अबकी बार रक्षाबंधन पर बंधेगी वर्चुअल राखी

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भाई-बहनों को अबकी बार वर्चुअल रक्षा बंधन से ही संतोष करना होगा। करीब आठ महीनों से कोरोना का भय समूचे संसार में व्याप्त है। सभी त्योहार, रिवायतें, पार्टी-फंक्शन, शादी-विवाह आदि कार्यक्रमों में वर्चुअलरूपी खानापूर्ति हो रही है।

रक्षाबंधन भाई-बहन के अटूट रिश्तों को एहसास कराता है और बहन को दी हुई रक्षा रूपी कसमों की गवाह देता है। त्योहार के दिन भाई अपनी बहन के चरणों में नतमस्तक होकर हाजिरी देता है और बहन के सिर पर हाथ रखकर उसकी ताउम्र रक्षा की सौगंद खाता है। ये तारीख प्रत्येक वर्ष दस्तक देती है। बहन अपने भाई की कलाई पर अपने अरमानों से गूथा हुआ पवित्र धागा बाँधकर अपने लिए रक्षा की कसम खिलवाती है, उसे रक्षाबंधन कहा जाता है। लेकिन इस बार ये त्योहार कुछ फीका सा है। कारण, पूरे संसार में फैली वैश्विक महामारी कोराना के चलते। कोरोना से बचाव के लिए लोग सतर्कता बरते हुए हैं, अपने-अपने घरों में हैं। इसलिए भाई-बहनों का मिलान इस बार राखी पर कम होगा।

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भाई-बहनों को अबकी बार वर्चुअल रक्षाबंधन से ही संतोष करना होगा। करीब आठ महीनों से कोरोना का भय समूचे संसार में व्याप्त है। सभी त्योहार, रिवायतें, पार्टी-फंक्शन, शादी-विवाह आदि कार्यक्रमों में वर्चुअलरूपी खानापूर्ति हो रही है। वर्चुअल और डिजिटल सिस्टम में परंपरागत तरीकों जैसा स्वाद नहीं, लेकिन संकट का समय है, गुजारना तो होगा ही। राखी के त्योहार का स्वरूप वैसे भी पिछले कुछ दशकों के मुकाबले बदल चुका है। त्योहार पर आधुनिकता हावी हो चुकी है। भारतीय संस्कृति से लबरेज पारंपरिक राखी त्योहार पर अब फैशन व स्टेट्स सिंबल का रंग चढ़ चुका है। इस बार तो ये त्योहार फिलहाल कोरोना की चपेट में है। लेकिन सामान्य वक्त में भी देखें, तब भी बदला हुआ सा लगेगा।

बाज़ार हर पर्व को बदलने का मादा रखता है, राखी को भी बदल दिया। राखी के साथ मिठाई की जगह चॉकलेट भेजा जाने लगा, बहनों को साड़ी या पैसे की जगह स्मार्ट फ़ोन या टैबलेट दिया जाने लगा। ये सब बदलते वक़्त का इशारा ही तो है। रक्षाबंधन पर पिछले कुछ सालों से चाइना ने कब्जा किया हुआ था। बार्डर पर भारत-चीन की तनातनी के बाद इस बार भारतीय बाजारों में उनके सामानों का बहिष्कार शुरू हो गया है। चीन से निर्मित राखियां बाजारों से गायब हैं। कुल मिलाकर भारतीय त्योहारों पर भौतिकता धीरे-धीरे हावी होती जा रही है। हमें तत्काल प्रभाव से इससे बचने की जरूरत है।

