By अभिनय आकाश | Sep 03, 2025
"असली रोमांच तो खेल खेलने में है। मैं इस बात की चिंता में ज़्यादा समय नहीं बिताता कि मुझे क्या अलग करना चाहिए था, या आगे क्या होने वाला है।" ये बात डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी किताब द आर्ट ऑफ डील में लिखी है। वैसे तो ये किताब 1987 में आई थी। ट्रंप का दावा है कि ये बाईबल के बाद सबसे पवित्र टेक्ट है। यानी जो कुछ द आर्ट ऑफ डील में लिखा है वो शाश्वत सत्य है और वो इस पर आंखें बंद करके भरोसा भी करते हैं और अपने समर्थकों को भी ऐसा करने को कहते हैं। अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क है, जाहिर सी बात है कि इसमें कोई दोराय नहीं है। लेकिन अमेरिका की बादशाहत को अब एशियन मुल्क चीन चुनौती देता दिख रहा है। ट्रंप ने भले ही आर्ट ऑफ डील लिखी हो लेकिन आर्ट ऑफ वॉर तो चीनी ने ही लिखी थी और वो भी ढाई हजार साल पहले। ये सून त्ज़ू द्वारा लिखित युद्धशास्त्र, युद्धनीति, युद्ध दर्शन और रणनीति के बारे में लिखी गई एक 13 अध्याय की एक किताब है। ये जंग के साथ साथ दूसरी फील्ड में भी प्रांसगिक मानी जाती है।
अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क है, जाहिर सी बात है कि इसमें कोई दोराय नहीं है। लेकिन अमेरिका की बादशाहत को अब एशियन मुल्क चीन चुनौती देता दिख रहा है। अपनी बढ़ती कूटनीतिक और सैन्य ताकत का प्रदर्शन करने के लिए अब तक की सबसे बड़ी सैन्य परेड का आयोजन किया। माओ शूट में नजर आए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि दुनिया सद्भाव से चलती है, दादागिरी से नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि चीन किसी से डरने वाला नहीं है। सभी इंसान एक ही ग्रह पर रहते हैं, इसलिए सबको मिल-जुलकर शांति से काम करना चाहिए। उन्होंने पीएलए को एक विश्वस्तरीय सैन्य शक्ति बनने का लक्ष्य निर्धारित करने को कहा।
70 मिनट की इस परेड को देखने के लिए शी जिनपिंग के साथ कम्युनिस्ट पार्टी के कई पदाधिकारी और 20 से ज़्यादा विश्व के नेता शामिल हुए, जिनमें इंडोनेशिया, वियतनाम, मलेशिया, पाकिस्तान, बेलारूस, ईरान, सर्बिया और स्लोवाकिया के नेता शामिल थे। पुतिन की उपस्थिति के कारण यूरोप के ज़्यादातर नेताओं ने निमंत्रण अस्वीकार कर दिया। परेड शुरू होने से पहले, शी जिनपिंग ने किम जोंग-उन, पुतिन और अन्य नेताओं का अभिवादन किया और उत्तर कोरियाई तथा रूसी नेताओं के साथ बातचीत की। इसके बाद उन्होंने सभी गणमान्य व्यक्तियों के साथ एक सामूहिक तस्वीर खिंचवाई।
इस परेड को व्यापक रूप से चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा अर्थव्यवस्था की चिंताओं और अमेरिका के साथ बढ़ते तनाव के बीच राष्ट्रवादी भावनाओं को एकजुट करने के प्रयास के रूप में देखा गया। इस आयोजन में द्वितीय विश्व युद्ध की यादों और पूर्वी एशिया में जापान के उत्पात को विफल करने में चीन की भूमिका पर जोर दिया गया - हालांकि इसमें पार्टी की भूमिका विवादित बनी हुई है, क्योंकि चीनी राष्ट्रवादी ताकतों ने, जो बाद में ताइवान भाग गईं, टोक्यो की हार में बड़ी भूमिका निभाई थी। फिर भी शी ने बीजिंग को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के एक अग्रणी स्तंभ के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया।
विशेषज्ञों का कहना है कि शी जिनपिंग के नज़रिए से यह आयोजन संभवतः एक शानदार सफलता रही है। अटलांटिक काउंसिल के सुंग ने कहा शी को पूरा विश्वास है कि स्थिति बदल गई है। अब चीन फिर से नेतृत्व की कुर्सी पर है। उन्होंने कहा कि चीन की वुल्फ वॉर कूटनीति के बजाय ट्रम्पियन एकतरफावाद ही स्पष्ट रूप से अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में अनिश्चितता का प्रमुख स्रोत रहा है। उन्होंने पिछले महीने व्हाइट हाउस में हुई बातचीत की ओर इशारा किया, जहाँ यूरोपीय नेताओं ने ट्रम्प के साथ एक और टकराव की आशंका के चलते अमेरिका की मदद के लिए नहीं, बल्कि यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की की रक्षा के लिए एकजुट हुए थे।