते रहे हैं। जिन नारियों में नारी समाज की दयनीय दशा के प्रति थोड़ी भी सहानुभूति नहीं है, उन नारियों का मन स्त्री का नहीं, पुरुष का मन है, ऐसा प्रतीत होता है। अन्यथा अपने पांवों पर अपने हाथों से कुल्हाड़ी कैसे चलाई जा सकती है? अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाते हुए नारी के मन में एक नयी, उन्नायक एवं परिष्कृत सोच पनपे, वे नारियों के बारे में सोचें, अपने परिवार, समाज एवं राष्ट्र की नारी की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझें और उसके समाधान एवं प्रतिकार के लिये कोई ठोस कदम उठायें तो नारी शोषण, उपेक्षा, उत्पीड़न एवं अन्याय का युग समाप्त हो सकता है। इसी उद्देश्य से नारी के प्रति सम्मान एवं प्रशंसा प्रकट करते हुए 8 मार्च का दिन महिला दिवस के रूप में उनके लिये निश्चित किया गया है, यह दिवस उनकी सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में, उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
इसे भी पढ़ें: NASA में भारतीय महिला ने बिखेरा जलवा, महिला दिवस पर पढ़ें स्वाति मोहन की कहानी
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस से पहले और बाद में हफ्ते भर तक विचार विमर्श और गोष्ठियां होंगी जिनमें महिलाओं से जुड़े मामलों जैसे महिलाओं की स्थिति, कन्या भू्रण हत्या की बढ़ती घटनाएं, लड़कियों की तुलना में लड़कों की बढ़ती संख्या, तलाक के बढ़ते मामले, गांवों में महिला की अशिक्षा, कुपोषण एवं शोषण, महिलाओं की सुरक्षा, महिलाओं के साथ होने वाली बलात्कार की घटनाएं, अश्लील हरकतें और विशेष रूप से उनके खिलाफ होने वाले अपराध को एक बार फिर चर्चा में लाकर सार्थक वातावरण का निर्माण किया जायेगा। लेकिन इन सबके बावजूद एक टीस से मन में उठती है कि आखिर नारी कब तक भोग की वस्तु बनी रहेगी? उसका जीवन कब तक खतरों से घिरा रहेगा? बलात्कार, छेड़खानी, भ्रूण हत्या और दहेज की धधकती आग में वह कब तक भस्म होती रहेगी? कब तक उसके अस्तित्व एवं अस्मिता को नौचा जाता रहेगा? विडम्बनापूर्ण तो यह है कि महिला दिवस जैसे आयोजन भी नारी को उचित सम्मान एवं गौरव दिलाने की बजाय उनका दुरुपयोग करने के माध्यम बनते जा रहे हैं।
महिलाओं के प्रति एक अलग तरह का नजरिया इन सालों में बनने लगा है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नारी के संपूर्ण विकास की संकल्पना को प्रस्तुत करते हुए अनेक योजनाएं लागू की है, जिनमें अब नारी सशक्तीकरण और सुरक्षा के अलावा और भी कई आयाम जोडे़ गए हैं। सबसे अच्छी बात इस बार यह है कि समाज की तरक्की में महिलाओं की भूमिका को आत्मसात किया जाने लगा है। आज भी आधी से अधिक महिला समाज को पुरुषवादी सोच के तहत बहुत से हकों से वंचित किया जा रहा है। वक्त बीतने के साथ सरकार को भी यह बात महसूस होने लगी है। शायद इसीलिए सरकारी योजनाओं में महिलाओं की भूमिका को अलग से चिह्नित किया जाने लगा है।
एक कहावत है कि औरत जन्मती नहीं, बना दी जाती है और कई कट्ट्टर मान्यता वाले औरत को मर्द की खेती समझते हैं। कानून का संरक्षण नहीं मिलने से औरत संघर्ष के अंतिम छोर पर लड़ाई हारती रही है। इसीलिये आज की औरत को हाशिया नहीं, पूरा पृष्ठ चाहिए। पूरे पृष्ठ, जितने पुरुषों को प्राप्त हैं। पर विडम्बना है कि उसके हिस्से के पृष्ठों को धार्मिकता के नाम पर ‘धर्मग्रंथ’ एवं सामाजिकता के नाम पर ‘खाप पंचायते’ घेरे बैठे हैं। पुरुष-समाज को उन आदतों, वृत्तियों, महत्वाकांक्षाओं, वासनाओं एवं कट्टरताओं को अलविदा कहना ही होगा जिनका हाथ पकड़कर वे उस ढ़लान में उतर गये जहां रफ्तार तेज है और विवेक अनियंत्रण हैं जिसका परिणाम है नारी पर हो रहे नित-नये अपराध और अत्याचार। पुरुष-समाज के प्रदूषित एवं विकृत हो चुके तौर-तरीके ही नहीं बदलने हैं बल्कि उन कारणों की जड़ों को भी उखाड़ फेंकना है जिनके कारण से बार-बार नारी को जहर के घूंट पीने एवं बेचारगी को जीने को विवश होना पड़ता है। पुरुषवर्ग नारी को देह रूप में स्वीकार करता है, लेकिन नारी को उनके सामने मस्तिष्क बनकर अपनी क्षमताओं का परिचय देना होगा, उसे अबला नहीं, सबला बनना होगा, बोझ नहीं शक्ति बनना होगा।
इसे भी पढ़ें: women's day special: घर में बिस्किट बनाने से लेकर IPO तक का रजनी बेक्टर्स का सफर!
