कामकाजी महिलाओं को राहत देगा ''मेटरनिटी बेनेफिट कानून

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Aug 24, 2016

भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी की पुरजोर वकालत होनी ही चाहिए। आखिर हम अपनी आधी आबादी को पीछे कैसे रहने दे सकते हैं? लेकिन इस क्रम में सबसे बड़ी चुनौती महिलाओं और उनके परिवार के साथ तब आती है, जब बच्चे का जन्म होता है और उसके पालन-पोषण के लिए महिलाओं को अतिरिक्त समय और श्रम लगाना होता है। हाल ही में सरकार की ओर से 'मेटरनिटी बेनेफिट कानून में किये गये संशोधन से कामकाजी महिलाओं को एक उम्मीद तो जगी ही है, किन्तु इस मामले में एक लंबा सफर तय करना अभी बाकी है।

 

21वीं सदी में महिलाओं का आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक रूप से सशक्त होने के साथ-साथ उनका मान सम्मान भी बढ़ा है, लेकिन उनकी दोहरी जिम्मेदारी पर बदले हालात में कार्य करने की जरूरत भी महसूस की जा रही थी। इसमें कोई दो राय नही हैं कि घरेलू महिलाओं की बजाय कामकाजी महिलाओं के ऊपर जिम्मेदारी थोड़ी ज्यादा होती है, खासकर बच्चों के लालन-पालन को लेकर। भावनात्मक संबंधों की प्राथमिकता के चलते भारतीय महिलायें घर और ऑफिस दोनों जगह संभालना चाहती हैं, लेकिन इन दोनों जगहों के साथ सामंजस्य बिठाने में काफी मुश्किलें पेश आती है, जिसकी वजह से कई बार नौकरी छोड़नी भी पड़ती है। इसमें भी ज्यादातर महिलायें माँ बनने के बाद ऐसे ही नौकरी छोड़ देती हैं। यह संख्या कोई एकाध की संख्या नहीं है, बल्कि ऐसा 40 फीसदी महिलाओं के साथ होता है. जाहिर तौर पर यह एक बड़ी संख्या है, जिसका प्रभाव हमारी अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता ही है।

 

जो महिलाएं ज़िद्द करके नौकरी और घर दोनों को संभालना चाहती भी हैं, उनके साथ कई दूसरी समस्याएं पेश आती हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार 42 फीसदी कामकाजी महिलायें समान्यतः पीठदर्द, मोटापा, अवसाद, मधुमेह, उच्च रक्तचाप से ग्रसित हो जाती हैं। ऐसे में कामकाजी महिलाओं के गर्भवती होने पर उनके साथ-साथ बच्चे पर भी असर हो जाता है, क्योंकि एक गर्भवती महिला को अच्छे खान-पान के साथ साथ तनाव मुक्त और खुश रहने की सलाह दी जाती है। चूँकि कामकाजी महिलाओं को गर्भावस्था में भी कई बार आठवें महीने तक ऑफिस जाना आना पड़ता है, जिसकी वजह से तनाव काफी बढ़ जाता है। ऐसे में उसे अतिरिक्त छुट्टियों की जरूरत महसूस होती है, ताकि उसकी नौकरी भी बची रहे और वह अपने बच्चे के साथ-साथ खुद को भी समय दे सके। सामान्यतः माँ बच्चे को जन्म देने के बाद बहुत ही कमजोर हो जाती है, जिसको दोबारा स्वस्थ होने में कम से कम 6 से 12 महीने का समय लगता है। हालाँकि कामकाजी महिला को माँ बनने के बाद 'मेटरनिटी बेनेफ़िट क़ानून' के अनुसार अवकाश पहले भी मिलता था, किन्तु इस बार इसे और ज्यादा व्यावहारिक बनाया गया है।

 

