कैसे बताऊं माँ, कितना सुकून है तेरे आँचल में
एक औरत अपनी पूरी ज़िन्दगी ना जाने कितने ही किरदारों को निभाती है, परन्तु माँ का किरदार ही एक ऐसा किरदार है जिसके अभाव में वह अपने में कुछ कमी सी पाती है।
माँ एक ऐसा शब्द है, जिसका मतलब है संसार। माँ के बिना जीवन संभव नहीं है। वह आधार है जीवन का, वह ऐसी भावना है जिसकी कोई सीमा नहीं, वह कभी ना बदलने वाला अहसास है और ज़िन्दगी का एक ऐसा हिस्सा है जिसे कोई कभी भी अपनी ज़िन्दगी में खोना नहीं चाहेगा। 'माँ' ही वह पहला अक्षर है जो कोई भी बच्चा सबसे पहले बोलना सीखता है और अपनी तुतलाती हुई जुबान से जब पहली बार मम्मा मम्मा बोलता है तो ये क्षण किसी भी माँ के लिए सबसे कीमती क्षण होता है। वैसे तो बच्चे माँ को अपनी सहूलियत के अनुसार कई नाम से पुकारते हैं पर हर नाम के पीछे सिर्फ और सिर्फ प्यार और माँ की ममता ही होती है। माँ के आँचल में शत-प्रतिशत ममता ही ममता है और वह भी खरा सोने जैसी। उसके आँचल की छांव उस पेड़ के समान होती है जिसके तले कोई राही कड़ी धूप में चलते चलते आश्रय लेता है। माँ भी वृक्ष की तरह अपने बच्चों को सदैव प्यार की छाँव देती है भले संतान की उम्र बचपन की हो या पचपन की। हमारी परेशानी को ना जाने वो बिना बताये कैसे भांप लेती है। सच ही कहा गया है कि वो माँ ही तो है जो अपना सब कुछ अपने बच्चों पर लुटा देती है। असहनीय शारीरिक कष्ट को सहन करके वह शिशु को जन्म देती है। अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को त्याग कर और अपने कष्टों को भूलकर अपने बच्चों का पालन पोषण करती है। माँ के प्यार और त्याग का इस धरती पर दूसरा कोई विकल्प ना है और ना ही मिल सकता है। शास्त्रों में तो माँ को देवी-देवता के समान पूजनीय बताया गया है।
एक औरत अपनी पूरी ज़िन्दगी ना जाने कितने ही किरदारों को निभाती है, परन्तु माँ का किरदार ही एक ऐसा किरदार है जिसके अभाव में वह अपने में कुछ कमी सी पाती है। लेकिन वही कमी एक जिंदगी को जन्म देते ही पूरी हो जाती है। इस संसार में नारी ही एक ऐसी शक्ति है जो एक जीवन को जन्म देती है और 9 महीने तक ही नहीं बल्कि जब तक उसकी साँसें चलती हैं तब तक संतान के जीवन को संवारती और संभालती है साथ ही उसे जीवन के हर पहलु से अवगत कराती है। क्या अच्छा है? क्या बुरा है? के अलावा बच्चों को संस्कार देना, चाल-चलन, बोलना सिखाना आदि की शिक्षा देती है। जहाँ एक ओर वह अपने बच्चों को लाड़-प्यार से सुरक्षा और शक्ति देती है वहीं दूसरी और उन्हें डांट डपटकर पतन के मार्ग पर जाने से रोकती है। सामाजिक व्यवहार, मर्यादा और संस्कारों की प्राथमिक शिक्षिका माँ ही तो होती है। बच्चे को चरित्रवान और गुणवान बनाने के पीछे उसकी माँ की शिक्षा ही मददगार होती है।
