अमेरिकी सेना की वर्दी पहन कर तालिबान लड़ाकों ने शुरू किया मौत का खेल

By नीरज कुमार दुबे | Aug 20, 2021

अफगानिस्तान की सेना तालिबानियों से नहीं लड़ी तो क्या हुआ वहां की जनता तालिबान के खिलाफ मुखर हो रही है और अपनी आजादी छिनने का विरोध कर रही है लेकिन तालिबानी लड़ाकों ने जो तेवर दिखाने शुरू किये हैं उससे लगता नहीं कि जनता का यह विरोध प्रदर्शन ज्यादा समय तक टिक पायेगा। 20 साल में इस दुनिया में भले बड़े बदलाव हो गये लेकिन तालिबान बिल्कुल नहीं बदला है और उसने अपना क्रूर चेहरा दिखाना शुरू कर दिया है। वहां बंधक बनाने का बिजनेस एक बार फिर से जोर पकड़ने का अंदेशा है इसलिए सभी बाहरी लोग तत्काल वहां से निकल लेना चाहते हैं। अफगान के हालात को लेकर जहां पूरी दुनिया में चिंता देखी जा रही है तो दूसरी तरफ चीन और पाकिस्तान की बल्ले-बल्ले हो गयी है। क्या है चीन और पाकिस्तान का नया गेम यह अपको आज की रिपोर्ट में समझायेंगे और यह भी बताएंगे कि अमेरिकी राष्ट्रपति के इस फैसले पर वहां की जनता क्या राय रखती है। साथ ही यह भी बताएंगे कि कैसे अमेरिकी उपकरणों के हाथ लगने पर तालिबान की हो गयी है मौज। खैर रिपोर्ट की शुरुआत में बताते हैं कि कैसे तालिबान अमेरिका के लिए खड़ी करने लगा है मुश्किलें।

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अमेरिका के लिए तालिबान ने खड़ी कीं नयी मुश्किलें


तालिबान रोजाना ऐसे कारनामे कर रहा है जिसकी वजह से व्हाइट हाउस और अमेरिकी सेना को मुँह छिपाना पड़ रहा है। अफगान सुरक्षा बलों की हार के बाद तालिबान लड़ाके अमेरिका निर्मित बख्तरबंद वाहनों में घूम रहे हैं, यही नहीं तालिबान लड़ाके अमेरिका द्वारा भेजे गये आग्नेयास्त्रों और अमेरिकी ब्लैक हॉक हेलीकॉप्टरों पर चढ़ रहे हैं। आसानी से अफगानिस्तान पर नियंत्रण करने के बाद इस्लामी विद्रोहियों ने हथियार, उपकरण और युद्ध सामग्री जब्त कर ली है। इन सामग्रियों में से अधिकांश अमेरिका ने अफगानिस्तान को दी थी। सोशल मीडिया में जो वीडियो वायरल हो रहे हैं उनमें तालिबान लड़ाकों को M4 और M18 असॉल्ट राइफल और M24 स्नाइपर हथियार लिए हुए, यूएस हम्वीज़ में घूमते हुए देखा जा सकता है और एक वीडियो में तो तालिबान लड़ाकों को अमेरिकी सुरक्षा बलों की वर्दी में घूमते हुए दिखाया गया है। यही नहीं अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना के उपकरण तालिबान के हाथ लग गये हैं जिससे अमेरिका में चिंता देखी जा रही है। यूएच-60 ब्लैक हॉक्स समेत अमेरिका के कई उपकरण तालिबान के हाथ लग गए हैं। विपक्ष बाइडन प्रशासन से सवाल कर रहा है कि अमेरिकी फौजों की सुरक्षित वापसी के साथ ही अमेरिकी हथियारों और उपकरणों को सुरक्षित क्यों वापस नहीं लाया गया। 