‘यत्र पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता’- जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। किंतु आज हम देखते हैं कि नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे ‘भोग की वस्तु’ समझकर आदमी ‘अपने तरीके’ से ‘इस्तेमाल’ कर रहा है, यह बेहद चिंताजनक बात है। आज अनेक शक्लों में नारी के वजूद को धुंधलाने की घटनाएं शक्ल बदल-बदल कर काले अध्याय रच रही है। देश में गैंग रेप की वारदातों में कमी भले ही आयी हो, लेकिन उन घटनाओं का रह-रह कर सामने आना त्रासद एवं दुःखद है। आवश्यकता लोगों को इस सोच तक ले जाने की है कि जो होता आया है वह भी गलत है। महिलाओं के खिलाफ ऐसे अपराधों को रोकने के लिए कानूनों की कठोरता से अनुपालना एवं सरकारों में इच्छाशक्ति जरूरी है। कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न के विरोध में लाए गए कानूनों से नारी उत्पीड़न में कितनी कमी आयी है, इसके कोई प्रभावी परिणाम देखने में नहीं आये हैं, लेकिन सामाजिक सोच में एक स्वतः परिवर्तन का वातावरण बन रहा है, यहां शुभ संकेत है। महिलाओं के पक्ष में जाने वाले इन शुभ संकेतों के बावजूद कई भयावह सामाजिक सच्चाइयां बदलने का नाम नहीं ले रही हैं।
देश के कई राज्यों में लिंगानुपात खतरे के निशान के करीब है। देश की राजधानी में महिलाओं के हक के लिए चाहे जितने भी नारे लगाए जाएं, लेकिन खुद दिल्ली शहर से भी बुरी खबरें आनी कम नहीं हुई हैं। तमाम राज्य सरकारों को अपनी कागजी योजनाओं से खुश होने के बजाय अपनी कमियों पर ध्यान देना होगा। योजना अपने आप में कोई गलत नहीं होती, कमी उसके क्रियान्वयन में होती है। कुछ राज्यों में बेटी की शादी पर सरकार की तरफ से एक निश्चित रकम देने की स्कीम है। इससे बेटियों की शादी का बोझ भले ही कम हो, लेकिन इससे बेटियों में हीनता की भावना भी पनपती है। ऐसी योजनाओं से शिक्षा पर अभिभावकों का ध्यान कम जाएगा। जरूरत नारी का आत्म-सम्मान एवं आत्मविश्वास कायम करने की है, उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की है। नारी सोच बदलने की है। उन पर जो सामाजिक दबाव बनाया जाता है उससे निकलने के लिए उनको प्रोत्साहन देना होगा। ससुराल से निकाल दिए जाने की धमकी, पति द्वारा छोड़ दिए जाने का डर, कामकाजी महिलाओं के साथ कार्यस्थलों पर भेदभाव, दोहरा नजरियां, छोटी-छोटी गलतियों पर सेवामुक्त करने की धमकी, बड़े अधिकारियों द्वारा सैक्सअल दबाब बनाने, यहां तक कि जान से मार देने की धमकी के जरिये उन पर ऐसा दबाव बनाया जाता है। इन स्थितियों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है नारी को खुद हिम्मत जुटानी होगी, साहस का परिचय देना होगा लेकिन साथ ही समाज को भी अपने पूर्वाग्रह छोड़ने के लिए तैयार करना होगा। इन मुद्दों पर सरकारी और गैरसरकारी, विभिन्न स्तरों पर सकारात्मक नजरिया अपनाया जाये तो इससे न केवल महिलाओं का, बल्कि पूरे देश का संतुलित विकास सुनिश्चित किया जा सकेगा।
