प्रलय के समय काशी को त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं शिव

By शुभा दुबे | Mar 25, 2016

यह ज्योतिर्लिंग उत्तर भारत की प्रसिद्ध नगरी काशी में स्थित है। इस नगरी का प्रलयकाल में भी लोप नहीं होता। उस समय भगवान अपनी वासभूमि इस पवित्र नगरी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टिकाल आने पर पुनः यथास्थान रख देते हैं। सृष्टि की आदि स्थली भी इसी नगरी को बताया जाता है। भगवान विष्णु ने इसी स्थान पर सृष्टि कामना से तपस्या करके भगवान शंकरजी को प्रसन्न किया था। अगस्त्य मुनि ने भी इसी स्थान पर अपनी तपस्या द्वारा भगवान शिव को संतुष्ट किया था। इस पवित्र नगरी की महिमा ऐसी है कि यहाँ जो भी प्राणी अपने प्राण त्याग करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान शंकर उसके कान में 'तारक' मंत्र का उपदेश करते हैं। इस मंत्र के प्रभाव से पापी से पापी प्राणी भी सहज ही भवसागर की बाधाओं से पार हो जाते हैं।

 

मत्स्यपुराण में इस नगरी का महत्व बताते हुए कहा गया है- ''जप, ध्यान और ज्ञानरहित तथा दुखों से पीड़ित मनुष्यों के लिए काशी ही एकमात्र परमगति है। श्रीविश्वेश्वर के आनन्द-कानन में दशाश्वमेध, लोलार्क, बिन्दुमाधव, केशव और मणिकर्णिका- ये पाँच प्रधान तीर्थ हैं। इसी से इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है।

 

इस परम पवित्र नगरी के उत्तर की तरफ ओमकारखण्ड, दक्षिण में केदारखण्ड और बीच में विश्वेश्वरखण्ड है। प्रसिद्ध विश्वेश्वर-ज्योतिर्लिंग इसी खण्ड में अवस्थित है। पुराणों में इस ज्योतिर्लिंग के संबंध में यह कथा दी गयी है-

 

भगवान शंकर पार्वती जी का पाणिग्रहण करके कैलास पर्वत पर रह रहे थे। लेकिन वहाँ पिता के घर में ही विवाहित जीवन बिताना पार्वती जी को अच्छा नहीं लगता था। एक दिन उन्होंने भगवान शिव से कहा- ''आप मुझे अपने घर ले चलिये। यहाँ रहना मुझे अच्छा नहीं लगता। सारी लड़कियाँ शादी के बाद अपने पति के घर जाती हैं, मुझे पिता के घर में ही रहना पड़ रहा है।'' भगवान शिव ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। वह माता पार्वतीजी को साथ लेकर अपनी पवित्र नगरी काशी में आ गये। यहाँ आकर वे विश्वेश्वर-ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गये।

 

शास्त्रों में इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का निगदन पुष्पकल रूपों में किया गया है। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन पूजन द्वारा मनुष्य समस्त पापों-तापों से छुटकारा पा जाता है। प्रतिदिन नियम से श्रीविश्वेश्वर के दर्शन करने वाले भक्तों के योगक्षेम का समस्त भार भूतभावन भगवान शंकर अपने ऊपर ले लेते हैं। ऐसा भक्त उनके परमधाम का अधिकारी बन जाता है। भगवान शिवजी की कृपा उस पर सदैव बनी रहती है। रोग, शोक, दुख-दैत्य उसके पास भूलकर भी नहीं जाते।

प्रमुख खबरें

UP: यमुना एक्सप्रेसवे पर अब तक 19 लोगों की हो चुकी है मौत, राज्य सरकार ने जारी किए सख्त दिशानिर्देश

Finland Universities Campus in India: जल्द ही भारत में कैंपस ओपन कर सकती हैं फिनलैंड की यूनिवर्सिटी, शुरू हो सकता है एक्सचेंज प्रोग्राम

Rekha Gupta ने 100 नई इलेक्ट्रिक बसों को दिखाई हरी झंडी, प्रदूषण को लेकर कर दिया बड़ा दावा

BMC Elections 2026: BJP शिवसेना की बैठक में हो गया फैसला, 150 सीटों के बंटवारे पर बनी सहमति