सूरमा भोपाली बन अमर हो गए थे अभिनेता जगदीप, जानिए क्या थी इस किरदार के पीछे की कहानी!

By श्वेता उपाध्याय | Jul 10, 2020

बॉलीवुड ने अपना सबसे मजा हुआ कलाकार खो दिया। 81 साल की उम्र में अभिनेता जगदीप ने 8 जुलाई की शाम को जब आखिरी सांस ली तब ऐसा लगा मानो बॉलीवुड पर तो जैसे एक-एक कर दुखों का पहाड़ गिर पड़ा हो। साल 2020 अब किसी काल जैसा महसूस हो रहा है। ऐसा व्यतीत हो रहा है, जैसे ये सब कोई बुरा सपना हो, कब खत्म होगा कौन जाने? गुज़रते दिनों के साथ कोई न कोई बुरी खबर हर दिन आ ही जा रही है। पहले इरफ़ान खान, फिर ऋषि कपूर, फिर सुशांत सिंह राजपूत और अब 'शोले' के सूरमा भोपाली उर्फ़ मशहूर अभिनेता जगदीप।

बड़े पर्दे पर एक से बढ़कर एक बेहतरीन किरदार निभाने वाले जगदीप ने अपने जीवन काल में तक़रीबन 400 से भी ज्यादा फिल्मों में काम किया। वे अपने हर किरदार में इस कदर ढल जाते थे कि कई बार फिल्मों में मुख्य किरदार से ज्यादा लोग उन्हें पसंद करते थे। उन्होंने दर्शकों के दिलों में अपनी अलग ही जगह बना ली। जगदीप उस दौर के कलाकार थे जब फिल्मों में हास्य कलाकार की जगह किसी हीरो से कम नहीं समझी जाती थी। जहां फिल्म फिल्म की पकड़ ढीली होती थी, वहीं ये अपना जलवा बिखेरना शुरु कर देते थे। पर्दे पर इनकी एंट्री भर से ही दर्शक तालियां पीटना शुरू कर देते थे।

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जगदीप का असली नाम सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी था लेकिन बॉलीवुड में कदम रखते ही उन्होंने अपना नाम बदल कर जगदीप रख लिया। जगदीप ने अपना फ़िल्मी सफर बतौर बाल कलाकार शुरू किया था।

वैसे तो उनका हर एक किरदार सराहनीय रहा है लेकिन लोगों के दिलों में जो अमर हो चुका है वह है उनके सूरमा भोपाली का किरदार। रमेश सिप्पी के निर्देशन में बनी फिल्म 'शोले' में उन्होंने यह किरदार निभाया था और तब से वे जगदीप से ज्यादा सूरमा भोपाली के नाम से मशहूर हो गए। उन्होंने एक इंटरव्यू में अपने इस किरदार को लेकर काफी दिलचस्प किस्सा भी बताया था।

एक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि, 'आप जगदीप हैं, आपको असली नाम से कम ही लोग जानते हैं। आपके ज़हन में ये कैसे आया कि भोपाल की भाषा को दुनियाभर में मशहूर कर दें?' इस सवाल के जवाब में जगदीप ने कहा, 'ये बड़ा लंबा और दिलचस्प किस्सा है। सलीम और जावेद की एक फिल्म थी 'सरहदी लुटेरा', इस फिल्म में मैं कॉमेडियन था। मेरे डायलॉग बहुत बड़े थे तो मैं फिल्म के डायरेक्टर सलीम के पास गया और उन्हें बताया कि ये डायलॉग बहुत बड़े हैं। तो उन्होंने कहा कि जावेद बैठा है उससे कह दो'। फिर मैं जावेद के पास गया और मैंने जावेद से कहा तो उन्होंने बड़ी ही फुर्ती से डायलॉग को पांच लाइन में समेट दिया। मैंने कहा कमाल है यार, तुम तो बड़े ही अच्छे राइटर हो। इसके बाद हम शाम के समय साथ बैठे, किस्से कहानी और शायरियों का दौर चल रहा था। उसी बीच जावेद ने एक लहजा बोला "क्या जाने, किधर कहां-कहां से आ जाते हैं।" मैंने पूछा कि अरे ये क्या? कहां से लाए हो? तो वो बोले कि भोपाल का लहजा है।'

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जगदीप ने आगे बताते हुए कहा, 'मैंने कहा भोपाल से यहां कौन है? मैंने तो ये कभी नहीं सुना! इस पर उन्होंने कहा कि ये भोपाल की औरतों का लहजा है। वो इसी तरह बात करती हैं। तो मैंने कहा मुझे भी सिखाओ। इस वाकये के कुछ 20 साल बाद फिल्म 'शोले' शुरू हुई। मुझे लगा मुझे शूटिंग के लिए बुलाएंगे। लेकिन मुझे किसी ने बुलाया ही नहीं। फिर एक दिन रमेश सिप्पी का मेरे पास फोन आया। वो बोले शोले में काम करना है तुम्हें। मैंने कहा उसकी तो शूटिंग भी खत्म हो गई। तब उन्होंने कहा कि नहीं नहीं ये सीन असली है इसकी शूटिंग अभी बाकी है।' और फिर शुरू हुआ सूरमा भोपाली का सफर। 

उसके बाद जो हुआ वो तो जग जाहिर है। आज भले ही वे इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन लोगों के दिलों में हमेशा ज़िंदा रहेंगे सबके प्यारे 'सूरमा भोपाली'!

- श्वेता उपाध्याय

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