रामायण रचयिता आदि कवि महर्षि वाल्मीकि की यह पंक्ति-‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ जन-जन के मुख से उच्चारित है। प्रारंभ से ही यहाँ ‘नारीशक्ति’ की पूजा होती आई है फिर क्यों नारी अत्याचार बढ़ रहे हैं? क्यों महिला दिवस मनाते हुए नारी अस्तित्व एवं अस्मिता को सुरक्षा देने की बात की जाती है? क्यों उसे दिन-प्रतिदिन उपेक्षा एवं तिरस्कार का सामना करना पड़ता है। इसके साथ-साथ भारतीय समाज में आई सामाजिक कुरीतियाँ जैसे सती प्रथा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, बहू पति विवाह और हमारी परंपरागत रूढ़िवादिता ने भी भारतीय नारी को दीन-हीन कमजोर बनाने में अहम भूमिका अदा की। बदलते परिवेश में आधुनिक महिलाओं के लिए यह आवश्यक है कि मैथिलीशरण गुप्त के इस वाक्य-“आँचल में है दूध” को सदा याद रखें। उसकी लाज को बचाएँ रखें। बल्कि एक ऐसा सेतु बने जो टूटते हुए को जोड़ सके, रुकते हुए को मोड़ सके और गिरते हुए को उठा सके।
- ललित गर्ग
Related Topics
International Women Day Women day International Women Day 2021 8 मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस women day date 2021 womens day womens day 2021 womens day 2021 date womens day 2021 date in india international womens day 2021 international womens day 2021 date अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021 महिला दिवस महिला दिवस 2021 कब मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विमेंस डे विमेंस डे 2021पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के बावजूद नारी अभी भी प्रताड़ित है
- सुखी भारती
- मार्च 6, 2021 16:16
- Like

महादेवी वर्मा ने नारी की परिभाषा देते हुए कहा− 'नारी सिर्फ हाड़−मांस से बने पुतले का नाम नहीं अपितु आदिकाल से लेकर आज तक उसने विकास पथ पर पुरुष का साथ दिया। नर के शापों को खुद पर झेल कर वरदानों से उसके जीवन में अथाह शक्ति का संचार किया।'
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष 8 मार्च को पूरे विश्व में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। कहीं इसे महिलाओं के सम्मान में समर्पित एक पर्व के रूप में मनाया जाता है तो कहीं पर स्त्री−पुरुष की समानता−स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है। कहीं पर महिला सशक्तिकरण में की जा रही कोशिशों के रूप में इस दिन की खास अहमीयत है। परंतु 1909 से लेकर 2020 तक विश्व भर में 111 अंतर राष्ट्रीय महिला दिवस मनाए जाने के बावजूद भी नारी को उसके योग्य सम्मान नहीं मिल पाया। वैज्ञानिक युग में पुरुषों के समकक्ष अपनी भागीदारी सिद्ध करने वाली नारी अभी भी प्रताड़ित है। एक तरफ कल्पना चावला, ऐलिन कोलिन्ज़, वैलेन्टाईना तेरोशकोवा, सुनीता विलीयमज़ ने अंतरिक्ष में अपनी पहचान बनाई तो वहीं सानिया मिर्ज़ा, सायना नेहवाल एवं पी.वी. सिंधु इत्यादि महिलाओं ने खेल जगत को अपनी प्रतिभा व कौशल से विस्मित करके रख दिया। चंदा कोचर, इंद्रा नूई जैसी प्रतिभाशाली औरतें ने पुरुषों के वर्चस्व वाले Finance and entrepreneurship के क्षेत्र में अपनी योग्यता का लोहा मनवाया। वहीं किरण मजमूदार शा जैसी नारियों का biotechnology, industrial enzymes निर्माण के सबसे मुश्किल माने जाने वाले क्षेत्र में उन्नति के नए शिखरों को छूकर नए आयाम स्थापित किए। वहीं दूसरी ओर नारी के साथ होती निरंतर हिंसा, अपराध, शोषण समाज के माथे के काले स्याह कलंक हैं जो नारी की उलझी हुई विरोधी स्थिति को उजागर करते हैं। अगर हम विश्व सेहत संगठन के आंकड़ों पर दृष्टिपात करेंगे तो पता चलेगा−
इसे भी पढ़ें: women's day special: घर में बिस्किट बनाने से लेकर IPO तक का रजनी बेक्टर्स का सफर!