किसी भी माँ के लिये उसकी संतान सर्वाधिक प्रिय होती है और अपनी संतान के लिये वह पूरे संसार से लड़ जाती है परन्तु संतान के प्रति अत्याधिक मोह कभी कभी संतान के लिए अहितकर सिद्ध हो सकता है। सन्तान के पालन पोषण में माँ को लाड़ प्यार के साथ साथ बुधिमत्ता की भी आवश्यकता होती है। अत्यधिक प्रेम संतान को कमज़ोर, कामचोर और जिद्दी बना देता है इसलिए ज़िन्दगी के कुछ पहलुओं में एक माँ को ना चाहते हुए भी कठोर बनना पड़ता है। हर बच्चे को उसके सामाजिक और व्यावहारिक विकास के लिए उसकी माँ की जरूरत होती है और मेरा मनना है कि इससे कहीं अधिक एक लड़की के जीवन में माँ की जरूरत ज्यादा होती है। बाल्यावस्था से लेकर जवान होने तक और शादी होने से लेकर माँ बनने तक के दौरान आये परिवर्तन और उन परिवर्तन के अनुसार चलना और उन परिवर्तनों का सामना करना, इन सब बातों को एक माँ ही बखूबी समझा सकती है और अपनी बेटी का समझा सकती है। जीवन के कुछ हिस्से ऐसे होते हैं जहां हर माँ अपनी बेटी की मित्र के रूप में भी सामने आती है। एक लड़की आने वाली पीढ़ी और नए समाज की जननी होती है तो उसकी हर सामाजिक शिक्षा, व्यवहारिक ज्ञान और गृहस्थी चलाने से लेकर कामकाज की शिक्षा का सारा दारोमदार एक माँ पर ही होता है।
आधुनिक समाज में बहुत सी ऐसी माताएं हैं जिनको दोहरा जीवन व्यतीत करना पड़ता है। नारी स्वतंत्रता के इस युग में महिलाएं अपने घरों को सुचारू रूप से चलाने के लिए या परिवार की आर्थिक दिक्कतें दूर करने और अपने परिजनों का भविष्य बेहतर करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी कर रही हैं या व्यवसाय कर रही हैं। घर के कामक़ाज़ के साथ-साथ दफ्तर की जिम्मेदारी को भी निभाना और दोनों के बीच सामंजस्य बिठाने का दायित्व महिलाएं बखूभी निभाती हैं। माँ की इस अद्भुत शक्ति को सलाम है जिसे वह आजीवन निभाती है।
अंत में मदर डे स्पेशल पर अपनी मम्मी के लिए बस इतना बोलना चाहती हूँ कि मैं अपनी मम्मी की तरह ही बनना चाहती हूँ। उनके जैसा धैर्य जिसने उन्हें विषम से विषम परिस्थिति में भी घबराने नहीं दिया, उनके जैसे खुश रहना चाहे जितना भी हो और जैसा हो हमेशा खुश रहना, उनके जैसी सकारात्मक सोच, कितनी भी विपरीत परिस्थिति हो उन्होंने हमेशा सकारात्मक सोच ही रखी है और उनकी इसी सोच के चलते आज मैं अपने शहर से बहार निकल जॉब कर पा रही हूँ और अपने पैरों पर खड़ी हूँ और इन सब का श्रेय सिर्फ और सिर्फ मम्मी को जाता है। एक बात जो मुझे हर मुश्किल में एक सहारे की तरह लगती है वह है मम्मी की खिलखिलाती हँसी और उनकी सोच जो मुझे हमेशा आगे बढ़ने को ही प्रेरित करती है फिर चाहे कितना ही बुरा समय क्यों न हो। कुछ पंक्तियाँ जो मैं मम्मी के लिए बोलना चाहूँगी-
मईयू मईयू चलते चलते जाने कब बड़ी हुई,
माँ के आँचल की छाँव से निकल कब खड़ी हुई,
कैसे बताऊ माँ, कितना सुकून है तेरे आँचल में,
आज भी जब सर रखती हूँ, तो वही सुकून है तेरी गोद में,
पहला कदम जो देख मेरा, वो तेरी मुस्कान,
जैसे पूरे हो गए हों, दुनिया के सारे अरमान,
ऊँगली पकड़कर चलना सिखाया,
दिन हो या रात हो अपनी बाहों में झुलाया,
क्या अच्छा है क्या बुरा है ये समझाया,
मेरे हर दर्द हर आंसू को अपनी आँखों में बसाया,
जिंदगी का वो हर दिन, वो हर पल दिया है,
भुला खुद को तूने, रात दिन एक किया है,
कैसे बताऊ माँ, कितना सुकून है तेरे आँचल में।।
प्राची थापन
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