हिंसा और बेरोजगारी के बीच झूलते अफगान में भारतीयों के अपहरण के मायने

By डॉ. संजीव राय | May 08, 2018

रविवार को अफ़ग़ानिस्तान के बगलान प्रान्त में एक निजी इंजीनियरिंग कंपनी के लिए काम करने वाले 7 भारतीय कर्मचारियों का, एक हथियारबंद गिरोह ने अपहरण कर लिया। इस घटना के पीछे तालिबान का हाथ होने के क़यास लगाए जा रहे हैं। साल 2018 के अंत तक अफ़ग़ानिस्तान में आम चुनाव होने हैं और अभी तक तालिबान के साथ शांति-समझौते के राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय प्रयास किसी सकारात्मक निष्कर्ष तक नहीं पहुँच सके हैं। कुछ विरोधी गुट, चुनाव का विरोध कर रहे हैं और इन दिनों  चुनाव प्रकिया में लगे लोग और वोटर पहचान पत्र बनवाने वाले आम लोग भी निशाने पर हैं। 6 मई, 2018 को ही खोस्त प्रान्त में चुनाव रजिस्ट्रशन के लिए मस्जिद के एक हिस्से में बने दफ्तर के पास हुए धमाके में 17 लोगों की मौत हो गई और 33 लोग ज़ख़्मी हो गए। इसके पहले, अप्रैल माह में ही, काबुल के एक इलाके में चुनावी पहचान पत्र बनाने वाले केंद्र पर हुए बम विस्फोट से 60 से ज़यादा लोग मारे गए और 129 लोगों के घायल होने की खबर है। अप्रैल महीने में ही, जलालाबाद और गोर में भी चुनाव तैयारी की प्रक्रिया को बाधित करने के प्रयास में हमले हुए और पुलिस जवानों के साथ कुछ और लोग मारे गए।

अफ़ग़ानिस्तान का आम-अवाम, हिंसा से बाहर निकलना चाहता है। देश का नागरिक एक ऐसी मज़बूत सरकार चाहता है जो देश में अमन, रोज़गार और बेहतर अस्पताल मुहैया करा सके। हाल ही में  अफगानिस्तान के केंद्रीय सांख्यकी संघटन (CSO) द्वारा जारी एक रिपोर्ट बताती है कि देश में 54 % के करीब लोग गऱीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। अधिकांश लोगों की मासिक आय 2064 अफगानी रुपये तक है। 15 % लोग अत्यंत निर्धन हैं और उनके पास अपनी मूलभूत ज़रूरतों के लिए कोई निश्चित आमदनी का स्रोत नहीं है। काबुल-जलालाबाद-मज़ार इ शरीफ जैसे शहरों में बाल श्रमिक बहुतायत में हैं। देश में अभी बेरोज़गारी की दर 24 % के करीब है। देश में पिछले चार दशक से राजनीतिक उठा-पटक के बीच, हिंसा की घटनाओं में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में इन वर्षों में कभी पूरी तरह से शांति व्यवस्था स्थापित नहीं हो सकी।

 

देश के अधिकतर इलाके में तालिबान और सरकारी सेना/पुलिस दल के बीच, वर्चस्व और नियंत्रण बनाये रखने को लेकर हमला-गोलीबारी की घटनाएं होती रहती हैं। लेकिन साल 2017-2018 में हिंसक घटनाओं का चरित्र और बारम्बारता दोनों ही बदले हैं। सन 2001-2002 में काबुल की सत्ता खो देने के बाद, तालिबान को कुछ वक्त लगा लेकिन, उसने फिर से नए लड़ाकों के साथ अपनी ताकत दिखानी शुरू कर दी। कई इलाकों में, तालिबान का वर्चस्व ही नहीं कायम है बल्कि ऐसे भी कहा जाता है कि, उनके लोग बिजली /व्यापार आदि का टैक्स भी वसूलते हैं। उनके प्रभाव वाले देहाती इलाकों में उनको ज़कात भी मिलती है।

