Margashirsha Surya Saptami Fast: मार्गशीर्ष सूर्य सप्तमी व्रत से प्राप्त होती है निरोगी काया

By प्रज्ञा पांडेय | Nov 27, 2025

आज मार्गशीर्ष सूर्य सप्तमी व्रत है, जिसे रथ सप्तमी या सूर्य जयंती भी कहा जाता है। यह व्रत माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है जो सूर्य को समर्पित एक त्योहार है। इसे सूर्य देव के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन लोग सूर्य की उपासना करके आरोग्य, निरोग काया और समृद्धि की कामना करते हैं तो आइए हम आपको सूर्य सप्तमी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं। 


जानें मार्गशीर्ष सूर्य सप्तमी व्रत के बारे में 

मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अर्क, अचला सप्तमी, सूर्यरथ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी और भानु सप्तमी आदि के विभिन्न नामों से जाना जाता है। इस दिन जो भी व्यक्ति सूर्यदेव की उपासना करता है, वह सदा निरोगी रहता है। यह एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है जो विशेष रूप से उत्तर भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व नंदनी व्रत या नंदा सप्तमी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। नंदा सप्तमी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है जो देवी नंदा, मां पार्वती का एक रूप और सूर्य देव को समर्पित है। नंदा सप्तमी का दिव्य महत्व कई पहलुओं से जुड़ा हुआ है और यह व्रत खासतौर पर सप्तमी तिथि को होता है। नंदा सप्तमी का व्रत मुख्य रूप से तीन प्रमुख शक्तियों की आराधना के लिए जाना जाता है: देवी नंदा, भगवान श्री गणेश और सूर्य देव। इस साल मार्गशीर्ष सूर्य सप्तमी तिथि 27 नवंबर को पड़ रही है।


माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन प्रात: सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी अथवा जलाशय में स्नान करके सूर्य को दीपदान करना उत्तम फलदायी माना गया है। प्रात:काल किसी अन्य के जलाशय में स्नान करने से पूर्व स्नान किया जाए तो यह बड़ा ही पुण्यदायी होता है। मित्र सप्तमी के दिन पवित्र नदी में स्नान करते समय भगवान सूर्य को जल चढ़ाने का विशेष महत्व है। ब्रह्मांड में सकारात्मकता के स्वामी सूर्यदेव को प्रत्यक्ष देवता माना जाता है। मित्र सप्तमी के दिन सूर्य देव की पूजा करने से सभी सुखों, आंखों की रोशनी और त्वचा के रोगों से मुक्ति मिलती है।

इसे भी पढ़ें: 4 Stairs Of Heaven: रावण की 'स्वर्ग की सीढ़ियां', हरिद्वार से किन्नौर तक, क्या आज भी मौजूद हैं वो 4 पौड़ियां

देवी नंदा और मां पार्वती का स्वरूप है खास

नंदा देवी को माता पार्वती या देवी दुर्गा का ही एक स्वरूप माना जाता है। वह नवदुर्गा में से एक हैं और विशेष रूप से इनका पूजन प्राचीन काल से हिमालय क्षेत्र/ उत्तराखंड की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है। नंदा सप्तमी का व्रत मार्गशीर्ष या अगहन मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रखा जाता है।


मार्गशीर्ष सूर्य सप्तमी व्रत का है विशेष महत्व

पंडितों के अनुसार इस दिन देवी नंदा की पूजा करने से भक्तों को सर्व-सुख सौभाग्य बल और ज्ञान की प्राप्ति होती है। यह व्रत जीवन में शांति और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए बहुत फलदायी माना जाता है। चूंकि यह सप्तमी तिथि को पड़ता है इसलिए इसे 'भानु सप्तमी' या 'सूर्य सप्तमी' भी कहा जाता है।


इसी वजह से इस दिन सूर्य देव की आराधना करने का विशेष महत्व है। सूर्य देव तेज आरोग्य या अच्छा स्वास्थ्य और ऊर्जा के प्रतीक हैं। सूर्य की उपासना से व्यक्ति को रोगों से मुक्ति मिलती है और लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है। इस दिन सूर्य देव को अर्घ्य देने और आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है।

