सांमजस्य अच्छा हो तभी दांपत्य जीवन रहता है सफल

प्रीटी । May 26 2016 2:41PM

लोगों को यह समझना चाहिए कि पति−पत्नी का रिश्ता अटूट और आपसी सहयोग के लिए अपेक्षित तथा एक−दूसरे की भावनाओं का आदर करने के लिए बना होता है।

मार्केट में जरा बच्चों के लिए समान लेने गई थी कि पड़ोस में रहने वाला मोहित मिल गया, उसने मुझे बताया कि मम्मी की तबियत ठीक नहीं है, तो मैंने सोचा कि क्यों न जाकर प्रिया भाभी का हालचाल जाना जाये। लेकिन उससे भी पहले पास के ही टेलीफोन बूथ पर जाकर मैंने फोन पर उनका हाल चाल जानना उचित समझा। मेरे फोन करने पर उधर से प्रिया भाभी दबी सी आवाज में हैलो बोलीं तो मैंने अधिकारपूर्वक लगभग डपट कर ही कहा कि क्या बात है भाभी? आपकी तबियत कैसी है? तबियत खराब थी तो मुझे बता नहीं सकती थीं? लेकिन मेरे इन सब सवालों का जवाब दिए बगैर प्रिया भाभी का संक्षिप्त सा उत्तर मिला कि ठीक हूं, अच्छा रिसीवर रख रही हूं। बस यह कहकर उन्होंने रिसीवर रख दिया।

मेरे साथ ऐसा पहली बार हुआ था कि प्रिया भाभी ने बिना बातचीत किए ही फोन रख दिया हो। हम दोनों की तो फोन पर लम्बी−लम्बी बातें हुआ करती थीं, पर आज उन्हें पता नहीं क्या हो गया। वैसे भी आज की इस घटना से मुझे बहुत आश्चर्य हुआ तथा मन बैचेन हो उठा। मुझे लगा कि प्रिया कहीं किसी बात पर नाराज तो नहीं है। यह सोचकर मेरा दिमाग इधर−उधर दौड़ने लगा फिर मेरे मन में आया कि हम दोनों के बीच कोई ऐसी−वैसी बात तो कभी हुई ही नहीं। फिर आखिर क्या बात हो सकती थी। बस ऐसे ही खयाल मन में आते−आते मैं घर पहुंच चुकी थी और मेरा हाथ ताले−चाबी पर चला गया। अभी बच्चों के आने में काफी समय बाकी था। अतः ताला लगाकर मैं प्रिया के घर की ओर चल दी।

प्रिया हमारे घर के समीप ही रहती थी। जब मैं वहा पहुंची तो मैंने देखा कि प्रिया बिल्कुल शांत, गुमसुम व गंभीर बनी बैठी हुई है। मैंने कई बार पूछा कि प्रिया कुछ तो बोलो, क्या तकलीफ है? क्या परेशानी है? मुझे कुछ तो बताओ। पर उसने कोई जवाब नहीं दिया। कुछ देर बाद बस वह धीरे से बोली कि ठीक है, कुछ नहीं। प्रिया से मुझे अपने हर सवाल के कुछ ऐसे ही उत्तर मिलते रहे, जो मुझे बर्दाश्त नहीं हो रहे थे। मुझे लगा कि ऐसा कहीं कुछ जरूर था जिसे प्रिया कह नहीं पा रही थी। तभी अचानक उस समय पत्नी की बीमारी के कारण सुरेश भैया घर पर आ गए। मैंने बाहर निकलकर एकांत में उनसे पूछा कि क्या बात है भैया, प्रिया कुछ बोलती क्यों नहीं? आप इन्हें डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाते। इस पर सुरेश भैया बोले कि शायद प्रिया के मन में कोई बात है जो यह बर्दाश्त नहीं कर पा रही हैं। यदि वह अपने मन की बात किसी को कह दे तो शायद उसके मन का बोझ हल्का हो जाए। उन्होंने कहा कि ये सब मानसिक रोग के लक्षण हैं। तुम्हीं प्रिया को समझाओ जिससे हमारी गृहस्थी चौपट होने से बच सके।

