Shardiya Navratri 2025: आंतरिक शक्ति का पर्व, मां दुर्गा की कृपा से पाएं सभी सिद्धियां और सुख-समृद्धि

By शुभा दुबे | Sep 22, 2025

भारत की सांस्कृतिक परंपराओं में नवरात्रि का स्थान अद्वितीय है। यह केवल धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं बल्कि आध्यात्म, सामाजिक एकता और सत्य पर असत्य की विजय का प्रतीक पर्व है। नवरात्रि का यह पर्व हमें याद दिलाता है कि संघर्षों और अंधकार के बीच भी धर्म, न्याय और करुणा की शक्ति अजेय रहती है।


शारदीय नवरात्रि 2025 की महत्वपूर्ण तिथियाँ


नवरात्रि प्रारंभ (प्रतिपदा): 22 सितंबर 2025, सोमवार


द्वितीया: 23 सितंबर, मंगलवार


षष्ठी: 27 सितंबर, शनिवार


महाअष्टमी: 29 सितंबर, सोमवार


महानवमी: 30 सितंबर, मंगलवार


दशहरा (विजयादशमी): 1 अक्टूबर, बुधवार


इन तिथियों पर मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाएगी। प्रत्येक दिन साधक विशेष विधियों से देवी का आह्वान करते हैं और उनसे शक्ति, समृद्धि तथा ज्ञान की कामना करते हैं।


मां दुर्गा के नौ स्वरूप और पूजन परंपरा


नवरात्रि का हर दिन देवी के एक विशेष स्वरूप को समर्पित होता है।


शैलपुत्री – स्थिरता और दृढ़ता का प्रतीक।


ब्रह्मचारिणी – तपस्या और संयम का संदेश।


चंद्रघंटा – साहस और निर्भीकता की मूर्ति।


कूष्मांडा – सृजन और ऊर्जा की अधिष्ठात्री।


स्कंदमाता – मातृत्व और सुरक्षा की प्रतीक।


कात्यायनी – धर्म की रक्षा हेतु संकल्पशक्ति।


कालरात्रि – बुराई का संहार करने वाली।


महागौरी – पवित्रता और शांति का प्रतीक।


सिद्धिदात्री – समस्त सिद्धियों की प्रदायिनी।


पूजा विधि में वेदी पर देवी का विधिवत् प्रतिष्ठापन, कलश स्थापना, मंत्रोच्चारण, दीप प्रज्वलन और देवीसूक्तम का पाठ शामिल है। श्रद्धालु उपवास रखते हैं और नौ दिनों तक संयम का पालन करते हैं।

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पूजन विधि


वेदी पर रेशमी वस्त्र से आच्छादित सिंहासन स्थापित करें। उसके ऊपर चार भुजाओं तथा उनमें आयुधों से युक्त देवी की प्रतिमा स्थापित करें। भगवती की प्रतिमा रत्नमय भूषणों से युक्त, मोतियों के हार से अलंकृत, दिव्य वस्त्रों से सुसज्जित, शुभलक्षण सम्पन्न और सौम्य आकृति की हो। वे कल्याणमयी भगवती शंख−चक्र−गदा−पद्म धारण किये हुये हों और सिंह पर सवार हों अथवा अठारह भुजाओं से सुशोभित सनातनी देवी को प्रतिष्ठित करें। भगवती की प्रतिमा के अभाव में नवार्णमन्त्र युक्त यंत्र को पीठ पर स्थापित करें और पीठ पूजा के लिये पास में कलश भी स्थापित कर लें। वह कलश पंचपल्लव युक्त, उत्तम तीर्थ के जल से पूर्ण और सुवर्ण तथा पंचरत्नमय होना चाहिये। पास में पूजा की सब सामग्रियां रखकर उत्सव के निमित्त गीत तथा वाद्यों की ध्वनि भी करानी चाहिये। हस्त नक्षत्र युक्त नन्दा तिथि में पूजन श्रेष्ठ माना जाता है। पहले दिन विधिवत् किया हुआ पूजन मनुष्यों का मनोरथ पूर्ण करने वाला होता है। सबसे पहले उपवास व्रत, एकभुक्त व्रत अथवा नक्तव्रत इनमें से किसी एक व्रत के द्वारा नियम करने के पश्चात् ही पूजा करनी चाहिये।


कथा सुनने के बाद माता की आरती करें और उसके बाद देवीसूक्तम का पाठ अवश्य करें। आदिकाल में शुम्भ−निशुम्भ की क्रूरता और प्रकोप इतना फैला हुआ था कि देवता भी भयभीत होकर प्राणों की सुरक्षा के लिए विचलित हो उठे थे। उस समय देवताओं ने एकत्र होकर असुरों का संहार करने वाली, भक्तों का कल्याण करने वाली भगवती दुर्गा की स्तुति की थी। उस स्तुति को देवीसूक्तम का नाम दिया गया। देवीसूक्तम का श्रद्धा व विश्वास से पाठ करने पर अभीष्ट फल प्राप्त होता है।


सामाजिक महत्व


नवरात्रि केवल आराधना का पर्व नहीं है, बल्कि यह हमें याद दिलाता है कि जीवन में चुनौतियों के बावजूद सत्य और धर्म की जीत सुनिश्चित है। जिस तरह मां दुर्गा ने शुम्भ-निशुम्भ और महिषासुर जैसे दैत्यों का संहार किया, उसी प्रकार यह पर्व हमें अन्याय और आतंक के विरुद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा देता है। नवरात्रि की साधना जहां भीतर की नकारात्मकताओं को समाप्त करने का अवसर देती है, वहीं यह प्रेरणा भी मिलती है कि संघर्षों का समाधान केवल शक्ति और प्रतिशोध से नहीं, बल्कि संतुलन, न्याय और करुणा से संभव है।


विजयादशमी का संदेश


शारदीय नवरात्रि का समापन विजयादशमी पर होता है, जो असत्य पर सत्य की और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। यही कारण है कि रावण दहन का आयोजन किया जाता है और भगवान राम की लंका विजय का स्मरण होता है। 2025 की दशहरा तिथि केवल धार्मिक पर्व ही नहीं होगी, बल्कि यह विश्व राजनीति में भी न्याय और शांति की आवश्यकता की ओर ध्यान दिलाएगी।


वर्ष 2025 की शारदीय नवरात्रि हमें यह सिखाती है कि चाहे वह व्यक्तिगत जीवन का संघर्ष हो या अंतरराष्ट्रीय राजनीति का विवाद, अंततः जीत सत्य, धर्म और मानवीय मूल्यों की होती है। जैसे मां दुर्गा के नौ स्वरूप भक्तों को आशीर्वाद देते हैं, वैसे ही शांति और न्याय के लिए उठाया गया प्रत्येक कदम मानवता को नई दिशा देता है। नवरात्रि का यह पर्व हमें आंतरिक शक्ति अर्जित करने का अवसर देता है और यह भी याद दिलाता है कि विजयादशमी केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर नहीं बल्कि वैश्विक शांति की भी प्रेरणा है।


- शुभा दुबे

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