1. विश्व में हर 3 में से 1 औरत (36 प्रतिशत) घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं। इनमें से लगभग 38 प्रतिशत औरतों की पति या निजी संबंध रखते हुए कुछ और पुरुषों द्वारा हत्या कर दी जाती है।
2. अंतरराष्ट्रीय एसिड सर्वाइवर ट्रस्ट के अनुसार विश्व स्तर पर प्रत्येक वर्ष महिलाओं पर तेज़ाबी हमले के 1500 सौ से भी ज्यादा मामले दर्ज होते हैं।
3. अंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठन के अनुसार वर्ष 2012 में विश्व भर में 16 करोड़ औरतों को जर्बदस्ती मजदूरी करने को विवश किया गया एवं इसी दौरान ज्यादातर औरतें छेड़छाड़ की शिकार हुईं।
4. विश्व में 79 प्रतिशत महिलाओं को गलत तरीके द्वारा बेचा और खरीदा जा रहा है। इन औरतों को जर्बदस्ती देह व्यापार में धकेल दिया जाता है।
5. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार प्रत्येक वर्ष विश्व में 2,55,000 महिलाओं के साथ बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं। अमेरिका में प्रत्येक 5 में से 1 औरत का शील भंग किया जाता है। दक्षिणी अमेरिका में प्रत्येक 17 सैकिंड में 1 महिला का शील भंग किया जाता है। चीन के आंकड़े भी कुछ कम दहलाने वाले नहीं हैं क्योंकि चीन में 57 प्रतिशत से भी ज्यादा पुरुषों ने अपने जीवन में एक बार एवं 9 प्रतिशत पुरुषों ने 4 या फिर 4 से भी ज्यादा स्त्रियों का शील भंग किया। भारत देश भी कहाँ पीछे रहा यहाँ पर भी ऐसी वीभत्स घटनाएं प्रत्येक घंटे में नारियों के शील का हनन करती हैं।
सबसे हैरानी की बात तो यह है कि ऊपर वर्णित सभी हिंसात्मक व अपराधों की शिकार सिर्फ अनपढ़ या ग्रामीण औरत नहीं अपितु पढ़ी−लिखी व आत्मनिर्भर नारी भी हैं। इस स्थिति में शिक्षा एवं रोज़गार महिला सशक्तिकरण का आधार स्तम्भ कहना कहाँ तक मान्य है? हमें गहराई से चिंतन करना पड़ेगा कि आज भी नारी हिंसा एवं शोषण का शिकार क्यों हो रही है? तो इसका एक ही मुख्य कारण उभर कर सामने आया कि इसकी जड़ें लिंग आधारित घटिया सोच एवं पक्षपात में ही निहित हैं। जिसकी शिकार गृहिणी एवं कामकाजी, आत्मनिर्भर महिलाएँ भी होती हैं। ऐसी सोच रखने वाले लोग इस बात को भूल जाते हैं कि जिस औरत के अंदर एक भ्रूण को विकसित करने की महान शक्ति है उस माँ में स्वयं कितनी शक्ति होगी? हमारे ऋषियों ने नारी की इस शक्ति को बहुत पहले ही जान लिया था। इसलिए उन्होंने अर्थववेद में वर्णित किया− माता भूमिः पुत्रो अहं पृथियाः भूमि मेरी माता है एवं हम इस धरती के पुत्र हैं। इन पंक्तियों में स्पष्ट तौर पर नारी की महिमा की घोषणा हो गई थी।
इसे भी पढ़ें: NASA में भारतीय महिला ने बिखेरा जलवा, महिला दिवस पर पढ़ें स्वाति मोहन की कहानी
नेपोलीयन बोनापार्ट ने नारी की महानता बताते हुए कहा था− आप मुझे एक योग्य माता दे दें। मैं आपको एक योग्य राष्ट्र दे दूँगा। हम शहीद भगत सिंह जी की माता विद्यावती जी को कैसे भूल सकते हैं? कहा जाता है कि जब उनका पुत्र फांसी पर चढ़ा था तो उनकी माता जी की आँखों में अश्रु देखकर उनकी माता जी को पत्रकारों ने प्रश्न पूछा था कि आप तो एक शहीद की माता हैं फिर आप की आंखें नम क्यों हो रही हैं? आपको तो गर्व होना चाहिए कि आपका बेटा इतनी कम आयु में देश के हित लिए शहीद हुआ है। पत्रकारों की बात सुनकर माता विद्यावती जी ने जवाब दिया कि मैं अपने पुत्र की शहीदी पर नहीं रो रही हूँ अपितु अपनी कोख पर रो रही हूँ कि काश मेरी