वैलेंटाइन डे को सिर्फ स्त्री-पुरुष संबंध से जोड़कर नहीं देखें

Do not see Valentines Day just by connecting with men and women
ईशा । Feb 7 2018 12:31PM

वैलेंटाइन डे को लेकर युवाओं खास कर युवतियों पर आक्षेप लगाने वाले भूल रहे हैं कि पिछले 20 साल में बहुत कुछ बदल चुका है। स्कूल से लेकर कालेज तक और उसके बाद जॉब में भी लड़के-लड़कियां साथ पढ़ते-लिखते और कॅरियर बनाते हैं।

भारत की युवा पीढ़ी बदल रही है। उसमें सबसे बड़ा बदलाव यह आया है कि वह अन्याय और शोषण के खिलाफ आगे आ रही है। सामाजिक मुद्दों को लेकर युवा अब सड़कों पर उतर जाते हैं। जीवन जीने का उसका अपना नजरिया है। समाज के प्रति उनका सरोकार बढ़ा है, तो वहीं उन्होंने नैतिक दायित्वों के साथ अपने अधिकारों के महत्व को भी समझा है। चाहे वह वोट देने का अधिकार हो या अपनी इच्छा के अनुरूप कपड़े पहनने का, दिल्ली में स्लट वॉक या कई मुद्दों पर निकाले गए कैंडल मार्च को देख कर लगता है कि युवा एक नए भारत को गढ़ना चाहते हैं। वैलेंटाइन डे को लेकर पुरानी सोच के लोग बेशक एतराज जताते हों या पश्चिमी सभ्यता से इसे जोड़ते हों, पर भारतीय युवाओं ने इसे सहजता से ही लिया है। इस मौके को भी वे नए नजरिए से देखते हैं।

वैलेंटाइन डे का अगर बाजारीकरण कर दिया गया है, तो इसके लिए युवाओं को दोष देना उचित नहीं होगा। पश्चिम की पूरी आधुनिक सभ्यता ने इसे अंगीकार किया है। इस दिन की पावनता को जहां महत्व दिया है वहीं युवाओं के जोश को दबाया नहीं। इसे सिर्फ स्त्री-पुरुष मैत्री के रूप में कभी नहीं लिया। बल्कि युवाओं को अपनी भावनाएं जाहिर करने का एक खास अवसर दिया है। भारत में उपभोक्तावादी संस्कृति ने न केवल वैलेंटाइन डे बल्कि करवा चौथ से लेकर शादी की वर्षगांठ जैसे मौकों की बाजार को बलि चढ़ा दी है।

पिछले दो दशक में बाजार ने इस दिन को खूब भुनाया है। यह सिलसिला आज भी जारी है। पहले आकर्षक कार्ड छापने वाली कंपनियों ने खासी कमाई की। अब इसकी जगह टेक्नालॉजी ने ले ली है। युवा अपनी भावनाएं जाहिर करने के लिए कार्ड पर निर्भर नहीं रहे। वे मोबाइल पर एसएमएस और वाइस एसएमएस और खास एप्लिकेशन से दिल की बात कह देते हैं। मगर भारतीय समाज ने इस मौके पर युवाओं की अभिव्यक्ति को संकुचित नजरिए से देखा है। पिछले कुछ सालों में राजनीतिक और धार्मिक संगठनों ने वैलेंटाइन डे को लेकर जो बखेड़ा खड़ा किया है, वह उनकी संकीर्ण विचारधारा को तो जाहिर करता ही है, साथ ही यह भी साफ हो गया है कि वे युवाओं से कितना कटे हुए हैं।

वैलेंटाइन डे को लेकर युवाओं खास कर युवतियों पर आक्षेप लगाने वाले भूल रहे हैं कि पिछले 20 साल में बहुत कुछ बदल चुका है। स्कूल से लेकर कालेज तक और उसके बाद जॉब में भी लड़के-लड़कियां साथ पढ़ते-लिखते और कॅरियर बनाते हैं। साथ रहने के क्रम में उनके सपने भी जुड़ते हैं और भावनाएं भी। उनके बीच की दोस्ती सहज होती है मगर समाज में पुरानी सोच के लोगों को यह नागवार गुजरती है। अब सवाल यह है कि युवा जब साथ-साथ ही रोज उठते-बैठते या पढ़ते-लिखते हैं तो वे इस एक दिन को भला तमाशा क्यों बनाएंगे। अगर भावनाएं ही जाहिर करनी हों तो वैलेंटाइन डे पर कुछ गलत करके अपने परिवार, कॅरियर या पढ़ाई को मुश्किल में क्यों डालेंगे।