भारतीय सभ्यता में रक्षाबंधन का बड़ा महत्व माना गया है। राखी का वास्तविक अर्थ सामने वाले को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना होता है। इस दिन बहनें भाइयों को सूत की राखी बाँधकर अपनी जीवन रक्षा का दायित्व उन पर सौंपती हैं। एक जमाना था जब कुछ ही पैसों में बहनें बाजारों से यह धागा खरीदकर भाइयों के हाथों में बांध कर उनसे सुरक्षा और रक्षा का वचन लेती थीं। पर, मौजूदा समय में रक्षा बंधन पूरी तरह से बाजार का हिस्सा व स्टेट्स सिंबल बन गया है। यह त्योहार अब प्रत्यक्ष रूप बाजार से जुड़ा मुनाफ़े का सौदा हो गया। बड़ी कंपनियां राखी बनाने का आयात-निर्यात करोड़ों में करती हैं। इस बार अच्छा लग रहा है कि बहनें ज्यादातर घरों में निर्मित राखियां अपने भाइयों को बांध रही हैं। सादगी के रूप में त्योहार मना रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे गुज़रे जमाने ने एक बार फिर दस्तक दे दी है।

बदलाव की बात करें तो एक वक्त था, जब बाजार में सिर्फ और सिर्फ सूत या रेशम से बनीं राखियां ही मिला करती थी। गरीब व मध्यम वर्ग के लोग कच्चे सूत की डोरी बांध या बंधवा कर ही रक्षा बंधन का त्योहार बड़े चाव के साथ मना लेते थे। वहीं, अमीर लोग रेशम की या जरी की राखियों से राखी का त्योहार मनाते थे। महलों में राजा महाराजा चाँदी से बनी राखियां बंधाना पसंद करते थे। लेकिन अब राखी सूत की डोर कमजोर पड़ गई है उसकी जगह अब चांदी और महंगी से महंगी राखियां ने कब्ज़ा कर लिया है।

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रक्षाबंधन अब भावनाओं का कम, दिखावे का ज्यादा हो गया है। ज्यादा नहीं, नब्बे के दशक के बाद इस त्योहार पर बदलाव आना शुरू हुआ। सूत की एक डोरी से बांधने की परंपरा के इस पर्व के बदलाव के पीछे कई कारण हैं। राखी पर मार्केट का व्यवसाय करोड़ों में पहुँचता है। राखियां कब स्टेट्स सिंबल बन गईं पता ही नहीं चला? राखी पर बहनों ने सूत से निर्मित राखियों को त्याग कर डिज़ाइन राखियां पसंद करने लगीं। राखी के अब विभिन्न कॉमर्शियल ब्रांड बाजार में उपलब्ध होते हैं। राखी पर अब बहनों की डिमांड भी महंगी हो गई हैं। इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स, ज्वेलरी, इलेक्ट्रॉनिक नोटबुक से लेकर लैपटॉप, मोबाइल या दूसरे तोहफों की एडवांस डिमांड करती हैं। हालांकि गरीब व निम्न मध्य वर्ग में आज भी सस्ती फाइबर की राखी उसी प्रेम भाव से बांधी जाती हैं।

कोरोना संकट में वर्चुअल ही सही, पर ये सच है कि भारतीय धर्म संस्कृति के अनुसार रक्षाबंधन भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है। इस पर्व को कभी सलूनों का त्योहार कहा जाता था। उत्तर भारत में यह पर्व कुछ अलग ही महत्व रखता है। भाई-बहन के पावन प्रेम का प्रतीक यह पर्व सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इसके साथ अनेक मिथक व कथाएं इस त्योहार से जुड़ी हैं। शनि के इंद्र को रक्षा सूत्र से बंधने से लेकर कर्मावती व हुमायूं तथा द्रौपदी के कृष्ण की उंगली पर पट्टी बांधने की अनेकानेक मान्यताओं रक्षाबंधन से जुड़ी हैं। वहीं, राजा बलि का नाम लेकर तो आज भी हरेक धार्मिक कृत्य में पंडित यज्ञमान को डोरी बांधने हैं। इन सभी का एक ही आशय है अपने प्रिय की रक्षा की भावना व उसके लिए शुभकामनाएं देना।

डॉ. रमेश ठाकुर

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