कोख से एक और भगत सिंह पैदा हुआ होता। तो मैं उसे भी भारत माता की गुलामी की बेड़ियां तोड़ने के लिए समर्पित कर देती। माता विद्यावती जी के मुख से निकले ये शब्द हमारे लिए सुनहरे शब्द बन गए जिनसे मानव समाज अनादि काल तक मार्गदर्शन प्राप्त करता रहेगा। महर्षि पाणिनी भी कहते हैं− 'जो पुरुष स्त्री से शिक्षा प्राप्त करेगा वह उत्तम बुद्धि वाला श्रेष्ठ पुरुष बन जाएगा।' महाकवि जय शंकर नारी से संबंधित बहुत ही सुंदर पंक्तियों का उच्चारण करते हुए कहते हैं− 'नारी तुम केवल श्रद्धा हो को याद कर अपने कर्त्तव्य को निभा नवयुग का स्वर्णिम इतिहास बन जाओ।' इसी प्रकार राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त नारी को नर से ज्यादा श्रेष्ठ मानते हुए कहते हैं− 'एक नहीं दो−दो मात्राएं नर से बढ़कर नारी।' महादेवी वर्मा ने नारी की परिभाषा देते हुए कहा− 'नारी सिर्फ हाड़−मांस से बने पुतले का नाम नहीं अपितु आदिकाल से लेकर आज तक उसने विकास पथ पर पुरुष का साथ दिया। नर के शापों को खुद पर झेल कर वरदानों से उसके जीवन में अथाह शक्ति का संचार किया।'
विनोबा भावे जी ने नारी की इस अदभुत् शक्ति को वैज्ञानिक ढंग से प्रमाणित करते हुए कहा है− 'कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि स्त्री एवं पुरुष समान उम्र के हों, एक समान काम करते हों तो पुरुष का आहार 2000 कैलोरी का होगा एवं स्त्री को सिर्फ 1600 कैलोरी ही काफी हैं। यही नहीं स्त्रियाँ पुरुषों से ज्यादा लंबा जीवन व्यतीत करती हैं। भाव स्त्री के शरीर में पुरुष से ज्यादा जीवनी शक्ति निवास करती है। इसलिए महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम आराम की जरूरत होती है।'
शायद तभी हमारे महापुरुषों ने स्त्री को 'महिला' की उपाधि दी। महिला भाव जो महान शक्ति की स्वामिनी है। नारी की इसी महानता को बयां करते हुए पाश्चात्य कवि William Goding ने भी कहा है− जो नारी यह दिखावा करती है कि वह पुरुष से श्रेष्ठ है तो वह मूर्ख है क्योंकि नारी इससे कहीं ज्यादा महान एवं शक्तिशाली है। असलियत तो यह कि पुरुष जो भी नारी को प्रदान करता है नारी उसे भी महान बना देती है− If you give her a sperm she will give you a baby. If you give her a house, she will give you a home. If you give her groceries, she will give you a meal. If you give her a smile, she will give you her heart. She multiplies and enlarges what is given to her. आदि शंकराचार्य जी नारी की महिमा में कहते हैं− कुपुत्रो जायेता क्वाचिदापि न भवति अर्थात् संतान कुपुत्र पैदा हो सकती है लेकिन माता कभी कुमाता नहीं हो सकती। वेदों का भी कथन है−
वस्यां इन्द्रासि मे पितुः।
माता च मे छदयथः समा वासो।।
अर्थात् हे इन्द्र आप मेरे पिता से बढ़कर हैं। हे ईश्वर! आप और मेरी माता यह दो ही ऐसे हैं जो मेरे समस्त पापों एवं अपराधों को ढंक लेते हो। इसलिए कहा गया− त्वमेव माता च पिता त्वमेव। त्वमेव बन्धु च सखा त्वमेव। यहाँ पर भी ईश्वर के लिए सबसे पहले माता संबोधन ही आया है।
तभी तो भगवान शंकर जी महर्षि गार्ग्य को समझाते हैं− यदगृहे रमते नारी, देवताः कोटिशो वत्स न त्यजन्ति गृहं हि तत्। अर्थात् जिस स्थान पर सदगुणों से भरपूर स्त्री सम्मान सहित निवास करती है। करोड़ों देवी देवता भी उस स्थान को त्यागकर नहीं जाते।