 

काबुल के आस-पास सुरक्षा बंदोबस्त ठीक होने के कारण, सरकार विरोधी गुटों के लिए कोई बड़ी घटना को अंजाम देना आसान नहीं था। लेकिन जैसे-जैसे सरकार की ओर से, सुरक्षा के इंतजाम बेहतर होने लगे,  सरकार विरोधी गुटों ने भी अपनी रणनीति बदल ली। पहले जहाँ सेना, पुलिस, सरकारी प्रतिष्ठान, कुछ दूतावास उनके निशाने पर होते थे अब ऐसा नहीं है। हाल कि घटनाओं में बड़ी संख्या में आम-अवाम मारे गए हैं और हमलावर संगठनों ने उसकी ज़िम्मेदारी भी ली है। साल 2017 के मई महीने में, काबुल शहर में ईरानी दूतावास के पास पानी के टैंकर में लाये गए विस्फोटक से 2-3 किलोमीटर के आस-पास की बिल्डिंगों के खिड़की-दरवाजे-शीशे उड़ गए थे और 150 से ज़्यादा लोग मारे गए थे।

 

अभी जनवरी, 2018 में इंटर कॉन्टिनेंटल होटल के भीतर कई विदेशी नागरिक मारे गए थे। और फिर 27 जनवरी को काबुल के व्यस्त बाजार, कूचे मुर्ग में एक एम्बुलेंस में लाये गए विस्फोटक ने 100 से अधिक लोगों की जान ले ली थी और 250 लोग घायल हो गए थे। तालिबान ने चुनाव प्रक्रिया को रोकने के लिए चहुंतरफा हमला शुरू किया है। दो दिन पहले ही, लोगर प्रान्त में एक स्कूल को आग के हवाले कर दिया गया। इस स्कूल में 1100 छात्र नामांकित हैं। आग लगाए जाने का कारण ये था कि, स्कूल को चुनाव रजिस्ट्रशन का केंद्र बनाया गया था!  कुछ इलाकों में, चुनाव पहचान पत्र रखने वाले लोगों को तालिबान द्वारा दण्डित करने की भी घटनाएं होने की खबर हैं।

 

बढ़ती बेरोज़गारी और हिंसा के साथ, स्थानीय अपराध भी बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में अपहरण की घटनाओं में हाल के वर्षों में इजाफा हुआ है। बेतहाशा भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद से भी लोगों को रोज़गार के उपयुक्त अवसर नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में देश से लोगों का पलायन और अपराध बढ़ते जाने का अनुमान है। मार्च, 2018 में ही इराक़ के मोसुल से ख़बर आई थी कि 39 भारतीय मज़दूरों का दाएश ने अपहरण करके हत्या कर दी थी। लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में परम्परागत रूप से भारत के लोगों के प्रति आम तौर पर इज्ज़त का भाव रहता है। लेकिन बदलते राजनीतिक पारिदृश्य में, 7 भारतीयों का अपहरण, सशस्त्र गुटों का एक रणनीतिक कदम भी हो सकता है जिससे दूसरे देशों को भी एक सन्देश मिले और चुनाव प्रक्रिया रुक जाये। भारत के लिए और अपहरण हुए लोगों के परिजनों के लिए यह घटना चिन्ताजनक है। अफ़ग़ानिस्तान के आम लोगों को भी भारतीय लोगों की रिहाई की अपील करनी चाहिए। निश्चित तौर पर बेकसूर कर्मचारियों को जल्दी रिहा करना चाहिए जो कि अफ़ग़ानिस्तान में बिजली व्यस्था को बेहतर करने के लिए काम कर रहे थे।

 

-डॉ. संजीव राय

(लेखक अफगानिस्तान में काम कर चुके हैं और वहाँ के जमीनी हालात से बखूभी वाकिफ हैं।)

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