वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2021 में आखिर पीछे क्यों हुआ भारत?

world happiness index
कमलेश पांडेय । Mar 25 2021 1:15PM

भारतीय संस्कृति की मान्यता रही है कि प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन यानी दुरुपयोग और उपभोग की बजाए समाज में स्थापित सेवा और त्याग की भावना से खुशी मिलती है। लेकिन आधुनिक पाश्चात्य संस्कृति अंधाधुंध प्रदर्शन और समग्र उपभोग को खुशी प्रतिबिंब करार देती है।

वैसे तो खुशी का सम्बन्ध मानव स्वभाव से है, लेकिन एक हद तक किसी भी देश में आमलोगों की खुशी वहां के शासन व्यवस्था की प्रकृति और प्रवृत्ति पर भी निर्भर करती है। इस मामले में भारतीय शासन व्यवस्था भी बेहद जटिल और उबाऊ है, जिससे वहां के लोगों की नैसर्गिक खुशी गायब हो चुकी है। यह बात हम नहीं कह रहे, बल्कि हालिया वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2021 जाहिर कर चुकी है। यह रिपोर्ट इस बात की भी तस्दीक करती है कि पाकिस्तान और बंगलादेश के लोग आज भी भारत के लोगों से ज्यादा खुश हैं। आखिर ऐसा क्यों है, इसकी पड़ताल जरूरी है।

वास्तव में यह स्थिति भारतीयों से ज्यादा भारतीय प्रशासन और उसको नियंत्रित करने वाली सियासत के लिए शर्मनाक है। वह इसलिए कि कभी विश्व गुरु समझा जाने वाला भारत आज खुशी के पैमाने पर भी अपने उन पड़ोसी देशों के सामने पिछड़ता नजर आ रहा है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसके सामने कुछ भी हैसियत नहीं रखते और विकास के विविध पैमाने पर कहीं नहीं टिकते। इसलिए यह सवाल मुखर है कि आखिर खुशी किस चीज से मिलती है, किसको मिलती है, कब और कैसे मिलती है। आखिर ऐसा ऐसा क्यों है कि भारतीयों के मनोमस्तिष्क के खुशी काफूर हो चुकी है? यह स्थिति कबतक बनी रहेगी और इसके  लिए एक हद तक जिम्मेदारी किसकी बनती है।

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यह अजीबोगरीब स्थिति है कि एक तरफ तो मोदी प्रशासन अमेरिका, रूस और चीन के मुकाबले कीप एंड बैलेंस की थ्योरी अपना कर भारत को भी एक वैश्विक ताकत के तौर पर स्थापित करने को आमादा है। लेकिन दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र संघ की ताजा वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2021 इस बात को इंगित कर रही है कि अपने शासक की सैन्य महत्वाकांक्षा और आधुनिक विकास की ललक की कीमत आम भारतीय अपनी खुशी गंवा कर चुका रहे हैं। फिलवक्त उनके जेहन से वह स्वाभाविक खुशी गायब हो चुकी है, जो उनके पड़ोसी देशों में अब भी मौजूद बताई जाती है।

भारतीय संस्कृति की मान्यता रही है कि प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन यानी दुरुपयोग और उपभोग की बजाए समाज में स्थापित सेवा और त्याग की भावना से खुशी मिलती है। लेकिन आधुनिक पाश्चात्य संस्कृति अंधाधुंध प्रदर्शन और समग्र उपभोग को खुशी प्रतिबिंब करार देती है। ऐसे में विकास सम्बन्धी पश्चिमी रोडमैप को अपनाने वाली सरकार को यह बताना चाहिए कि उसकी रणनीति में क्या खामी है जिससे भारतीय, पाकिस्तानियों या बंगलादेशियों से कम खुश हैं। यदि सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, संचार, आवास, खानपान, पर्यटन आदि क्षेत्रों में अंधाधुंध जनशोषक निजीकरण की बजाए संतुलित और मिश्रित विकास नजरिया रखती, तो लोग शायद उतने नाखुश नहीं होते, जितने कि आज हैं!

बताते चलें कि संयुक्त राष्ट्र संघ की वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2021 की सूची में शामिल 149 देश में से भारत 139वें नंबर पर हैं। जबकि, इस सूची में सबसे ऊपर फिनलैंड का नाम है। ऐसे में स्वाभाविक सवाल है कि आखिर क्या है इस रिपोर्ट में, और किसके पक्ष में जा रही है यह रिपोर्ट। वैसे तो वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट, यूएन की सतत विकास सॉल्युशंस नेटवर्क बनाती है। हालांकि, इस साल की खासियत यह है कि इस सूची में कोरोना वायरस और लोगों के उपर उसके असर को भी शामिल किया गया है। उसी के आधार पर इस सूची में बताया गया है कि किस देश के लोग अपने आपको कितना खुश मानते हैं।

 

कहना न होगा कि इस रिपोर्ट में भारतीयों की स्थिति चिंताजनक है। वह 149 देशों की सूची में 139वें पायदान पर हैं। काबिले गौर यह है कि बीते साल भारत 140वें नंबर पर था। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में निजी और टेलिफोनिक, दोनों ही माध्यमों के जरिए सैंपल लिए गए, लेकिन टेलिफोन के सैंप्ल की संख्या अधिक है। हालांकि, साल 2019 की तुलना में निजी प्रतिक्रियाएं अधिक हैं।

जहां तक अन्य देशों के नंबर की बात है तो इस सूची के अनुसार, फिनलैंड दुनिया का सबसे खुश देश हैं। इसके बाद क्रमश: आइलैंड, डेनमार्क, स्विट्जरलैंड, स्वीडन, जर्मनी और नॉर्वे का नंबर आथा है। ये सभी देश यूरोप में है।

वहीं, भारत से ऊपर कई एशियाई देश काबिज है। संयु्क्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट के अनुसार, चीन 84वें, पाकिस्तान 105वें और बांग्लादेश 101वें स्थान पर है।

अब सवाल यह है कि इस रिपोर्ट को तैयार करने का तरीका

क्या है, तो बताते चलें कि हैप्पीनेस स्टडी में देशों की सूची गैलप वर्ल्ड पोल के आधार पर तैयार की जाती है। इसकी प्रतिक्रियाओं को अन्य कारकों जैसे जीडीपी और सामाजिक सुरक्षा के साथ जोड़ा जाता है। दुनिया के सबसे अमीर देश होने के बावजूद इस सूची में अमेरिका 19वें स्थान पर है। यह सूची इस बात की चुगली कर रही है कि अमेरिकी और एशियाई देशों के मुकाबले यूरोपीय देशों के लोग ज्यादा खुश हैं, जबकि न तो उनके पास विशाल भूभाग है, न ही विशाल जनसंख्या है और न ही तथाकथित विकास का वे दम्भ भरते हैं। ये वही यूरोपीय देश हैं, जिनकी आपसी प्रतिस्पर्धा से दो-दो विश्वयुद्ध हो चुके हैं, लेकिन यदि ये खुश हैं, तो शेष दुनिया आज न कल खुश हो ही जाएगी। बस, जरूरत है इस खुशी के पल को समझने की। उसे सम्पूर्ण जगत में शेयर करने की।

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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