इसलिए आज आवश्यकता है सदियों पहले संत अरस्तु द्वारा स्थापित किए गए सूत्र को समझने की− Equals should be treated equally भाव जो समान रूप से कार्यरत हैं उन्हें समान रूप में ही देखना चाहिए। लेकिन आज इतनी उन्नति के बावजूद भी हमारे समाज में स्त्री−पुरुषों के अधिकारों में गहरी खाई नज़र आती है। जिसे पाटना इस समय की महती आवश्यकता है।
-सुखी भारती
Related Topics
International Women Day Women day International Women Day 2021 8 मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस women day date 2021 womens day womens day 2021 womens day 2021 date womens day 2021 date in india international womens day 2021 international womens day 2021 date अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021 महिला दिवस महिला दिवस 2021 कब मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विमेंस डे विमेंस डे 2021 महिला सशक्तिकरणविश्व वन्यजीव दिवस: खतरे में है सैंकड़ों जीव प्रजातियों का अस्तित्व
- योगेश कुमार गोयल
- मार्च 3, 2021 16:05
- Like

देश में हर साल बड़ी संख्या में बाघ मर रहे हैं, हाथी कई बार ट्रेनों से टकराकर मौत के मुंह में समा रहे हैं, इनमें से कईयों को वन्य तस्कर मार डालते हैं। कभी गांवों या शहरों में बाघ घुस आता है तो कभी तेंदुआ और घंटों-घंटों या कई-कई दिनों तक दहशत का माहौल बन जाता है।
जैव विविधता की समृद्धि ही धरती को रहने तथा जीवनयापन के योग्य बनाती है किन्तु विड़म्बना है कि निरन्तर बढ़ता प्रदूषण रूपी राक्षस वातावरण पर इतना खतरनाक प्रभाव डाल रहा है कि जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की अनेक प्रजातियां धीरे-धीरे लुप्त हो रही हैं। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 दिसम्बर 2013 को अपने 68वें सत्र में 3 मार्च के दिन को विश्व वन्यजीव दिवस के रूप में अपनाए जाने की घोषणा की। अगर भारत में कुछ जीव-जंतुओं की प्रजातियों पर मंडराते खतरों की बात करें तो जैव विविधता पर दिसम्बर 2018 में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (सीबीडी) में पेश की गई छठी राष्ट्रीय रिपोर्ट से पता चला था कि अंतर्राष्ट्रीय ‘रेड लिस्ट’ की गंभीर रूप से लुप्तप्रायः और संकटग्रस्त श्रेणियों में भारतीय जीव प्रजातियों की सूची वर्षों से बढ़ रही है। इस सूची में शामिल प्रजातियों की संख्या में वृद्धि जैव विविधता तथा वन्य आवासों पर गंभीर तनाव का संकेत है। भारत में इस समय नौ सौ से भी अधिक दुर्लभ प्रजातियां खतरे में बताई जा रही हैं। यही नहीं, विश्व धरोहर को गंवाने वाले देशों की सूची में दुनियाभर में भारत का चीन के बाद सातवां स्थान है।
इसे भी पढ़ें: तारापुर शहीद दिवस: जब 34 लोगों की शहादत पाकर तारापुर थाना पर लहराने लगा तिरंगा
हिन्दी अकादमी दिल्ली के सहयोग से प्रकाशित चर्चित पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ के मुताबिक भारत का समुद्री पारिस्थितिकीय तंत्र करीब 20444 जीव प्रजातियों के समुदाय की मेजबानी करता है, जिनमें से 1180 प्रजातियों को संकटग्रस्त तथा तत्काल संरक्षण के लिए सूचीबद्ध किया गया है। अगर देश में प्रमुख रूप से लुप्त होती कुछेक जीव-जंतुओं की प्रजातियों की बात करें तो कश्मीर में पाए जाने वाले हांगलू की संख्या सिर्फ दो सौ के आसपास रह गई है, जिनमें से करीब 110 दाचीगाम नेशनल पार्क में हैं। इसी प्रकार आमतौर पर दलदली क्षेत्रों में पाई जाने वाली बारहसिंगा हिरण की प्रजाति अब मध्य भारत के कुछ वनों तक ही सीमित रह गई है। वर्ष 1987 के बाद से मालाबार गंधबिलाव नहीं देखा गया है। हालांकि माना जाता है कि इनकी संख्या पश्चिमी घाट में फिलहाल दो सौ के करीब बची है। दक्षिण अंडमान के माउंट हैरियट में पाया जाने वाला दुनिया का सबसे छोटा स्तनपायी सफेद दांत वाला छछूंदर लुप्त होने के कगार पर है। एशियाई शेर भी गुजरात के गिर वनों तक ही सीमित हैं।
