By नीरज कुमार दुबे | Aug 20, 2025
पूर्व थलसेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे का यह कहना कि “रक्षा पर व्यय फिजूलखर्ची नहीं, बल्कि बीमा प्रीमियम है” आज के भारत की सुरक्षा चुनौतियों के संदर्भ में बेहद प्रासंगिक और दूरदर्शी है। एक तरह से जिस समय उन्होंने यह बात कही लगभग उसी दौरान भारत सरकार ने लगभग 85,500 करोड़ रुपये के बड़े रक्षा सौदे को मंजूरी दी है, जिसके तहत 97 स्वदेशी तेजस लड़ाकू विमान और छह AEW&C (Airborne Early Warning & Control) विमान भारतीय वायुसेना को मिलने वाले हैं। यह संयोग ही नहीं, बल्कि भारत की सुरक्षा दृष्टि और रणनीतिक सोच की निरंतरता का प्रमाण है।
नरवणे का उदाहरण स्पष्ट करता है कि रक्षा खर्च को केवल "लागत" के रूप में देखना गलत है। यह उस "बीमा प्रीमियम" की तरह है जो भविष्य के अनिश्चित खतरों से सुरक्षा सुनिश्चित करता है। यदि यूक्रेन ने समय रहते पर्याप्त रक्षा तैयारियाँ की होतीं, तो आज उसे अरबों डॉलर की पुनर्निर्माण लागत और लाखों लोगों के विस्थापन का सामना नहीं करना पड़ता। तेजस विमानों और AEW&C "आकाश की आँखों" की खरीद इसी रणनीति का हिस्सा है। आज भारत को केवल पारंपरिक युद्ध की तैयारी ही नहीं करनी, बल्कि चीन और पाकिस्तान जैसे संभावित ‘साझा खतरे’ का भी सामना करना है। ऐसे में वायुसेना की निगरानी क्षमता और स्क्वॉड्रन की संख्या को मज़बूत करना अत्यंत आवश्यक है।
इसीलिए मंगलवार को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) ने लगभग 85,500 करोड़ रुपये के रक्षा सौदों को अंतिम मंजूरी दी। तेजस मार्क-1ए सौदा रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बड़ा कदम है। हम आपको बता दें कि CCS ने 66,500 करोड़ रुपये की लागत से 97 तेजस मार्क-1ए विमानों के उत्पादन को मंजूरी दी है। यह संख्या पहले से स्वीकृत 83 तेजस विमानों (2021 में 46,898 करोड़ रुपये की डील) के अतिरिक्त होगी। यानी, आने वाले वर्षों में भारतीय वायुसेना को कुल 180 तेजस मार्क-1ए विमान मिलेंगे। हल्के, एक-इंजन वाले ये स्वदेशी विमान आधुनिक हथियार प्रणालियों, अस्त्र एयर-टू-एयर मिसाइल और उन्नत एवियोनिक्स से लैस होंगे।
हालांकि, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को अब तक विलंब को लेकर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। IAF प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने उत्पादन में देरी पर चिंता जताई थी। इसके जवाब में HAL ने कहा है कि अब उत्पादन क्षमता को 20 से बढ़ाकर 24-30 विमानों तक प्रति वर्ष किया जाएगा। इसके लिए नासिक स्थित तीसरी प्रोडक्शन लाइन को चालू किया गया है।
इसके अलावा, AEW&C विमान निगरानी और नियंत्रण की नई क्षमता देगा। इस परियोजना के तहत छह AEW&C विमान तैयार किए जाएंगे, जिन पर सक्रिय इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन ऐरे (AESA) रडार, इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस और सिग्नल इंटेलिजेंस सिस्टम लगाए जाएंगे। ये सिस्टम पुराने Airbus-321 विमानों (एयर इंडिया से खरीदे गए) पर फिट किए जाएंगे। इस परियोजना की लागत 19,000 करोड़ रुपये होगी और सभी विमान 2033-34 तक वायुसेना को सौंप दिए जाएंगे। इन विमानों में 300-डिग्री रडार कवरेज होगी, जो मौजूदा 240-डिग्री क्षमता (नेट्रा-1) से कहीं अधिक है।
हम आपको बता दें कि वर्तमान में IAF के पास केवल तीन स्वदेशी "नेट्रा" AEW&C विमान (Embraer-145 प्लेटफॉर्म पर) और तीन इजरायली "फैल्कन" रडार (IL-76 पर) हैं। तुलना में, पाकिस्तान और चीन के पास कहीं अधिक उन्नत और बड़ी संख्या में AEW&C सिस्टम हैं। यह परियोजना भारत को उस असमानता को पाटने में मदद करेगी।
देखा जाये तो IAF की फाइटर स्क्वॉड्रनों की संख्या तेजी से घट रही है। अगले महीने 36 पुराने मिग-21 विमानों के रिटायर होने के बाद संख्या घटकर 29 स्क्वॉड्रन रह जाएगी, जबकि IAF की अधिकृत क्षमता 42.5 स्क्वॉड्रन है। उधर, पाकिस्तान के पास वर्तमान में 25 स्क्वॉड्रन हैं और उसे जल्द ही चीन से 40 जे-35ए स्टील्थ जेट मिलने वाले हैं। वहीं, चीन की सामरिक क्षमता कहीं अधिक है। भारत की तुलना में उसके पास चार गुना से अधिक लड़ाकू और बमवर्षक विमान तथा AEW&C जैसे फोर्स-मल्टीप्लायर हैं। ऐसे में तेजस और AEW&C का समय पर शामिल होना भारत की वायु शक्ति संतुलन (Air Power Balance) के लिए निर्णायक होगा।
वैसे इस राह में चुनौतियाँ भी कई हैं। HAL और अन्य घरेलू आपूर्तिकर्ताओं को समयबद्ध डिलीवरी सुनिश्चित करनी होगी। साथ ही विदेशी इंजन और हथियार प्रणालियों पर निर्भरता (जैसे GE-404 इंजन में दो साल की देरी) आत्मनिर्भरता की राह में बाधा है। इसके अलावा, AEW&C परियोजना की लागत में 7,000 करोड़ रुपये की वृद्धि पहले ही हो चुकी है।
बहरहाल, भारत का यह कदम न केवल रक्षा आधुनिकीकरण की दिशा में बल्कि आत्मनिर्भर भारत अभियान के अनुरूप भी है। 180 तेजस विमानों और छह AEW&C प्लेटफॉर्म की समयबद्ध आपूर्ति होने पर भारतीय वायुसेना की ताकत में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। यह निर्णय दर्शाता है कि भारत अब केवल आयातक राष्ट्र नहीं बल्कि रक्षा उत्पादन में स्वदेशी क्षमताओं को मज़बूत कर क्षेत्रीय शक्ति संतुलन बनाए रखने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। इसके साथ ही यह भी स्पष्ट है कि आज के भू-राजनीतिक परिदृश्य में राष्ट्रीय सुरक्षा पर निवेश विलासिता नहीं बल्कि अनिवार्यता है। रक्षा तैयारियों पर खर्च किया गया हर रुपया भविष्य में होने वाले बड़े नुकसान को टालने की गारंटी है।