 

प्रथम पूज्य गणेश जी का पूजन से होगा लाभ

मार्गशीर्ष सूर्य सप्तमी व्रत के दिन भगवान श्री गणेश की भी विधि-विधान से पूजा की जाती है जो कि किसी भी शुभ कार्य या देवी-देवता के पूजन से पहले आवश्यक है। गणेश जी की पूजा से व्रत में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं और पूजा सफल होती है।

 

मार्गशीर्ष सूर्य सप्तमी व्रत से होते हैं ये फायदे

पंडितों के अनुसार यह व्रत श्रद्धा और भक्ति से करने वाले भक्तों को सूर्य देव की कृपा से स्वास्थ्य लाभ और दीर्घायु प्राप्त होती है। यह व्रत सभी प्रकार के दोषों को खत्म करने वाला और मन को शांति प्रदान करने वाला माना जाता है। देवी नंदा के आशीर्वाद से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। 

 

मार्गशीर्ष सूर्य सप्तमी पर ऐसे करें पूजा 

पंडितों के अनुसार सप्तमी के दिन पवित्र नदियों में स्नान करें और सूर्य देव को जल चढ़ाएं। इस दिन व्रत रखें और सिर्फ फल खाएं और नमक बिल्कुल न खाएं। लाल चंदन की माला या रुद्राक्ष की माला से गायत्री मंत्र का जाप करने से मानसिक खुशी, शांति और शारीरिक ताकत मिलती है। उगते सूर्य को अर्घ्य देने और पानी की गिरती धारा के बीच सूर्य देव के दर्शन करने से आंखों की बीमारियां ठीक होती हैं। मित्र सप्तमी के दिन सात घोड़ों पर बैठे सूर्य देव की तस्वीर या मूर्ति की पूजा करने से स्किन की बीमारियां ठीक होती हैं।


सूर्य सप्तमी व्रत से जुड़ी ये हैं मान्यताएं

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सूर्य देव की पूजा करने से व्यक्ति को रोगों से मुक्ति मिलती है और निरोगी काया का वरदान प्राप्त होता है। इस दिन किए गए स्नान, दान और पूजा-पाठ का फल कई गुना बढ़कर मिलता है। इस दिन को सूर्य देव का जन्मदिन माना जाता है, जब उन्होंने पहली बार अपने रथ पर सवार होकर इस दुनिया को प्रकाशित किया था। इस दिन से सूर्य का रथ उत्तर दिशा की ओर बढ़ना शुरू होता है, जो लंबे और गर्म दिनों की शुरुआत का प्रतीक है। 


मार्गशीर्ष सूर्य सप्तमी से जुड़ी पौराणिक कथा

रथ सप्तमी का दिन केवल भगवान सूर्य के जयंती का दिन नहीं है बल्कि यह वह दिन भी है जब श्रीकृष्ण के पुत्र के श्राप के कारण सूर्या सप्तमी व्रत की शुरुआत हुई थी। यानि यह दिन श्री कृष्ण के पुत्र सांब से भी संबंधित है। हिन्दू धर्म में रथ सप्तमी को अचला सप्तमी, सूर्य सप्तमी, सूर्य जयंती और माघ सप्तमी आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन स्नान करना और दान देना बेहद शुभ माना जाता है।


- प्रज्ञा पाण्डेय

प्रमुख खबरें

रूसी राष्ट्रपति पुतिन का विमान भारत जाते समय दुनिया का सबसे ज़्यादा ट्रैक किया जाने वाला विमान था

Shikhar Dhawan Birthday: वो गब्बर जिसने टेस्ट डेब्यू में मचाया था तहलका, जानें शिखर धवन के करियर के अनसुने किस्से

Parliament Winter Session Day 5 Live Updates: लोकसभा में स्वास्थ्य, राष्ट्रीय सुरक्षा उपकर विधेयक पर आगे विचार और पारित करने की कार्यवाही शुरू

छत्तीसगढ़ : हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल की तबीयत बिगड़ी, अस्पताल में भर्ती