देश में हर साल बड़ी संख्या में बाघ मर रहे हैं, हाथी कई बार ट्रेनों से टकराकर मौत के मुंह में समा रहे हैं, इनमें से कईयों को वन्य तस्कर मार डालते हैं। कभी गांवों या शहरों में बाघ घुस आता है तो कभी तेंदुआ और घंटों-घंटों या कई-कई दिनों तक दहशत का माहौल बन जाता है। यह सब वन क्षेत्रों के घटने और विकास परियोजनाओं के चलते वन्य जीवों के आश्रय स्थलों में बढ़ती मानवीय घुसपैठ का ही परिणाम है कि वन्य जीवों तथा मनुष्यों का टकराव लगातार बढ़ रहा है और वन्य प्राणी अभयारण्यों की सीमा पार कर बाघ, तेंदुए इत्यादि वन्य जीव अब अक्सर बेघर होकर भोजन की तलाश में शहरों का रूख करने लगे हैं, जो कभी खेतों में लहलहाती फसलों को तहस-नहस कर देते हैं तो कभी इंसानों पर जानलेवा हमले कर देते हैं। ‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर’ (आईयूसीएन) के मुताबिक भारत में पौधों की करीब 45 हजार प्रजातियां पाई जाती हैं और इनमें से भी 1336 प्रजातियों पर लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। इसी प्रकार फूलों की पाई जाने वाली 15 हजार प्रजातियों में से डेढ़ हजार प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर हैं।
‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ पुस्तक के अनुसार प्रदूषण तथा स्मॉग भरे वातावरण में कीड़े-मकौड़े सुस्त पड़ जाते हैं। प्रदूषण का जहर अब मधुमक्खियों तथा सिल्क वर्म जैसे जीवों के शरीर में भी पहुंच रहा है। रंग-बिरंगी तितलियों को भी इससे काफी नुकसान हो रहा है। यही नहीं, अत्यधिक प्रदूषित स्थानों पर तो पेड़-पौधों पर भी इसका इतना बुरा प्रभाव पड़ रहा है कि हवा में सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन तथा ओजोन की अधिक मात्रा के चलते पेड़-पौधों की पत्तियां भी जल्दी टूट जाती हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों का स्पष्ट कहना है कि अगर इस ओर जल्द ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में स्थितियां इतनी खतरनाक हो जाएंगी कि धरती से पेड़-पौधों तथा जीव-जंतुओं की कई प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी। पृथ्वी पर पेड़ों की संख्या घटने से अनेक जानवरों और पक्षियों से उनके आशियाने छिन रहे हैं, जिससे उनका जीवन संकट में पड़ रहा है।
इसे भी पढ़ें: विश्व रेडियो दिवस: बदलते जमाने में भी लोकप्रियता बरकरार है
वन्य जीवों को विलुप्त होने से बचाने के लिए भारत में पहला कानून ‘वाइल्ड एलीकेंट प्रोटेक्शन एक्ट’ ब्रिटिश शासनकाल में 1872 में बनाया गया था। 1927 में ब्रिटिश शासनकाल में ही ‘भारतीय वन अधिनियम’ बनाकर वन्य जीवों का शिकार तथा वनों की अवैध कटाई को अपराध की श्रेणी में रखते हुए दंड का प्रावधान किया गया। 