व्यवस्था महान, निबटाऊ बयान (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Feb 04, 2023

ज़बान के ज़रूरी क्रियाकलापों में शामिल है, बयान। यह ज़बान ही है जो स्वाद के नाम पर क्या क्या चट कर जाती है और ज़रा सी हिलकर बहुत कुछ हिला देती है। हमारे यहां तो बयान भी अनुष्ठान की तरह लिए जाते हैं, उधर से बयान आया और इधर, उधर, ऊपर और नीचे से आहुतियां डालनी शुरू। 


वरिष्ठ नागरिकों की संस्था के अध्यक्ष ने बयान जारी किया कि वरिष्ठ जन कक्ष से जुड़ी समस्याओं से नगरपालिका को कई बार अवगत करवाया गया। टीवी इनडोर गेम्स, पत्रिकाएं, अखबार इत्यादि बंद हैं। छत की सीलिंग उखड़ चुकी है। पीने के लिए भी पानी नहीं है। कितने साल हो गए, शौचालय तो बनाया ही नहीं। समाचार पत्रों ने भी कवर किया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई । जिला के वरिष्ठ अधिकारी से मिलकर लिखित ब्यान दिया। समाचार पत्रों ने फिर कवर किया। जिला वरिष्ठ अधिकारी ने नगरपालिका को लिखित आदेश भेजे, संवाददाताओं ने उनका बयान भी लिया। उन्होंने बयान किया कि उचित कार्रवाई होगी।

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नगरपालिका के राजनीतिक अध्यक्ष का गैर राजनीतिक बयान आया कि मौके का मुआयना किया जाएगा। घटिया सामग्री की पुष्टि होने पर ठेकेदार को ब्लैक लिस्ट किया जाएगा। टीवी को मरम्मत के बाद कक्ष में लगा दिया जाएगा ताकि सरकार के विकासात्मक कार्यक्रम और ख़बरें देख सकें। उन्होंने मन ही मन बयान किया कि वरिष्ठ नागरिक शांति से जीवन नहीं गुज़ारते। घर में टिक कर नहीं बैठते। उन्हें घर में सुविधाएं मिले न मिले बाहर भागते रहते हैं। सरकार को फ़ालतू के पत्र लिखते रहते हैं, यह नहीं हुआ, वह नहीं हुआ, वो होना चाहिए यह नहीं होना चाहिए। 


सरकारी अफसर सुरक्षित ढंग से खेलते हैं।  वह बयान करते हैं कि हालत सुधारने के लिए सम्बंधित ठेकेदार को लिखा गया है कि वरिष्ठ नागरिक कक्ष की हालत सुधारने के लिए कार्य शुरू करे। ठेकेदार ने आश्वासन दिया है कि वह जल्द कार्य शुरू करेगा। नगरपालिका ने सम्बन्धित ठेकेदार से पत्राचार किया है कि जल्द से वरिष्ठ नागरिक कक्ष की हालत सुधारे। वैसे उन्हें पता है कि ऐसे गैर ज़रूरी काम के लिए बजट हुआ तब ही मरम्मत हो पाएगी। वह जानते और मानते हैं कि आम वरिष्ठ जनों का काम जैसे कैसे चल ही जाता है इसलिए ठेकेदार ने सांस्कृतिक परम्पराओं के अनुरूप घटिया सामग्री लगाईं थी। वरिष्ठजन जिनमें से कईयों ने आज़ादी मिलने से पहले जन्म लिया था भूल जाते हैं कि लोकतंत्र में ऐसे ही काम होता है।  इन बयानों के माध्यम से अखबारों को भी सकारात्मक, विकासात्मक और नकारात्मक सभी तरह की खबर मिल जाती है। 


असली बयान यह है कि सरकारी आदेशों का, सरकारी बंदों द्वारा, सख्त पालन होते होते बहुत समय लग गया। बीच में ठंड का मौसम आ गया, कोहरा पड़ने लगा, बारिश हो गई और धूप नहीं निकली। ठेकेदार ने चूं पूं करते हुए मरम्मत की लेकिन सीलिंग फिर नीचे लटक गई व अन्य कार्य भी एक महीना भी नहीं चल पाए। इस बीच आम आदमी का सही बयान आया, हमारे यहां तो बड़े से बड़े न्यायालयों के फैसलों को टरकाया जाता है। छोटे मोटे अफसर, छुटभय्ये नेताओं के हुक्म और संस्थाओं की अर्ज़ियों को कौन पूछता है। इससे यह साबित होता है कि व्यवस्था महान होती है और ज़्यादातर बयान सिर्फ निबटान ही होते हैं। 


- संतोष उत्सुक

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