बड़ी संख्या में युवा नशे की जकड़न में आकर जीवन और मृत्यु के बीच झूल रहे हैं

National Youth Day
सुखी भारती । Jan 12 2021 4:45PM

नशाखोरी महामारी की तरह बढ़ती जा रही है। देश के युवाओं का बहुत बड़ा भाग नशे की जकड़न में आकर जीवन और मृत्यु के बीच में झूल रहा है। यह सही है कि आज का युवावर्ग कतिपय समस्याओं को लेकर तनाव में जीवन जी रहा है पर नशा तनाव को दूर करने का कतई साधन नहीं है।

भारत एक आध्यात्मिक राष्ट्र है। यहाँ की धर्म, त्याग, वैराग्य की अविरल वाहिनी धाराओं ने जहाँ इस धरा के निवासियों को मनसा, वाचा, कायेन पावन किया है वहीं पर दुःख दावानल से दुग्ध प्राणियों को भक्ति, ज्ञान और कर्म की त्रिवेणी ने अजस्र प्रवाहित शाँति सुध भी पिलाई है। जो भारत सदैव अपने निवासियों के लिए गौरव का विषय रहा आज उसी देश की परिस्थितियाँ चिन्ता व निराशा के कुहासे से घिरी हुई हैं। देश के भविष्य का पथभ्रष्ट हो जाना देश के भविष्य के प्रति सन्देह का द्योतक है। जहाँ बच्चों को विरासत में नैतिक मूल्यों की सम्पदा मिला करती थी आज वे उन्हीं मूल्यों से विहीन नज़र आ रहे हैं। देश के भविष्य का विनाश इतना आतंकवाद ने नहीं किया जितना नशे ने कर दिया है। नशीले पदार्थ समाज के हर वर्ग में सेंध लगाकर उनके हँसते खेलते समृद्ध जीवन को लूटकर कंगाल कर रहे हैं। परिणामस्वरुप पारिवारिक व नैतिक मूल्य स्वार्थपरायणता की चिता पर जलकर ख़ाक हो रहें हैं। फैशन के रुप में लिया जाने वाला नशा कब व्याध का रूपि धारण कर लेता है इसका पता ही नहीं चलता। नशे को संरक्षण देने वाले इस बात से अनभिज्ञ हैं कि उनकी चंद रूपयों की लालसा देश को पतन के कगार पर ले आई है।

नशाखोरी महामारी की तरह बढ़ती जा रही है। देश के युवाओं का बहुत बड़ा भाग नशे की जकड़न में आकर जीवन और मृत्यु के बीच में झूल रहा है। यह सही है कि आज का युवावर्ग कतिपय समस्याओं को लेकर तनाव में जीवन जी रहा है पर नशा तनाव को दूर करने का कतई साधन नहीं है। जो लोग नशा करते हैं वे इसके घातक प्रभावों से अपरिचित हैं। उनके सामने असामाजिक तत्त्वों द्वारा प्रस्तुत कुछ हवाई निष्कर्ष होते हैं जिनसे आकर्षित होकर वे नशे का सेवन करते हैं। हम एक व्यक्ति में कितने ही प्रभावशाली तरीके से यह भर दें कि नशा घातक है परन्तु जब वास्तव में परिस्थितियाँ बनती हैं तो वह स्वयं को रोक नहीं पाता। नैतिक आदर्शों की गठरी बँधी की बँधी रह जाती है और नशे का आह्नान पाकर वह बरबस खिंचा चला जाता है। जिसके कारण उनमें विद्यमान प्रतिभाओं का हनन हो रहा है। फलस्वरूप भविष्य में भारत जैसा विशाल साम्रराज्य अपने युवाओं की कार्यकौशल से वंचित होकर अन्य देशों का मुख ताकने के लिए विवश हो जाएगा। और यह स्थिति हमारे देश के लिए विडम्बना का विषय होगी।

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समस्या इतना विकराल रूप धरण कर चुकी है कि केवल भारत ही नहीं समूचे विश्व में नशाबाजी एक व्यसन नहीं वरण एक व्याध का रुपि धारण कर चुका है। इस के निवारण के लिए सरकारी व गैर−सरकारी संस्थाओं व पुनर्वास केन्द्रों द्वारा कई उपचार, साधन और पद्धतियाँ लागू की जा रही हैं। ये पद्धतियाँ जो आज−कल प्रचलित हैं भले ही वे वैज्ञानिक हैं पर ये कितनी कारगर सिद्ध हो रही हैं यह किसी से छिपा नहीं है। 

उपचार की बाहरी क्रियाएँ जो समाज में उपलब्ध हैं वो महंगी तो हैं ही पर उनसे भी मात्रा 20 प्रतिशत लोग ही ठीक हो पाते हैं। भारत का ड्रग रिकॉर्ड कहता है कि उपचार के बावजूद भी 80 प्रतिशत नशाखोर फिर से नशा करने लगते हैं। उपचार प्रक्रिया से गुज़रने के बाद उनका शरीर नशामुक्त हो जाता है पर नशे की लत जो उनके दिलो दिमाग में अपनी जड़ें जमा चुकी है वह शीघ्रता दिमाग से निकल नहीं पाती। इन पद्धतियों के बारे में जितनी भी जानकारी उपलब्ध हुई हैं वे अमोघ नहीं कही जा सकती। उनके विषय में व्यवस्थित व सुचारु खोज अभी शेष है।

फिर यह यक्ष प्रश्न आज भी अर्ध में झूल रहा है कि यदि ये पद्धतियाँ कारगर नहीं हैं तो फिर कौन सी पद्धति का प्रयोग किया जाए कि समाज नशे से मुक्त हो जाए? हमारा मानना है कि समाज में कोई भी समस्या मन के स्तर पर जन्म लेती है। इसलिए इसका समाधान भी मन के स्तर पर होना चाहिए। जब तक आप मानव को मन पर नियन्त्रण करने की पद्धति प्रदान नहीं करते तब तक समाज में भयानक कुरीतियों व व्याधियों का जन्म अवश्यम्भावी है।

युवावर्ग उस गति वर्धक यन्त्र की मानिंद है जो विकास की दौड़ तो दौड़ सकता है पर उस यंत्र में यदि दिशा प्रतिबंधन यंत्र नहीं है तो ऐसा यंत्रा स्वयं के लिए भी घातक है और मानव समाज के लिए भी। वह दिशा नियन्त्रक यंत्र मन को नियन्त्रित करने वाला आत्म ज्ञान है। जिस प्रकार विशाल गज को नियंत्रित करने के लिए महावत एक अंकुश का इस्तेमाल करता है उसी प्रकार मन रुपी विशाल गज को आत्मज्ञान के अंकुश से ही वश में किया जा सकता है। इस ज्ञान को प्राप्त करने तथा जीवन में उतारने के पश्चात मानव में आत्मविश्वास व विवेक शक्ति का उद्य  होता है। इसी विवेक शक्ति के आधर पर वो मन में उठती नशा करने की ललक पर नियन्त्रण पा लेता है और नशे से मुक्त हो जाता है। जो सुख नशाखोर नशें में ढूँढता है उससे कोटिशः आनन्द वह आत्मिक स्तर से जुड़कर प्राप्त कर लेता है। वैसे भी आत्मिक स्तर को जाने बगैर मानव के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं हो सकता। क्योंकि मनुष्य का व्यक्तित्व त्रिस्तरीय है। शारीरिक, मानसिक व आत्मिक। शारीरिक और मानसिक स्तर से परे आत्मिक स्तर है, इसे जानकर ही मानव सशक्त मानव बन सकता है।

- सुखी भारती

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