By नीरज कुमार दुबे | Dec 12, 2025
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दो दिन पहले ही लोकसभा में अपने भाषण में कांग्रेस नेतृत्व पर तीखा वार करते हुए कहा था कि कांग्रेस पार्टी की लगातार हार का हिसाब एक दिन कांग्रेस के अपने कार्यकर्ता ही आलाकमान से मांगेगे। देखा जाये तो अमित शाह की यह भविष्यवाणी राजनीति में सिर्फ एक बयान नहीं थी, आज की स्थिति देखकर लगता है कि वह सीधे कांग्रेस के भीतर फैलते असंतोष को भांप चुके थे। हुआ भी वैसा ही। ओडिशा से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता का पत्र आ गया, जिसमें पार्टी नेतृत्व पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए गए और उसी दिन शशि थरूर कांग्रेस संसदीय दल की बैठक से अनुपस्थित रहे, मानो पार्टी के भीतर उबलता लावा अब सतह पर फूटने लगा हो।
हम आपको बता दें कि ओडिशा के पूर्व कांग्रेस विधायक मोहम्मद मुकिम ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर सीधा निशाना साधा है। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस की सौ साल पुरानी विरासत हाथ से फिसल रही है और इसका कारण है नेतृत्व में स्पष्टता की कमी, संगठनात्मक ढीलापन और जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा। मुकिम ने मांग की है कि पार्टी की बागडोर ऐसे नेता के हाथ में दी जाए जो युवा, ऊर्जावान और प्रभावी जनसंपर्क क्षमता रखता हो। उन्होंने इस संदर्भ में प्रियंका गांधी वाड्रा का नाम प्रमुखता से उठाते हुए कहा कि पार्टी को अब नए नेतृत्व की सख्त जरूरत है।
हम आपको बता दें कि मुकिम के पत्र में यह भी कहा गया है कि कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व न तो चुनावी धरातल समझ पा रहा है, न संगठन को मजबूत कर पा रहा है। यही कारण है कि हालिया उपचुनावों में कांग्रेस को भारी पराजय झेलनी पड़ी। कई नेता और कार्यकर्ता दिशा हीन महसूस कर रहे हैं और पार्टी धीरे-धीरे अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता खोती जा रही है।
उधर बीजेपी ने इस मौके को हाथों-हाथ लेते हुए दावा किया कि कांग्रेस में अब खुलकर दो गुट बन चुके हैं यानि “टीम राहुल बनाम टीम प्रियंका”। भाजपा नेताओं का कहना है कि यह पत्र कांग्रेस के भीतर की उथल-पुथल का सिर्फ एक नमूना है; असंतोष का असली स्वरूप इससे कहीं बड़ा है। भाजपा नेताओं का कहना है कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं में मोहभंग बढ़ रहा है और वरिष्ठ नेता सार्वजनिक रूप से सवाल उठा रहे हैं।
देखा जाए तो यह सिर्फ एक पत्र नहीं बल्कि यह कांग्रेस के गिरते मनोबल, बिखरते नेतृत्व और टूटती संगठनात्मक आत्मा का चार्जशीट है। जिस पार्टी ने इस देश को आज़ादी दिलाने में भूमिका निभाई, जो दशकों तक सत्ता में रही, वह पार्टी आज अपने ही नेताओं के पत्रों, नाराज कार्यकर्ताओं और दिशाहीन नेतृत्व के कारण राजनीतिक खाई की ओर तेजी से फिसल रही है।
कांग्रेस का संकट चुनावी नहीं, अस्तित्व का संकट है। नेतृत्व का सवाल अब सिर्फ रणनीति का मामला नहीं रहा; यह पार्टी की पहचान और भविष्य को सीधे चुनौती दे रहा है। जब एक पूर्व विधायक लिखता है कि “सदियों की विरासत हाथ से निकल रही है,” तो समझ लेना चाहिए कि बीमारी बहुत गहरी है। इन शब्दों में वह दर्द है जो कार्यकर्ताओं के दिल में वर्षों से जमा होता रहा है।
सच्चाई यही है कि कांग्रेस आज नेतृत्व के निर्वात में फंसी हुई है। राहुल गांधी की शैली को पार्टी का एक बड़ा हिस्सा स्वीकार नहीं कर पा रहा, जबकि प्रियंका गांधी को नेतृत्व में लाने की मांग बढ़ती जा रही है। पार्टी का ऊपरी ढांचा जड़ हो चुका है और जमीनी स्तर पर कार्यकर्ता दिशाहीन है। यह वही स्थिति है जिसे अमित शाह ने लोकसभा में इंगित किया था कि कांग्रेस की हार का हिसाब एक दिन कार्यकर्ता ही पूछेंगे और आज वह दिन शुरू हो चुका है।
अगर कांग्रेस अब भी यह सोचकर खुद को भ्रमित रखे कि यह सब "आंतरिक लोकतंत्र" का हिस्सा है, तो यह उसकी सबसे बड़ी भूल होगी। यह चेतावनी है। कड़क, साफ और तीखी। पार्टी को न सिर्फ चेहरे बदलने की, बल्कि राजनीतिक संस्कृति, संगठनात्मक अनुशासन और नेतृत्व मॉडल को बदलने की जरूरत है।