उस जगह जरूर जाइए जहां नल-नील ने बनाया था श्रीराम के लिए सेतु

By डॉ. प्रभात कुमार सिंघल | Feb 15, 2020

दक्षिण भारत का आखिरी छोर रामसेतु देखने का मेरा सपना उस दिन पूरा हुआ जब में उस पवित्र भूमि पर खड़ा था जिसे राम सेतुबंद कहते हैं। यहीं हिन्द महासागर से बंगाल की खाड़ी का मिलन देखते ही बनता था। चारों ओर अथाह जलराशि अपने में समाए विशालकाय समुद्र। समुद्र के किनारे किनारे कही रेत, कहीं काले पत्थर, पत्थर की चट्टानें। समंदर की गिरती उठती धूप में चांदी सी चमकती लहरें। जब भी कोई लहर किनारे पर आ कर चट्टान से टकरा कर बिखरती तो मन को लुभा लेती थी। कुछ सैलानी तो इतने रोमांचित थे कि वे दोनों समुद्रों के मिलन स्थल को देखने के लिए बीच में पसरी रेत पर दूर तक जाने में भी साहस दिखा रहे थे। हम भी हिम्मत जुटा कर इस खूबसूरती को देखने से अपने को नहीं रोक पाए औऱ जब हम वहाँ पहुँचे तो बस एकटक देखते ही रह गए। यहाँ से समुंद्र का किनारा कहां रह गया नज़र ही नहीं आ रहा था। समुंद्र के बीच अपने को पा कर सोच रहा था यहाँ राम के लिए पत्थरों का सेतु कैसे बनाया होगा।

इसे भी पढ़ें: रोहतांग पास किस बात के लिए मशहूर है ? यहाँ जाने का सबसे अच्छा समय क्या है ?

बताया जाता है कि यहीं दूसरे छोर पर श्रीलंका के राजा रावण पर आक्रमण करने के लिए भगवान राम को इसे पर करना था। कहा जाता है कि भगवान राम ने समुद्र देवता की पूजा की, लेकिन समुद्र के देवता प्रकट नहीं हुए जिसके बाद भगवान श्रीराम क्रोधित हो गए और समुद्र सूखा देने के लिए अपना धनुष उठा लिया। इससे भयभीत होकर समुद्र देवता प्रकट हुए, और बोले हे! श्रीराम आप अपनी वानर सेना की मदद से मेरे ऊपर पत्थर का पुल बनाएं। मैं इन सभी पत्थरों का वजन अपने ऊपर संभाल लूंगा इसके बाद नल औऱ नील वानरों ने समुद्र में पुल का निर्माण करने की जिमेददारी ली और सभी वानरों के सहयोग से पुल बनाया। काले रंग के ऐसे पत्थर थे जो पानी पर तैरते थे। इसी पुल से हो कर राम और उनकी सेना लंका पहुँची। ऐसे पत्थर आज भी वहाँ देखे जाते हैं। 

 

बंगाल की खाड़ी में रंगीन मूंगों, मछलियों, समुद्री शैवाल, स्टार मछलियों और समुद्र ककड़ी आदि को देख सकते हैं।

 

इस स्थान के समीप एक छोटे से स्थान को धनुषकोटि भी कहा जाता है। यहीं से लंका (कोलंबो) के लिए पानी के जहाज आते जाते थे। भगवान राम से जुड़े इस स्थान का प्राचीन समय से धार्मिक महत्त्व है। धर्म ग्रंथों के मुताबिक यहाँ रावण के भाई और राम के सहयोगी विभीषण के आग्रह पर राम ने अपने धनुध की एक सिरे को तोड़ दिया था तब ही से इस का नाम धनुष कोटि हो गया। पहले लोग दोनों समुद्रों के इस संगम सेतु पर स्नान कर रामेश्वरम की यात्रा प्रारंभ करते थे। 

इसे भी पढ़ें: शादी के बाद हनीमून पर जाने की प्लानिंग कर रहे हैं तो यह जगह हैं सबसे बेस्ट

इसी के समीप ही कोद्ण्ड स्वामी मंदिर समुद्र के किनारे, एक और दर्शनीय मंदिर है। यह मंदिर रमानाथ मंदिर पांच मील दूर पर बना है। यह कोदंड ‘स्वामी को मंदिर’ कहलाता है। कहा जाता है कि विभीषण ने यहीं पर राम की शरण ली थी। रावण-वध के बाद राम ने इसी स्थान पर विभीषण का राजतिलक कराया था। इस मंदिर में राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां देखने योग्य है। विभीषण की भी मूर्ति अलग स्थापित है।

 

भगवान राम के जीवन एवं रामायण से जुड़े इस धार्मिक स्थल को देखने के लिए रामेश्वरम से ऑटो रिक्शा, बस एवं टैक्सियां उपलब्ध हैं। बस में समय ज्यादा लगने से दूसरे साधन ठीक रहते हैं। ये आने जाने के लिए 100 से 150 रुपये प्रति सवारी लेते हैं। रामेश्वरम से करीब 25 किमी दूर इस स्थान को देखने कर सूर्यास्त से पहले वापस आ जाना उचित होगा। दिन में जाते समय रास्ते का दृश्य मनोरम लगता है परंतु रात में वीरान से भयावह लगता है।

 

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

लेखक एवं पत्रकार

 

प्रमुख खबरें

पाक नेता कर रहे कांग्रेस के शहजादे को भारत का प्रधानमंत्री बनाने की दुआ : PM Modi

Asim Riaz को मिली नयी मेहबूबा! हिमांशी खुराना से ब्रेकअब के बाद Mystery Girl के साथ शेयर की रोमांटिक तस्वीर, फैंस हुए खुश

Prajwal Revanna case: राहुल गांधी ने कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया को लिखा पत्र, जानें क्या कहा

Healthy Diet: गर्मियों में सूर्य से नहीं बल्कि इन चीजों से भी मिलेगा विटामिन डी, डाइट में जरूर करें शामिल