By सुरेश डुग्गर | Mar 02, 2019
जम्मू। कश्मीर में जमायत-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाने का मुद्दा अब बवाल बन गया है। संगठन के विरूद्ध की जा रही कार्रवाई और प्रतिबंध का विरामध करने वालों में जम्मू कश्मीर के कई राजनीतिक दल तथा राजनीतिज्ञ उठ खड़े हुए हैं। हालत तो यहां तक हास्यास्पद हो गई है कि पीडीपी प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने तो अपने दलबल के साथ विरोध प्रदर्शन का भी आयोजन कर डाला। जम्मू कश्मीर के कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध के खिलाफ पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती सड़क पर उतर आई हैं। पीडीपी वर्करों के साथ मिलकर श्रीनगर में उन्होंने केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा ने इससे पहले ट्वीट किया था कि लोकतंत्र विचारों का संघर्ष होता है, ऐसे में जमात-ए-इस्लामी (जेके) पर पाबंदी लगाने की दमनात्मक कार्रवाई निंदनीय है और यह जम्मू कश्मीर के राजनीतिक मुद्दे से अक्खड़ और धौंस से निपटने की भारत सरकार की पहल का एक अन्य उदाहरण है।
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उन्होंने कहा कि जमात-ए-इस्लामी से भारत की सरकार इतनी असुविधाजनक नहीं है। कश्मीरियों के लिए अथक परिश्रम करने वाले एक संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। क्या अब बीजेपी विरोधी राष्ट्र विरोधी हो रहा है? दरअसल केंद्र सरकार ने गुरुवार को इस आधार पर आतंकवाद निरोधक कानून के तहत जमात-ए-इस्लामी (जम्मू कश्मीर) पर पांच साल के लिए पाबंदी लगाई थी कि उसकी आतंकवादी संगठनों के साथ साठगांठ है और राज्य में अलगाववादी आंदोलन बहुत तेज होने की आशंका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा पर उच्चस्तरीय बैठक के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत इस संगठन पर पाबंदी लगाते हुए अधिसूचना जारी की। शनिवार को भी जमात के खिलाफ ताबड़तोड़ कार्रवाई चल रही है और उसके कई नेताओं को हिरासत में ले लिया गया है। जानकारी मुताबिक अकेले श्रीनगर में संगठन के 70 बैंक अकाउंट्स को सील कर दिया गया है।
श्रीनगर के बाद किश्तवाड़ में भी जमात-ए-इस्लामी के बड़े नेताओं को गिरफ्तार किया गया है। छापेमारी में 52 करोड़ की संपत्ति को जब्त करने की बात सामने आ रही है। कार्रवाई के दौरान अब्दुल हामिद फयाज, जाहिद अली, मुदस्सिर अहमद और गुलाम कादिर जैसे बड़े नेताओं को गिरफ्तार किया गया है। इसके अलावा दक्षिण कश्मीर के त्राल, बडगाम और अनंतनाग से जमात के कई नेताओं की गिरफ्तारी हुई है। सरकार ने शुक्रवार को इंस्पेक्टर जनरल और जिला मैजिस्ट्रेटों को जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्ताओं को हिरासत में लेने की इजाजत दे दी थी। 350 से ज्यादा सदस्यों को शुक्रवार को गिरफ्तार किया गया था। संगठन घाटी में 400 स्कूल, 350 मस्जिदें और 1000 सेमिनरी चलाता है। सरकारी अधिकारियों का कहना है कि संगठन के पास 4,500 करोड़ की संपत्ति होने की संभावना है।
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और इस कदम पर बवाल जब मचा तो सज्जाद गनी लोन भी विरोध में उतर आए। सज्जाद गनी लोन ने भी जमात पर प्रतिबंध का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि जमात पर प्रतिबंध क्यों? इस संगठन ने हमें कई योग्य, दूरदर्शी नेता व विधायक दिए हैं। इस संगठन को कैसे प्रतिबंधित किया जा सकता है। मैं प्रतिबंध को हटाने का समर्थन करता हूं। नेशनल कांफ्रेंस के महासचिव अली मोहम्मद सागर ने कहा कि जमात-ए-इस्लामी पर पाबंदी अनुचित है। किसी विचारधारा को आप लोगों को जेलों में बंद कर समाप्त नहीं कर सकते। किसी भी विचारधारा का मुकाबला विचारधारा और तर्क से ही किया जा सकता है। डेमोक्रेटिक पार्टी नेशनलिस्ट (डीपीएन) के चेयरमैन व पूर्व कृषि मंत्री गुलाम हसन मीर ने कहा कि यह लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है।
जमात ए इस्लामी की राजनीतिक विचारधारा बेशक रियासत की बहुसंख्यक आबादी की विचारधारा से अलग हो, लेकिन उसका यह मतलब नहीं कि उस पर पाबंदी लगाई जाए। पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट के चेयरमैन हकीम मोहम्मद यासीन ने कहा कि प्रतिबंध औचित्यहीन है। इससे कश्मीर में शांति बहाल नहीं होगी। आप लोगों को बंद कर सकते हैं,उनकी सोच को नहीं। जमात पर पाबंदी और उसके नेताओं व कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को आप जायज नहीं ठहरा सकते। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता मोहम्मद यूसुफ तारीगामी ने कहा कि जमात ए इस्लामी पर प्रतिबंध लोकतंत्र के खिलाफ है। इसका समाज में कोई अच्छा संदेश नहीं जाएगा। बेशक हमारे भी जमात के साथ वैचारिक मतभेद हैं, लेकिन पाबंदी राजनीति से प्रेरित है। पहले भी जमात पर पाबंदी लगाई जा चुकी है। उसका फायदा नहीं बल्कि नुकसान ही हुआ है। जबकि कश्मीर इकोनामिक एलांयस के चेयरमैन हाजी मोहम्मद यासीन खान ने कहा कि जमायत ए इस्लामी एक मजहबी और सामाजिक संगठन है। इस पर राजनीतिक कारणों से प्रतिबंध लगाया गया है क्योंकि यह आरएसएस के खिलाफ है। केंद्र को अपना यह फैसला वापस लेना चाहिए।