फिर जब सुरेश भैया दवाई आदि देकर चले गए तो मैंने प्रिया को समझाया कि देखो तुम्हारी हालत को देखकर सुरेश भैया कितने बैचेन व परेशान हो रहे हैं। आखिर बताओ तो सही क्या बात है, क्यों अपने हठ के चलते सुरेश भैया को भी परेशान कर रही हो। बस इतना सुनते ही प्रिया बिफर पड़ी तथा उसकी आंखों के रास्ते आंसुओं की धारा फूट निकली। वह रोते−रोते मुझसे बोली कि उन्हें कोई परेशानी नहीं है, सब दिखावा है। न तो उन्हें मेरी परवाह है, न ही मेरे लिए उनके पास समय है। वह बोली कि मैंने हमेशा ही उपेक्षित व तनावपूर्ण जीवन पाया है। जब भी अपनी परेशानी उनको बताती हूं, उनका मूड खराब हो जाता है। उनके पास तो मेरी बात सुनने का भी समय नहीं है। मैं किससे अपनी बात कहूं। उनसे कुछ भी कहो, बस एक ही उत्तर मिलता है कि अपनी समस्याएं स्वयं हल किया करो। अब तो मुझे कुछ अच्छा ही नहीं लगता है। सिर्फ अकेलापन ही मुझे पसंद आता है।

प्रिया का इतना कहना था कि मुझे एकदम से पुराने दिन याद आ गए। जब शुरू−शुरू में सुरेश भैया व प्रिया भाभी हमारे मोहल्ले में रहने आए थे। हमारे बच्चों की स्कूल की दोस्ती ने हम लोगों को भी आपस में काफी नजदीक ला दिया था साथ ही बच्चों के बड़े होने के साथ−साथ हम लोगों की दोस्ती भी गहरी होती चली गई थी। सुरेश भैया आकर्षक व्यक्तित्व के धनी, हंसमुख व सहयोगी प्रवृत्ति के इंसान थे तथा एक प्रतिष्ठित कम्पनी में उच्च पद पर आसीन थे। अपने सभी मिलने वालों की समस्याओं के हल में सहयोग के लिए वह सदैव तत्पर रहते थे। सभी सुविधाओं से युक्त उनका घर सभी की मदद के लिए हमेशा ही खुला रहता था।

उधर प्रिया भाभी भी पढ़ी−लिखी, समझदार व आकर्षक महिला थीं। वह परिवार में सुख−दुख में पूर्णतः समर्पित रहती थीं तथा ससुराल में भी सबकी प्रिय थीं। दोनों पति−पत्नी को घर सजाने का बहुत शौक था और इसलिए वह दोनों मिलकर अपने घर को उत्कृष्ट बनाने में लगे रहते थे। परंतु सुरेश भैया अन्य लोगों के प्रति जितने सहयोगी थे, उतने ही अपनी पत्नी के प्रति लापरवाह भी थे। प्रिया ने सदैव ही अपने पति से उपेक्षित व तिरस्कृत जीवन पाया था। दोनों के बीच एक ही रिक्तता थी। उनके बीच एक ऐसा खाली स्थान पनप चुका था जिसकी भरपाई कैसे की जाए, यह दोनों की ही समझ से परे था। खासकर प्रिया का जीवन तो सोने के पिंजरे में कैद चिडि़या के समान होकर रह गया था जिसके पास सुविधाएं तो सभी थीं लेकिन प्यार भरी जिंदगी नहीं थी। अपनी पत्नी की इच्छाओं की पूर्ति की बजाए सुरेश भैया उनका इलाज कराना चाह रहे थे जोकि किसी डॉक्टर के पास नहीं अपितु उनके ही पास था।

वह दोनों यह समझ नहीं पाए थे कि पति−पत्नी का रिश्ता अटूट और आपसी सहयोग के लिए अपेक्षित तथा एक−दूसरे की भावनाओं का आदर करने के लिए बना होता है। आज समाज में ऐसे भी पति−पत्नी होते हैं जोकि समाज में तो अपने चारों ओर प्रशंसात्मक दृष्टि के पात्र होते हैं लेकिन अपने वास्तविक जीवन में वह अपने गुणों को चरितार्थ नहीं कर पाते। स्वभाव, रूचि व व्यवहार में समानता होते हुए भी ऐसे पति−पत्नियों में आपसी सामंजस्य उत्पन्न नहीं होता है तथा बिना कारण ही एक−दूसरे के प्रति मन में ग्रंथियां बनी रहती हैं। इस प्रकार की समस्याओं से छुटकारे के लिए चाहिए कि बाहर की अपेक्षा अपने घर में अधिक प्रेम व सहायता प्रदान करें। घर को सजायें, संवारे तथा उसे पल्लवित होने के लिए आपस में प्रेम रूपी वर्षा करें।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़