सांची के बौद्ध स्तूपों में इतिहास के साथ ही देखने को मिलता है कला का जादू

By प्रीटी | Jun 10, 2022

मध्य प्रदेश वाकई अजब है क्योंकि यहां के पर्यटन स्थल गजब हैं। रायसेन जिले के सांची नगर में स्थित सांची के स्तूप वास्तुकला के अनुपम उदाहरण हैं जिन्हें देश-विदेश से देखने के लिए लोग आते रहते हैं। सांची सम्राट अशोक के युग के बौद्ध स्तूपों के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि जिस समय बौद्ध धर्म अपने चरम पर था, उस समय सांची का वैभव भी अपने चरम पर था। यहाँ छोटे-बड़े अनेकों स्तूप हैं, जिनमें स्तूप संख्या 2 सबसे बड़ा है। सांची में चारों ओर की हरियाली अद्भुत है। इस स्तूप को घेरे हुए कई तोरण भी बनाये गये हैं। कहा जाता है कि सांची का महान मुख्य स्तूप, मूलतः सम्राट अशोक महान ने बनवाया था। बाद में इस स्तूप को सम्राट अग्निमित्र शुंग ने जीर्णोद्धार करके और बड़ा और विशाल बना दिया। 


यहां के स्तूपों की विस्तार से बात करें तो आपको सबसे पहले घुमाने लिए चलते हैं, बड़ा स्तूप क्रमांक एक पर। इस स्तूप को विशाल पत्थरों से बना भारत का प्राचीनतम स्तूप भी कहा जा सकता है। इस स्तूप के चारों ओर जो तोरण द्वार बने हुए हैं, वह बहुत ही अद्भुत हैं। पत्थरों पर बौद्ध कथाओं का अंकन दूसरे बौद्ध स्मारकों के मुकाबले में सांची में सबसे बढि़या माना जाता है। इस स्तूप के पूर्वी तथा पश्चिमी द्वारों पर युवा गौतम बुद्ध की आध्यात्मिक यात्रा की अनेकों कहानियां अंकित हैं।

इसे भी पढ़ें: गर्मियों में दिल्ली के पास घूमने के लिए बेस्ट है हरियाणा का यह हिल स्टेशन, वीकेंड पर बना लें फैमिली संग प्लान

अब स्तूप क्रमांक दो व तीन देखने चलिये। ये स्तूप भी बलुआ पत्थर के बने हुए हैं लेकिन इनके ऊपर की छतरी चिकने पत्थर की बनी हुई है। अब आप अशोक स्तंभ देखने जा सकते हैं। इस बौद्ध स्तंभ का निर्माण ईसा पूर्व तीसरी सदी में हुआ था। यह बड़े स्तूप के दक्षिणी द्वार के निकट स्थित है। पर्याप्त देखरेख के अभाव में आज यह स्तंभ जीर्णशीर्ण अवस्था में है।


अन्य दर्शनीय स्थलों की बात करें तो आप सतधारा भी देखने जा सकते हैं। सांची के विश्व प्रसिद्ध स्तूपों के अलावा सांची से 10 किलोमीटर दूर पर इन्हीं के समकालीन बौद्ध स्तूप हाल−फिलहाल ही खोजे गये हैं। सतधारा के पास के ये स्तूप सांची की पहाड़ी पर मौजूद स्तूपों से कहीं अधिक आकर्षक लगते हैं।


हैलियोडोरस स्तंभ भी देखने योग्य है। उदयगिरी गुफाओं से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैलियोडोरस स्तंभ देखते ही बनते हैं। इसी स्थान पर हवे्नसांग नामक चीनी यात्री ने हिन्दू धर्म को ग्रहण किया था। विजय मंदिर भी अपनी उत्कृष्टता के लिए विख्यात है। विदिशा नगरी में ही कोणार्क के सूर्य मंदिर की शैली पर अभी विशाल विजय मंदिर खुदाई में निकला है। जो अब देश के दूसरे प्रसिद्ध गुप्तकालीन सूर्य मंदिर के रूप में स्थापित हो चुका है। इस मंदिर की सूर्य देवता की प्रतिमा एवं रथ के बडे़−बड़े पहिये और कोणार्क मंदिर की ही तरह मंदिर के बाहर यौन क्रियाओं में रत युग्म प्रतिमाएं भी सैलानियों को अपनी ओर खासा आकर्षित करती हैं।

इसे भी पढ़ें: अपनी खूबसूरती और सफाई के लिए मशहूर हैं ये हिल स्टेशन, किसी कोने में भी नहीं मिलेगा कूड़ा

आप वट वृक्ष भी देखने जा सकते हैं। विदिशा से 35 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद यह विशाल वट वृक्ष ऐशिया का सबसे विशाल वट वृक्ष भी कहा जाता है। यह वट वृक्ष लगभग आधा किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस वट वृक्ष के 108 तने जमीन पर पसरे हुए हैं तथा इसके नीचे एक गांव जैसा बसा हुआ है।


सांची जाने का कार्यक्रम बना रहे हैं तो आपको बता दें कि सांची इटारसी−झांसी रेल मार्ग पर स्थित है और मध्य रेलवे की कई रेलें यहां रूकती हैं। वैसे आपके लिए यहां से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित विदिशा स्टेशन पर उतरना ज्यादा सुविधाजनक हो सकता है क्योंकि विदिशा से हर 10 मिनट के अंतराल पर सांची के लिए बस सेवा तथा टैक्सियां उपलब्ध हैं। सड़क मार्ग से आना चाहें तो भोपाल, इंदौर व ग्वालियर तथा सागर से सांची जा सकते हैं।


-प्रीटी

प्रमुख खबरें

Horoscope 06 December 2025 Aaj Ka Rashifal: सभी 12 राशियों का कैसा रहेगा आज का दिन, पढ़ें आज का राशिफल

Vishwakhabram: Modi Putin ने मिलकर बनाई नई रणनीति, पूरी दुनिया पर पड़ेगा बड़ा प्रभाव, Trump समेत कई नेताओं की उड़ी नींद

Home Loan, Car Loan, Personal Loan, Business Loan होंगे सस्ते, RBI ने देशवासियों को दी बड़ी सौगात

सोनिया गांधी पर मतदाता सूची मामले में नई याचिका, 9 दिसंबर को सुनवाई