दरअसल, आज का युवा दो तीन दशक पहले का युवा नहीं है, जो बाजार से गुलाब खरीद कर उस लड़की के पीछे भागता फिरे, जो उसी की क्लास में पढ़ती हो, या उसी के साथ जॉब करती हो। बेशक उस दिन वे डेटिंग करेंगे या रेस्तरां में कुछ खाएं-पियें और भविष्य के सपने बुनें, मगर उनका साथ बैठना भी कुछ अतिवादी संगठनों को मंजूर नहीं। कुछ साल पहले ऐसे ही संगठनों ने पार्क में बैठे युगलों को पकड़ कर उनका तमाशा जरूर बनाया हो मगर उन्होंने दुनिया में भारत की ऐसी छवि पेश की जहां उदारता और आधुनिकता की जगह नहीं। ये वो संगठन हैं जो न भ्रूण हत्या के विरोध में आवाज उठाते हैं न दुष्कर्म की घटनाओं पर अपनी जुबान खोलते हैं।

वैलेंटाइन डे पर युवा सिर्फ गर्लफ्रेंड तक सीमित नहीं हैं। वह अपने सभी दोस्तों के साथ इस दिन का आनंद उठाते हैं। अब तो वह इस दिन युवा अपने पैरेंट्स से भी खुल कर बात करता है। उन्हें विश करता है और गिफ्ट भी देता है। प्रेम सिर्फ स्त्री से ही नहीं किया जाता। यह संदेश है आज के युवाओं का। वे अपने माता-पिता से प्रेम करते हैं, दोस्तों से प्रेम करते हैं। देश और समाज से प्रेम करते हैं। इस प्रेम की सात्विकता को नए अर्थ में समझने की जरूरत है।

दिल्ली में निर्भया मामले के बाद उपजे आक्रोश से हम समझ सकते हैं कि युवाओं ने किस तरह मिल कर इस मसले पर अपनी आवाज उठाई। तब युवा लड़के-लड़कियां दिन हो या रात एक साथ रहे और मिलकर आवाज उठाई। तब न तो उनके मां-बाप ने एतराज जताया और न किसी संगठन ने। जाहिर है युवा हो चुके लड़के-लड़कियों के संबंध को एक ही चश्मे से देखना मूर्खता होगी। आज का युवा वर्ग अपनी जिम्मेवारियों को समझता है। उन्हें नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले संगठनों को अपना चाल और चरित्र सुधारने की जरूरत है।

वैलेंटाइन डे की अवधारणा और इसकी शुरूआत की पृष्ठभूमि जानने वाले ज्यादातर पढ़े-लिखे लोगों को न तो इस पर कोई एतराज है न कोई संकीर्ण विचार है। स्त्री-पुरुष को एक दूसरे का सहचर मानने वाले युवा दंपतियों ने भी इस दिन को नए नजरिए से देखा है, वे एक दूसरे के प्रति सम्मान और एक दूसरे की भावनाओं को महत्व देने का दिन मान कर भी इसे सेलिब्रेट करते हैं। क्या ही अच्छा हो कि हम घर के बुजुर्ग सदस्यों को इस दिन उनकी पसंद का ऐसा कुछ प्रदान करें कि वे प्रसन्न होकर आशीष दें। इससे वैलेंटाइन डे की सार्थकता और बढ़ेगी।

क्यों न वैलेंटाइन डे पर नए भारत को गढ़ रही यंग जेनेरेशन की सोच के साथ खुद उदार बनें और उनके जज्बे को सलाम करें। अपने दकियानूसी विचारों को त्याग कर प्रगतिशील बनें। यों भी स्त्री-पुरुष संबंध का सिर्फ एक ही कोण नहीं, उसके कई आयाम हैं। वैलेंटाइन डे व्यक्ति ही नहीं, समाज और देश के प्रति भी लगाव रखने का संदेश देता है। आप भी इसी नजर से देखिए।

-ईशा

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