विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी स्टार्टअप के लिए 200 इन्क्यूबेटर्स

By उमाशंकर मिश्र | Jan 18, 2018

नई दिल्ली, (इंडिया साइंस वायर): भारत ‘ब्रेन ड्रेन’ से ‘ब्रेन गेन’ की स्थिति में पहुंच रहा है और विदेशों में काम करने वाले भारतीय वैज्ञानिक विभिन्न अध्येतावृत्तियों के जरिये भारत लौट रहे हैं। प्रतिभा के आधार पर योग्य लोग इन वैज्ञानिकों का चयन कर रहे हैं। इससे जाहिर होता है कि एक व्यावहारिक अनुसंधान गंतव्य के रूप में भारत उभर रहा है। 

ये बातें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने नई दिल्ली में अपने निवास स्थान पर आयोजित एक प्रदर्शनी के दौरान लोगों को संबोधित करते हुए कही हैं। 

 

प्रदर्शनी में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर आधारित उपलब्धियों, सामाजिक एवं आर्थिक विकास से जुड़े कार्यक्रमों और योजनाओं को दर्शाया गया है। 

 

पोस्टर्स, मॉडल्स और दृश्य माध्यमों के जरिये इन तीनों मंत्रालय की गतिविधियों और शोध फेलोशिप समेत युवा वैज्ञानिकों के लिए अनुकूल वातावरण मुहैया कराने से जुड़ी जानकारियां भी यहां प्रदर्शित की गई हैं।

 

इस अवसर पर मौजूद विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. आशुतोष शर्मा ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए कई नए कार्यक्रम शुरू किए जा रहे हैं। हम हर साल दस हजार विज्ञान आधारित नवोन्मेष की कहानियों को गढ़ना चाहते हैं। इसके लिए जमीनी स्तर पर एक अभियान शुरू किया जा रहा है, जिसमें पांच लाख स्कूलों को शामिल किया जाएगा और प्रत्येक स्कूल से दो प्रमुख नवोन्मेषी आइडिया चुने जाएंगे।”

 

डॉ. शर्मा ने बताया कि “इस तरह छात्रों के कुल दस लाख आइडिया इस अभियान के तहत चुने जाएंगे, जिसमें से एक लाख आइडिया चुनकर उनमें से प्रत्येक आइडिया का प्रोटोटाइप विकसित करने के लिए 10 हजार रुपये दिए जाएंगे। इसके तहत छात्रों को प्रशिक्षण के साथ-साथ मेंटरशिप, कार्यशालाओं में शामिल होने का अवसर, वैज्ञानिकों से संवाद और प्रयोगशालाओं को देखने का मौका मिलेगा। जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर की नवोन्मेष आधारित प्रतियोगिताओं से गुजरने के बाद देश भर से 100 छात्र चुनें जाएंगें, जिन्हें राष्ट्रपति भवन में आयोजित होने वाले इनोवेशन फेस्टिवल में शामिल होने का मौका मिलेगा।”

 

डॉ. शर्मा के अनुसार, “तीन साल पहले विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग 100 इन्क्यूबेटर्स संचालित कर रहा था। हमारा लक्ष्य पांच वर्षों में इनकी संख्या बढ़ाकर 200 करने की है। फिलहाल 140 इन्क्यूबेटर संचालित हो रहे हैं, जिनसे देश के शैक्षिक संस्थानों को जोड़ा जा रहा है। इस पहल से विज्ञान एवं तकनीक से जुड़े स्टार्टअप को बढ़ावा मिलेगा और कॉलेजों से निकलने वाले युवाओं को स्टार्टअप शुरू करने के बेहतर अवसर मिलेंगे। स्टार्टअप परियोजनाओं के लिए एक करोड़ रुपये तक सीड फंडिंग दी जा रही है। स्टार्टअप से पहले तकनीक के प्रदर्शन के लिए भी 10 लाख रुपये की आर्थिक मदद दी जा रही है।”

 

डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि "रिसर्च, नैनो तकनीक और मौसम पूर्वानुमान एवं निगरानी के क्षेत्र में भी हम आगे बढ़ रहे हैं। हाल में मौसम पूर्वानुमान एवं निगरानी के लिए प्रत्युष नामक शक्तिशाली सुपर कंप्यूटर स्थापित करके भारत इस क्षेत्र में जापान, ब्रिटेन और अमेरिका के बाद चौथा प्रमुख देश बन गया है। नैनो तकनीक पर शोध के मामले में भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर पहुंच गया है।” 

 

डॉ. हर्षवर्धन ने बताया कि "भारत का वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) सरकारी फंड पर चलने वाले दुनिया के 1200 से संस्थानों की सूची में 9वें पायदान पर है। पिछले वर्ष जनवरी में शुरू की गई वज्र (विजटिंग एडवांस्ड ज्वाइंट रिसर्च) जैसी योजनाओं एवं अध्येतावृत्तियों के जरिये विदेशों में रह रहे हमारे वैज्ञानिक भारत लौट रहे हैं। इस योजना की शुरुआत विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के वैज्ञानिकों एवं शिक्षाविदों को आकर्षित करने के लिए की गई थी, ताकि वे भारत लौटकर देश के अनुसंधान और विकास में योगदान दे सकें।”

 

जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर के. विजयराघवन ने बताया कि “प्रदर्शनी में पॉलिसी, शोध एवं विकास, और मानव संसाधन विकास समेत तीन प्रमुख पहलुओं को दर्शाने का प्रयास किया है। उदाहरण के लिए पॉलिसी को ले सकते हैं, जिसमें डीएनए पॉलिसी, पौधों एवं पशुओं से संबंधी जैव प्रौद्योगीय नीतियां और बायोसिमिलर्स जैसी नीतियां शामिल हैं।” 

 

प्रोफेसर विजयराघवन ने बताया कि “शोध एवं विकास के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी विभाग बड़ी संख्या में अन्य संस्थानों को सहयोग कर रहा है, जिसमें से 15 संस्थानों को सीधे मदद दी जा रही है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के साथ मिलकर स्कूल के स्तर से मानव संसाधन के विकास, जेआरएफ अध्येताओं के लिए शोध कार्यक्रम और डीबीटी-वेलकम ट्रस्ट अलायंस एवं रामालिंगास्वामी फेलोशिप जैसी योजनाओं के जरिये भारतीय मूल के वैज्ञानिकों को देश के विकास में योगदान देने के लिए आकर्षित करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं।” 

 

प्रदर्शनी के एक हिस्से में डॉ. हर्षवर्धन विशेष रूप से स्थापित एक पंडाल में आगंतुकों के साथ सीधा संवाद करते हैं। ऐसे एक संवाद के दौरान डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि “मैं स्कूलों से बच्चों को समूह में भेजने के लिए आमंत्रित कर रहा हूं ताकि वे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में होने वाली गतिविधियों से परिचित हो सकें। इससे बच्चों को इन क्षेत्रों में कॅरियर बनाने के लिए रुचि विकसित करने में भी मदद मिल सकती है।” प्रदर्शनी इस महीने के अंत तक जनता के लिए खुली रहेगी। 

 

(इंडिया साइंस वायर) 

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