इस क्रम में अगर हम बात करते हैं, तो भारत में ‘मेटरनिटी बेनेफ़िट क़ानून’ 1961 से ही लागू है, जिसके अनुसार 10 से अधिक कर्मचारियों वाले प्रत्येक संस्थानों में गर्भवती होने के बाद महिलाओं की नौकरी सुरक्षित रखने के साथ साथ तन्ख्वाह और नौकरी से जुड़ी सारी सुविधा सहित 12 हफ़्ते का अवकाश का प्रावधान था। इसमें हुए संशोधन के अनुसार, दो बच्चे तक वेतन के अतिरिक्त तीन हजार रूपये के मातृत्व बोनस के साथ 26 सप्ताह के प्रसूति अवकाश की सुविधा दी जाने की बात तय हुई है, जिसका स्वागत करना चाहिए। हालाँकि, तीसरा बच्चा होता है, तो उस समय यह अवकाश पुनः 12 सप्ताह का ही होगा। खैर, बहुत कम कामकाजी महिलाएं हैं, जो तीसरे बच्चे को चाहेंगी, क्योंकि उनमें कइयों का सिद्धांत 'बच्चे दो ही अच्छे' का होता है। नए संशोधनों के अनुसार, इसमें 'अधिकृत माता’’ या ‘‘दत्तक माता’’ और ‘‘किराये की कोख’’ की सुविधा देने वाली माता को भी सारी सुविधाओं के साथ 12 सप्ताह का प्रसूति अवकाश मिलेगा। इससे भी बड़ी बात जो तय की गयी है, वह यह कि 50 से ज्यादा महिला कर्मचारी के होने पर संस्थानों में क्रेच (पालना-घर) की सुविधा भी दी जाएगी, जिसमें कार्य के दौरान कोई भी मां अपने बच्चे से दिन भर में चार बार मिलने के लिए जा सकेगी। यह एक बड़ी राहत की बात है, जिससे कामकाजी माता को अपने बच्चों को किसी प्राइवेट क्रेच में या किसी आया के भरोसे छोड़ने से निजात मिल सकेगी। देखने वाली बात यह है कि इस कानून का निगरानी सिस्टम किस तरह से कार्य करता है, क्योंकि हमारे देश में कानून तो बन जाते हैं, किन्तु उसका ठीक तरह से एक्जीक्यूशन एक कठिन चुनौती बन जाती है।

 

इस 'मेटरनिटी बेनेफ़िट क़ानून' से वर्तमान में करीब-करीब 18 लाख महिलाओं को सीधा लाभ मिल सकता है, तो आने वाले सालों में यह संख्या करोड़ों तक पहुँच सकती है। देखा जाए तो भारत ने इस मामले में यह कानून पेश करके वैश्विक स्टैंडर्ड्स की बराबरी करने की कोशिश की है। यदि दूसरे देशों की बात करें तो पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका में 12, मेक्सिको में 15, स्पेन में 16, फ्रांस में 16, ब्रिटेन में 20, नॉर्वे में 44 और कनाडा में 50 सप्ताह का प्रसूति अवकाश दिया जाता है।

 

खैर, कामकाजी महिलाओं के लिए आने वाले दिनों में 'घर से काम करने की सुविधा' पर और ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है। हालाँकि, इसके लिए महिलाओं को भी अनुशासन और कार्य के प्रति समर्पण दिखलाना होगा, अन्यथा उनकी नौकरी डिस्टर्ब होगी ही होगी। महिलाओं के घर से कार्य करने में और भी दूसरी सहूलियतें हैं, जिसका फायदा 'उद्यमी महिलाओं' सहित कुछ कामकाजी महिलाएं भी उठा सकती हैं, मसलन किसी भी महिला का घर परिवार को देखते हुए काम करना सुरक्षित है, तो यदि कार्य के 8 घंटे को छोड़ दें तो ऑफिस आने जाने का समय और उलझनों से बचते हुए वह ज्यादा बेहतर प्रोडक्टिविटी दे सकती हैं। अब अगर दिल्ली जैसे शहर की ही बात करें तो एक महिला 8 से 10 घंटे ऑफिस में तो कार्य करती ही है, लेकिन उससे ज्यादा दुखदायी उसका ट्रैफिक में लगने वाला समय है तो जो आने जाने को मिलाकर, 1 घंटे से 4 घंटे या उससे भी ज्यादा हो जाता है। साफ़ जाहिर है कि महानगरों में यह समय महिलाएं घर बैठकर कार्य करने से प्रोडक्टिविटी में लगा सकती हैं। हालांकि, घर पर काम करने के लिए महिलाओं को अपने समय को ऑफिस की तरह ही प्रबंधित करना होता है।

 

हालाँकि, बहुत से ऐसे काम हैं जो घर पर बैठ कर नहीं किये जा सकता हैं, किन्तु बावजूद इसके महिलाओं को घर से कार्य करने की क्षमता को प्रमोट करने की जरूरत है। इन्टरनेट ने इस क्षेत्र में बड़ी संभावनाएं उत्पन्न की हैं और चूंकि कम महिलाएं ही शारीरिक मेहनत वाले कार्य को चुनती हैं, बजाय दिमागी और सॉफ्ट स्किल वाले क्षेत्रों के, तो इनके लिए प्रोजेक्ट बनाना, कन्सलटेंसी देना, तमाम सर्विस देना इत्यादि घर से बखूबी मैनेज किये जा सकते हैं। इस सम्बन्ध में कहा जा सकता है कि मेटरनिटी बेनिफिट कानून कामकाजी महिलाओं के लिए राहत पहुंचाने वाला है तो महिलाओं की भारतीय अर्थव्यवस्था में सहभागिता को भी जबरदस्त ढंग से प्रमोट करने वाला है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस कानून के सही ढंग से क्रियान्वयन के पश्चात भारतीय कामकाजी महिलाओं की संख्या में बड़ा उछाल आएगा।

 

- मिथिलेश कुमार सिंह

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