‘दिव्यांगों के लिए सरकारी योजनाओं के साथ सामाजिक करुणा भी आवश्यक’ — धर्मेंद्र प्रधान

By प्रेस विज्ञप्ति | Aug 12, 2025

नई दिल्ली। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में दिव्यांगों के लिए उपयोगी और सर्वसमावेशी योजनाएं शामिल हैं, किंतु केवल नीति बनाने से बदलाव संभव नहीं होता। इसके लिए समाज में संवेदनशीलता और करुणा का भाव आवश्यक है, तभी सभी को संसाधन, अवसर और सम्मान प्राप्त हो सकता है। दीपस्तंभ फाउंडेशन का ‘मनोबल’ प्रकल्प इसी भावना का आदर्श उदाहरण है। वे सोमवार को नई दिल्ली में ‘मनोबल’ प्रकल्प के लोकार्पण समारोह में बोल रहे थे।

 

दिव्यांग, अनाथ, ट्रांसजेंडर और आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों के लिए निःशुल्क आवासीय उच्च शिक्षा और प्रशिक्षण उपलब्ध कराने वाला ‘मनोबल’ प्रकल्प, जळगांव और पुणे के बाद अब नई दिल्ली में भी शुरू हो गया है। नई दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित नवनिर्मित महाराष्ट्र सदन के भव्य सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम का उद्घाटन श्री धर्मेंद्र प्रधान के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ। इस अवसर पर केंद्रीय खेल एवं युवा मामलों की राज्य मंत्री श्रीमती रक्षाताई खडसे, दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग के सचिव राजेश अग्रवाल, नवनियुक्त राज्यसभा सांसद एडवोकेट उज्ज्वल निकम, भाजपा के केंद्रीय संगठन मंत्री वी. सतीश, आईसीसीआर के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विनय सहस्रबुद्धे, पूर्व विदेश सचिव डॉ. ज्ञानेश्वर मुले, वरिष्ठ पत्रकार श्री उदय निरगुडकर और दीपस्तंभ फाउंडेशन के संस्थापक-निदेशक श्री यजुर्वेंद्र महाजन सहित अनेक गणमान्य उपस्थित थे।

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘दिव्यांग’ शब्द को लोकप्रिय बनाकर विकलांगता को सम्मान देने का उल्लेख करते हुए श्री प्रधान ने कहा कि देश के 26.10 करोड़ स्कूली विद्यार्थियों में 2.1 करोड़ दिव्यांग हैं, और उनके लिए सतत कार्य किया जा रहा है। किंतु वास्तविक समानता तभी स्थापित होगी जब दिव्यांग, अनाथ और ट्रांसजेंडर समुदाय को समान अवसर, संसाधन और सम्मान मिले। ‘मनोबल’ प्रकल्प इसी सोच से प्रेरित है। यह सामाजिक संकल्प और राष्ट्र निर्माण में अद्वितीय प्रयास का प्रतीक है। दिल्ली में इसका विस्तार सर्वसमावेशिता, समानता और अवसर के एक नए युग की शुरुआत है।

 

कार्यक्रम में रक्षाताई खडसे ने कहा कि समाज के इन सबसे जरूरतमंद विद्यार्थियों के विकास की जिम्मेदारी सरकार, प्रशासन और नागरिकों— सभी की है। दीपस्तंभ का कार्य इस दिशा में प्रेरणादायक और अनुकरणीय है तथा सभी को इसमें सहभागी होना चाहिए। राजेश अग्रवाल ने कहा कि पिछले दस वर्षों में दिव्यांगों को मुख्यधारा में लाने के लिए उल्लेखनीय कार्य हुआ है। सरकारी विभागों, राज्य सरकारों, निजी संस्थानों और समाज की दृष्टि में परिवर्तन आया है, जिससे संवेदनशीलता बढ़ी है। उन्होंने कहा कि ‘मनोबल’ में विद्यार्थियों को न केवल उत्कृष्ट शिक्षा और प्रशिक्षण मिलता है, बल्कि पारिवारिक स्नेह और आत्मसम्मान का भी वातावरण प्राप्त होता है, जिससे उनका आत्मविश्वास और स्वाभिमान बढ़ता है।

