गर्भवती महिलाओं के लिए जानने योग्य कुछ जरूरी बातें

गर्भवती महिला को शुरू के तीन माह में फोलिक एसिड (मल्टी विटामिन्स) शुरू किया जाता है, जिससे शिशु का जन्मजात पाई जाने वाली बीमारियों से बचाव होता है। ऐसी महिला को अधिक सफर करने से बचना चाहिए।

विवाह के पश्चात हर दम्पत्ति का विशेष कर महिला का सपना होता है कि अब उन्हें सन्तान सुख की प्राप्ति हो। मातृत्व की भावना हर महिला मन संजोती है। ऐसी महिला का यह सपना सुखद मातृत्व में साकार हो सकता है यदि वह कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखे और कुछ नियमों का पालन करे।

सुखद मातृत्व प्राप्ति की परिकल्पना को साकार करने के लिए अपनायी जाने वाली सावधानियों पर हमने बात की कोटा के बारां रोड स्थित रूची हॉस्पीटल की संचालिका एवं गायनोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. रूची गोयल से। डॉ. रूची गोयल बताती हैं कि महिला के गर्भधारण के पश्चात प्रथम तीन माह अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं। इस अवधि में गर्भपात की संभावनाएं रहती हैं। जैसे ही महिला को ज्ञात हो कि वह गर्भवती है तुरंत ही चिकित्सक को दिखाना चाहिए और चिकित्सक द्वारा बताये गये सुझावों को ध्यान में रखकर पालन करना चाहिए।

गर्भवती महिला को सलाह दी जाती है कि वह जितना हो सके कार्य करे, डॉक्टर की सलाह के बिना किसी भी प्रकार बेड रेस्ट नहीं करे तथा सुबह−सायं अवश्य टहले। महिला अपने व पेट में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य की दृष्टि से अपने भोजन में ऐसे खाद्य पदार्थों को शामिल करे जिनमें प्रोटीन, विटामीन एवं आयरन की मात्रा अधिक हो। गर्भवती महिला को अपने आहार में हरी सब्जियां, दूध, दालें व फलों का सेवन अधिक करना चाहिए। हरी सब्जियों से आयरन, दालों से प्राटीन एवं फलों से विटामीन्स की आपूर्ति होती है। प्रसव कभी भी दाई या अन्य किसी अप्रशिक्षित महिला से कभी भी घर पर नहीं करवाना चाहिए। प्रसव हमेशा संस्थागत सरकारी अथवा निजी चिकित्सालय में कुशल चिकित्सक द्वारा ही करवाया जाना चाहिए।

गर्भवती महिला को शुरू के तीन माह में फोलिक एसिड (मल्टी विटामिन्स) शुरू किया जाता है, जिससे शिशु का जन्मजात पाई जाने वाली बीमारियों से बचाव होता है। ऐसी महिला को अधिक सफर करने से बचना चाहिए। गर्भवती महिला को चार से नौ माह में आयरन और कैल्सियम की गोलियां शुरू की जाती हैं, दो टिटनेस के टीके लगवाये जाते हैं तथा पांच से छह महिने के मध्य एक सोनोग्राफी की जाती है। इसके बाद जरूरत समझी जाती है तो सोनोग्राफी करायी जाती है। शरीर में प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा बनी रहना आवश्यक है, जिससे गर्भ में पानी की मात्रा बराबर बनी रहती है। इस अवधि में भी गर्भवती महिला को अपना घरेलू कार्य जब तक डॉक्टर मना नहीं करे करते रहना चाहिए। समय−समय पर चिकित्सक को दिखाना एवं जांच कराना आवश्यक है जिससे कि बल्डप्रेशर, खून की कमी, पानी की कमी आदि का समय रहते उपचार हो सके।

डॉ. रूची ने बताया कि यह धारणा गलत है कि पानी पीने से गर्भाशय में पानी भरता है। आयरन और कैल्शियम की टैबलेट से बच्चे का फालतू वजन बढ़ता है, यह धारणा भी गलत है। इनके खाने से बच्चा न तो मोटा होता है और न ही ऑपरेशन की संभावना बढ़ती है।

ऑपरेशन से बच्चा होने की संभावना के बारे में उन्होंने बताया कि जब गर्भवती महिला की बताई गई प्रसव की तिथी निकल जाती है और बच्चा नहीं होता है तो ऑपरेशन करना पड़ता है। ऑपरेशन का सबसे प्रमुख कारण महिला को दर्द नहीं होना है। यह भी कारण है कि यदि महिला 30 या इससे अधिक उम्र में गर्भवती होती है तो ऑपरेशन की संभावना रहती है। विलम्ब या बड़ी उम्र में विवाह से बच्चा देर से होता है और इसमें भी ऑपरेशन की संभावना बनती है। उन्होंने बताया कि कई बार महिला के साथ आये परिजन महिला के दर्द को देख नहीं पाते और डॉक्टर पर ऑपरेशन करने का दबाव बनाते हैं। किसी भी चिकित्सक की ऑपरेशन से बच्चा पैदा करने की कभी भी कोई मंशा नहीं होती है, अतिआवश्यक होने पर ही कोई चारा न देख चिकित्सक ऑपरेशन से प्रसव कराता है।

(डॉ. रूची गोयल पिछले कई वर्षों से हजारों सफल प्रसव करा चुकी हैं और वर्तमान में कोटा में कोटा−बारां रोड पर अपना निजी चिकित्सालय संचालित कर रही है।)

- डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

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