Vanakkam Poorvottar: NCERT Textbook में Ahom Dynasty History के बारे में गलत तथ्यों को लेकर गर्माई Assam Politics

By नीरज कुमार दुबे | Aug 14, 2025

हाल ही में एनसीईआरटी द्वारा संशोधित कक्षा 8 की इतिहास की पाठ्यपुस्तक में असम पर 600 वर्षों तक शासन करने वाले अहोम राजवंश के बारे में तथ्यों को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। जोरहाट के सांसद और अहोम समुदाय से जुड़े गौरव गोगोई ने इस पुस्तक में मौजूद तथ्यों को “गंभीर रूप से गलत” बताते हुए तत्काल सुधार की मांग की है। देखा जाये तो यह प्रकरण केवल एक पाठ्यपुस्तक की त्रुटि नहीं, बल्कि असम की ऐतिहासिक स्मृति, सांस्कृतिक पहचान और समकालीन राजनीति से गहरे रूप से जुड़ा है।


रिपोर्टों के मुताबिक विवादित पाठ में अहोमों को म्यांमार से आए प्रवासी बताया गया है, जबकि ऐतिहासिक शोध (विशेषकर असम के इतिहासकार और ताई-अहोम स्रोत) उन्हें मंग माओ नामक ताई-राज्य से जोड़ते हैं, जो आज के युन्नान (चीन) क्षेत्र में स्थित था। माना जाता है कि 13वीं सदी की शुरुआत में अहोम असम की बराक-बरहमपुत्र घाटी में आए और धीरे-धीरे एक संगठित साम्राज्य की स्थापना की। उन्होंने लगभग 1228 ई. से 1826 ई. तक 600 वर्षों का शासन किया और इस दौरान उन्होंने मुगल आक्रमणों को कई बार विफल किया।

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अहोम समुदाय की प्रशासनिक व्यवस्था की बात करें तो इसमें पाइक प्रथा मुख्य थी। यह केवल ‘जबर्दस्ती का श्रम’ नहीं, बल्कि भूमि-आधारित रोटेशनल सेवा प्रणाली थी, जिसमें नागरिक सैन्य और प्रशासनिक कार्य बारी-बारी से निभाते थे। बताया जाता है कि अहोमों ने स्थानीय भाषाओं, संस्कृतियों और परंपराओं का मिश्रण कर आधुनिक असमिया समाज की नींव रखी थी। अब जो विवाद खड़ा हुआ है उसका आधार यह है कि अहोमों की उत्पत्ति का गलत उल्लेख करते हुए म्यांमार की बजाय युन्नान बताया गया है। इसके अलावा, 1663 की गिलाजरिघाट संधि को कथित रूप से पराजय बताया गया है, जबकि वास्तव में यह एक रणनीतिक समझौता था, जिसके बाद मुगलों को बाहर खदेड़ दिया गया था। इसके अलावा, खेल प्रणाली, रंग घर, तलातल घर और असमिया सांस्कृतिक पहचान में अहोमों की भूमिका का उल्लेख नहीं होना भी विवाद का कारण है।


देखा जाये तो असम में ऐतिहासिक तथ्यों को लेकर संवेदनशीलता अधिक है, क्योंकि यह सीधे सांस्कृतिक गौरव और जातीय पहचान से जुड़ा है। गलत प्रस्तुति को “असम की विरासत का अवमूल्यन” माना जा सकता है। साथ ही यह विवाद उस व्यापक बहस का हिस्सा है जिसमें केंद्र-निर्मित पाठ्यक्रम और राज्यों की स्थानीय ऐतिहासिक संवेदनाओं के बीच टकराव सामने आता है। हम आपको बता दें कि अहोम समुदाय असम में एक प्रभावशाली जनसमूह है। उनके गौरव और इतिहास की रक्षा का मुद्दा राजनीतिक दलों के लिए समर्थन जुटाने का साधन बन सकता है। इसके अलावा, यदि राष्ट्रीय स्तर की पाठ्य पुस्तकों में गलतियाँ पाई जाती हैं, तो यह न केवल शिक्षा-नीति की साख को प्रभावित करता है, बल्कि युवा पीढ़ी की ऐतिहासिक समझ पर भी असर डालता है।


बहरहाल, अहोम इतिहास का यह विवाद केवल तथ्यों के संशोधन का प्रश्न नहीं, बल्कि असम की सामूहिक स्मृति, सांस्कृतिक सम्मान और राजनीतिक समीकरण का संवेदनशील बिंदु है। यदि शिक्षा मंत्रालय वास्तव में “इतिहास को संतुलन और सम्मान के साथ” प्रस्तुत करने के लिए प्रतिबद्ध है, तो क्षेत्रीय विशेषज्ञों और स्थानीय समुदायों की भागीदारी अनिवार्य है।

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