 

यजुर्वेंद्र महाजन ने अपने प्रस्ताविक भाषण में कहा कि अगले 25 वर्षों में हमारा लक्ष्य दिव्यांग, अनाथ और ट्रांसजेंडर विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, उच्च शिक्षा और करियर के लिए मुख्यधारा में अवसर उपलब्ध कराना है। प्रतिष्ठा और अवसर की समानता तभी स्थापित होगी जब इन विद्यार्थियों को दया नहीं, बल्कि मित्रता और अवसर मिलें। उन्हें सुरक्षित घर, निस्वार्थ प्रेम और समाज में समान स्थान की आवश्यकता है।

 

इस अवसर पर एनएचपीसी, डोनाल्डसन फिल्ट्रेशन, परफेटी जैसी कंपनियों और दानदाताओं का आभार व्यक्त करते हुए सम्मान किया गया। वरिष्ठ अधिवक्ता एवं राज्यसभा सांसद एडवोकेट उज्ज्वल निकम का भी सत्कार हुआ। दीपस्तंभ की छात्रा मौली अडकुर ने हार्मोनियम पर ‘सारे जहाँ से अच्छा’ की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन दिव्यांग विद्यार्थी सलमान और निशिता ने किया, जबकि आभार प्रदर्शन मुबशीर ने किया।

 

समारोह में ‘मनोबल’ में अध्ययनरत और विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं व उच्च शिक्षा में सफल हुए विद्यार्थियों का भी विशेष सम्मान किया गया। इनमें मनु गर्ग (आईएएस), रवि राज (आईआरएस), अश्विनी परकाले (आईएपीओएस), श्रीतेज पटेल (आईआरएमएस), संपदा वांगे, प्रणित गुप्ता (आईआईएम उदयपुर), तुषार चौगुले (कार्यकारी अभियंता), माउली अडकुर, कविता देसले (एमपीएससी), राकेश गुहा (बैंक), विशाल शेलार (साइक्लिंग में स्वर्ण पदक), वीणा (पीएसआई), प्रतीक जिंदल (आईडीबीआई बैंक) शामिल हैं।

 

विद्यार्थियों की सफलता यात्रा

1) मनु गर्ग — मूल रूप से जयपुर के निवासी। यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में ऑल इंडिया रैंक 91 प्राप्त कर आईएएस बने। बचपन से दृष्टिहीन। कंप्यूटर विज्ञान में स्नातक। प्रतियोगी परीक्षा मार्गदर्शन के लिए दीपस्तंभ मनोबल में सुलभ अध्ययन सामग्री, तकनीकी सुविधा और विशेष मार्गदर्शन कक्षाओं का लाभ प्राप्त किया। अध्यापिका माता ने उत्तम संस्कार और शिक्षा प्रदान की।

2) माऊली अडकुर — दोनों हाथ न होते हुए भी स्नातकोत्तर शिक्षा पूर्ण की। मनोबल में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की और एक साथ सोलापुर तथा बृहन्मुंबई महानगर पालिका में चयनित हुईं। पैरों से कंप्यूटर का संचालन, दैनिक कार्यका कौशल हासिल किया।

3) कविता देसले — दोनों हाथ और पैर से दिव्यांग, कम कद और श्रवण समस्या के बावजूद सभी चुनौतियों पर विजय प्राप्त कर एमपीएससी परीक्षा उत्तीर्ण की।

4) प्रणित गुप्ता — दृष्टिहीन छात्र एवं गणितज्ञ। कैट परीक्षा में सफलता प्राप्त कर आईआईएम में प्रवेश पाया।

5) राकेश गुहा — आसाम मूल, दृष्टिहीन और अनाथ। बैंक प्रोबेशनरी अधिकारी के रूप में चयनित।

6) वीणा काशीद — ट्रांसजेंडर। सामाजिक उपेक्षा का सामना करने के बावजूद अदम्य इच्छाशक्ति से आईटीआई इंस्ट्रक्टर और पुलिस सब-इंस्पेक्टर दोनों परीक्षाओं में सफलता प्राप्त की।

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