चुन-चुन कर अमेरिकी समर्थकों को मार रहा है तालिबान


यही नहीं, अफगानिस्तान पर कब्जा जमाते ही तालिबान ने किसी से बदला नहीं लेने का वादा किया था और सभी को माफ करने की घोषणा की थी लेकिन उसका यह वादा महज दुनिया की आंखों में धूल झोंकने भर के लिए था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, तालिबानी आतंकवादी अफगानिस्तान में घर-घर जाकर उन लोगों को तलाश रहे हैं जो अमेरिकी फौजों के मददगार रहे हैं। अगर ऐसे लोग खुद से सामने नहीं आ रहे हैं तो तालिबान उनके परिवार वालों की हत्या तक कर रहा है। अमेरिकी सेना के सेवानिवृत्त अधिकारी रेयॉन रोजर्स ने मीडिया को बताया कि उन्होंने 2010 में जिस दुभाषिए के साथ काम किया था, उसे तालिबानियों ने काबुल एयरपोर्ट पर पकड़ लिया और मार दिया। अफगानिस्तान में विदेशी मीडिया हाउस के लिए काम करने वाले पत्रकारों को भी तालिबान अपना निशाना बना रहा है। यही नहीं अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना के साथ वर्षों तक काम करने वाले अफगान राष्ट्रीय पुलिस के हाई-प्रोफाइल अधिकारी मोहम्मद खालिद वरदाक को बड़ी मुश्किल से बचाया गया है। बताया जा रहा है कि तालिबान उनकी तलाश में था और वह अपने परिवार के साथ काबुल में छिपे हुए थे। वरदाक लगातार जगह बदल रहे थे और ऐसे स्थान पर पहुंचने की बार-बार कोशिश कर रहे थे जहां से उन्हें उनके परिवार समेत सुरक्षित निकाला जा सके लेकिन उनकी कोशिश बार-बार नाकाम हो रही थी। पिछले कई दिनों में कम से कम चार बार देश से निकलने की कोशिश के बाद आखिरकार उन्हें परिवार समेत बुधवार को एक नाटकीय बचाव अभियान जिसे ‘ऑपरेशन वादा निभाया’ नाम दिया गया, में हेलिकॉप्टर की मदद से निकाला गया। कांग्रेस के पूर्व चीफ ऑफ स्टाफ और राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल में व्हाइट हाउस के अधिकारी रॉबर्ट मैकक्रियरी जिन्होंने अफगानिस्तान में विशेष बलों के साथ काम किया था, उन्होंने कहा कि अमेरिकी सेना और उसके सहयोगियों ने रात के अंधेरे में इस अभियान को अंजाम दिया।

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अफगान की दुर्लभ धातुओं पर चीन की नजर


दूसरी ओर, तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता में काबिज होने के साथ चीन की नजर अब सिर्फ अफगान जमीं का उपयोग अपने सामरिक हितों की पूर्ति करने में ही नहीं बल्कि वहां की धरती पर मौजूद खरबों डॉलर मूल्य की दुर्लभ धातुओं पर भी है। हम आपको बता दें कि अफगानिस्तान में मौजूद दुर्लभ धातुओं की कीमत 2020 में एक हजार अरब डॉलर से लेकर तीन हजार अरब डॉलर के बीच लगाई गई थी। इन कीमतों धातुओं का इस्तेमाल हाई-टेक मिसाइल की प्रणाली जैसी उन्नत तकनीकों में प्रमुख तौर पर किया जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार बड़ी मुश्किल से मिलने वाले इन धातुओं का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों के लिए दोबारा चार्ज की जाने वाली बैटरी, आधुनिक सिरामिक के बर्तन, कंप्यूटर, डीवीडी प्लेयर, टरबाइन, वाहनों और तेल रिफाइनरियों में उत्प्रेरक, टीवी, लेजर, फाइबर ऑप्टिक्स, सुपरकंडक्टर्स और ग्लास पॉलिशिंग में किया जाता है। सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (सीएसआईएस) की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन दुनिया की 85 प्रतिशत से अधिक दुर्लभ पृथ्वी की धातुओं की आपूर्ति करता है। चीन सुरमा (एंटीमनी) और बराइट जैसी दुर्लभ धातुओं और खनिजों की भी आपूर्ति करता है, जो वैश्विक आपूर्ति के लिए मौजूद लगभग दो-तिहाई हिस्सा है। हम आपको याद दिला दें कि चीन ने 2019 में अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध के दौरान धातु निर्यात को नियंत्रण में करने की धमकी दी थी। चीन के इस कदम से अमेरिकी उच्च तकनीक उद्योग के लिए कच्चे माल की गंभीर कमी हो सकती थी। तो इस तरह अफगानी माल पर है चीनी नजर इसीलिए उसकी नजर में तालिबान गुड ब्वॉय है। चीन की विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा भी है कि ‘‘अफगान तालिबान इतिहास को नहीं दोहराएगा और अब वे स्पष्टवादी एवं विवेकशील हो गए हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘वास्तव में देश में तेजी से बदलती स्थितियों में निष्पक्ष निर्णय का अभाव है और अफगानिस्तान में लोगों के विचार ठीक तरीके से नहीं समझे जा रहे हैं खास तौर पर पश्चिमी देशों को इससे सबक लेना चाहिए।’’


