इस्लामिक आक्रमण मांडू में 19000 राजपूतों का कत्ल, सेक्यूलरिज्म ने सत्य पर डाला पर्दा

By दिनेश शुक्ल | May 31, 2020

भोपाल। इतिहास के तहखाने में जाता हूं तो मेरे लिये जिंदा कहानियों के ब्यौरे हैं। अब से 400 वर्षों पहले के इस्लामिक आक्रमणों के इतिहास को खंगालता हूं तो अपना रक्त, कटा गर्दन, अपनी लाश, माताओं के जौहर की गाथाओं को महसूस करता हूं। इस्लामिक आक्रमण से तहस-नहस हो गये अपने वैभवशाली खंडहरों से वार्तालाप करता हूं तो लाशें, सामूहिक चिताएं, राख, जौहर की सिसकियाँ कानों में गूंजने लगती हैं। यह देश टूटते-बिखरते मंदिर, जौहर को देखा है। यह बातें रविवार को दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान के तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय वेबीनार 'रिविजिटिंग सेंट्रल इंडिया' के चतुर्थ सत्र को संबोधित करते हुए वरिष्ठर पत्रकार, लेखक व राज्य सूचना आयुक्त, मध्यप्रदेश विजय मनोहर तिवारी ने कही। इस चार दिवसीय वेबीनार के चौथे दिन 'मध्यप्रदेश में इस्लामी आक्रमण के अनछुए पहलू' पर विचार रखते हुए उन्होंने कहा इतिहास की पुस्तकों में हमलावरों के बारे में नहीं बताया गया। लूटेरों को निजाम, सुल्तान, महान पढ़ाया गया। जबकि इन सभी ने हमारे बच्चों, स्त्रियों पर अत्याचार किये। मुसलमान आक्रांता शिकारी कुत्तों की तरह लूटमार करते हुए भारत आये। उन्होंने कहा कि इस्लामिक आक्रमण अंतहीन कहानी है।

 

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रोमिला थापर, इरफान हबीब सहित कई अन्य इतिहासकारों पर कल्पनीय लेखन का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि जो जहां है, अपने आस-पास खोजिये। वहां की चीजों को सुनिये। एक अलिखित इतिहास से सामना होगा, जिसको पाठ्यक्रमों में शामिल न करके सत्य से देश, समाज को भटकाया गया। उन्होंने कहा कि 70 वर्ष से पहले सेक्यूलरिज्म नहीं था। 1947 के बाद सेक्यूलरिज्म ने सत्य पर पर्दा डालने के लिये विवश किया।  विजय मनोहर तिवारी ने मध्य प्रदेश में हुए इस्लामिक आक्रमणों का उल्लेख करते हुए बताया कि मध्यप्रदेश में 1231-32  में ग्वालियर में पहला मुस्लिम आक्रमण हुआ जिसमें 800 लोगों का कत्ल हुआ। यह हमलावर दिल्ली से ग्वालियर पहुंचे थे और करीब 8 महीने की घेराबंदी के बाद उन्होंने ग्वालियर के किले पर कब्जा कर लिया मीनहाज सिराज जो मोहम्मद गोरी के परिवार में पला बढ़ा था उसने सेना को जीतने के लिए 95 जोशीले भाषण दिए। बाद में वह ग्वालियर का का काजी बना। उस समय ग्वालियर को 10 हजार इस्लामिक हमलावर घेरे हुए थे। मंदिरों को तोड़कर मलबों से मस्जिद बनाये गये।

 

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उन्हों ने बताया कि इल्तुतमिश ने विदिशा में 155 गज की मंदिर गिराई और विदिशा को नष्ट किया। उज्जैन में महाकाल मंदिर को तोड़ा, जिसे बनाने में तीन साल लगे थे। इधर से वह दो मूर्तियां भी ले गया। सिराज ने लिखा है कि 1300 वर्ष पूर्व विक्रमादित्य के समय से वह मंदिर था। उन्होंने बताया कि ग्वालियर, विदिशा, उज्जैन को महीनों घेरे रहे। उज्जैन की दोनों मूर्तियां दिल्ली की जामा मस्जिद में लगाई गयी हैं। अपने पूरे शासन काल में इल्तुतमिश भारत को लूटता रहा और मंदिरों को तोड़ता रहा। उन्होंने बताया कि अलाउद्दीन खिलजी ने भी विदिशा को लूटा। यहां के बाद 10 हजार गुंडों की फौज इकट्ठा करके महाराष्ट्र स्थित देवगिरि को लूटने के लिये प्रस्थान किया। यहां उसने 600 मन सोना लूटा। 14-15 वीं सदी में तुगलक आये। तुगलकों को उज्जैन को राजधानी बनाने की सलाह दी गयी थी, जैसा कि नहीं हो पाया। तैमूर लंग महामारी की तरह आया और अपने पीछे लाशों का ढेर छोड़ गया। दिलावर खां मालवा में प्रवेश करता है। इसने रायसेन, चंदेरी, जौनपुर, दिल्ली, उज्जैन सहित देश के कोने-कोने में हमला किया।


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