1956 में एक बार फिर ‘भारतीय वन अधिनियम’ पारित किया गया और वन्य जीवों के बिगड़ते हालातों में सुधार के लिए 1983 में ‘राष्ट्रीय वन्य जीव योजना’ की शुरूआत की गई, जिसके तहत कई नेशनल पार्क और वन्य प्राणी अभयारण्य बनाए गए। हालांकि नेशनल पार्क बनाने का सिलसिला ब्रिटिश काल में ही शुरू हो गया था, जब सबसे पहला नेशनल पार्क 1905 में असम में बनाया गया था और उसके बाद दूसरा नेशनल पार्क ‘जिम कार्बेट पार्क’ 1936 में बंगाल टाइगर के संरक्षण के लिए उत्तराखण्ड में बनाया गया था लेकिन आज नेशनल पार्कों की संख्या बढ़कर 103 हो गई है और देश में कुल 530 वन्य जीव अभयारण्य भी हैं, जिनमें 13 राज्यों में 18 बाघ अभयारण्य भी स्थापित किए गए हैं।
आजादी के बाद से देश में वन्य जीवों के संरक्षण के लिए कई परियोजनाएं चलाई जा रही हैं, जिनमें ‘कस्तूरी मृग परियोजना 1970’, ‘प्रोजेक्ट हुंगल 1970’, ‘गिर सिंह परियोजना 1972’, ‘बाघ परियोजना 1973’, ‘कछुआ संरक्षण परियोजना 1975’, ‘गैंडा परियोजना 1987’, ‘हाथी परियोजना 1992’, ‘गिद्ध संरक्षण परियोजना 2006’, ‘हिम तेंदुआ परियोजना 2009’ इत्यादि शामिल हैं। इस तरह की कई परियोजनाएं शुरू किए जाने के बावजूद शेर, बाघ, हाथी, गैंडे इत्यादि अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। भारत फिलहाल जैव विविधता पर करीब दो अरब डॉलर खर्च कर रहा है और इसे वन्य जीवों के संरक्षण के लिए चलाई जा रही परियोजनाओं की सफलता ही माना जाना चाहिए कि जहां 2006 में देश में व्यस्क बाघों की संख्या 1411 थी, वह 2010 में बढ़कर 1706, 2014 में 2226 और 2018 में 2967 हो गई। हालांकि बाघों की बढ़ी संख्या का यह आंकड़ा अभी संतोषजनक नहीं है क्योंकि इसी देश में कभी बाघों की संख्या करीब 40 हजार हुआ करती थी। सरकारी योजनाओं की सफलता ही असर है कि आईयूसीन द्वारा शेर जैसी पूंछ वाले बंदरों की संख्या बढ़ने के कारण इन्हें 25 लुप्तप्रायः जानवरों की सूची से हटा दिया गया है। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार 2011 में भारत में जानवरों की 193 नई प्रजातियां भी पाई गई।
माना कि धरती पर मानव की बढ़ती जरूरतों और सुविधाओं की पूर्ति के लिए विकास आवश्यक है लेकिन यह हमें ही तय करना होगा कि विकास के इस दौर में पर्यावरण तथा जीव-जंतुओं के लिए खतरा उत्पन्न न हो। अगर विकास के नाम पर वनों की बड़े पैमाने पर कटाई के साथ-साथ जीव-जंतुओं तथा पक्षियों से उनके आवास छीने जाते रहे और ये प्रजातियां धीरे-धीरे धरती से एक-एक कर लुप्त होती गई तो भविष्य में उससे उत्पन्न होने वाली भयावह समस्याओं और खतरों का सामना हमें ही करना होगा। बढ़ती आबादी तथा जंगलों के तेजी से होते शहरीकरण ने मनुष्य को इस कदर स्वार्थी बना दिया है कि वह प्रकृति प्रदत्त उन साधनों के स्रोतों को भूल चुका है, जिनके बिना उसका जीवन ही असंभव है। आज अगर खेतों में कीटों को मारकर खाने वाले चिडि़या, मोर, तीतर, बटेर, कौआ, बाज, गिद्ध जैसे किसानों के हितैषी माने जाने वाले पक्षी भी तेजी से लुप्त होने के कगार हैं तो हमें आसानी से समझ लेना चाहिए कि हम भयावह खतरे की ओर आगे बढ़ रहे हैं और हमें अब समय रहते सचेत हो जाना चाहिए। हमें अब भली-भांति समझ लेना होगा कि पृथ्वी पर जैव विविधता को बनाए रखने के लिए सबसे जरूरी और सबसे महत्वपूर्ण यही है कि हम धरती की पर्यावरण संबंधित स्थिति के तालमेल को बनाए रखें।
- योगेश कुमार गोयल
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और पर्यावरण मामलों के जानकार हैं। गत वर्ष इन्होंने पर्यावरण पर चर्चित पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ लिखी है।)