पाक मानव तस्करों की कमाई बढ़ी


उधर ऐसे में जबकि अफगानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण के बाद बड़ी संख्या में अफगान नागरिक देश से बाहर जाने के लिए प्रयासरत हैं। ऐसे में अफगानिस्तान की सीमा से लगे क्षेत्रों में सक्रिय पाकिस्तानी मानव तस्करों के कारोबार में खासी वृद्धि हुयी है। तालिबान के शासन से बचने के लिए हजारों अफगान देश से भाग रहे हैं और बेहतर जीवन की तलाश में अमेरिका और यूरोप सहित विभिन्न देशों में शरण मांग रहे हैं। अफगानिस्तान से लगती चमन-स्पिन बोल्डक सीमा के पास काम कर रहे तस्करों का कहना है कि तालिबान के काबुल में प्रवेश करने से पहले से ही कारोबार फल-फूल रहा है। इन तस्करों का कहना है कि हमने पिछले हफ्ते से अब तक सीमा पार से हजारों लोगों की तस्करी की है। मानव तस्करी में शामिल गिरोहों से वाकिफ एक सूत्र ने कहा कि ऐसे लोग ज्यादातर अशांत बलूचिस्तान प्रांत के चमन, चाघी और बदानी जैसे सीमावर्ती इलाकों में सक्रिय हैं। सूत्र ने कहा कि अधिकतर अनौपचारिक शरणार्थी पाकिस्तान में प्रवेश करने के बाद क्वेटा या अन्य पाकिस्तानी शहरों में चले जाते हैं। उनमें से कुछ लोगों के पहले से ही कराची या क्वेटा में काम करने वाले रिश्तेदार हैं जो उनका समर्थन करते हैं। देखा जाये तो सिर्फ इस साल करीब 55,000 अफगान नागरिक बलूचिस्तान के रास्ते पाकिस्तान में आए हैं, जिनमें ज्यादातर बच्चे और महिलाएं हैं।


बाइडन के फैसले से अमेरिकी जनता खुश


बहरहाल, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के निर्णय से अफगानिस्तान तो मुश्किल में फँस गया है। अफगानी लोग भले अमेरिका को गाली दे रहे हैं लेकिन सवाल उठता है कि अमेरिका वासी अपनी फौजों की वापसी को कैसे देख रहे हैं। तो आइये आपको यह भी बताये देते हैं। ‘द एसोसिएटेड प्रेस’ और एनओआरसी सेंटर फॉर पब्लिक अफेयर्स रिसर्च की तरफ से जारी एक सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि करीब दो-तिहाई अमेरिकी नागरिकों ने कहा कि उनका मानना है कि अमेरिका का सबसे बड़ा युद्ध लड़ने लायक नहीं था। वहीं 47 फीसदी लोगों ने अंतरराष्ट्रीय मामलों पर बाइडन के प्रबंधन को सही माना जबकि 52 फीसदी ने बाइडन की राष्ट्रीय सुरक्षा की नीति को सही ठहराया। तालिबान के अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा करने और सत्ता में लौटने के बीच यह सर्वेक्षण 12 से 16 अगस्त तक कराया गया था। करीब दो तिहाई लोगों का यह भी मानना है कि अफगानिस्तान के साथ ही चलने वाला इराक युद्ध भी एक गलती थी।


- नीरज कुमार दुबे

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