Bajrang Baan Path: बड़े से बड़े दुखों से मिलेगा छुटकारा, रोजाना बजरंग बाण का पाठ नियमों से करें पालन

By दिव्यांशी भदौरिया | May 21, 2024

सनातन धर्म में मंगलवार का दिन राम भक्त हनुमान जी को समर्पित है। इस दिन बजरंगबली की विशेष पूजा की जाती है और जीवन के संकटों से छुटकारा पाने के लिए व्रत किया जाता है। इससे व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।  मंगलवार के दिन बजरंग बाण का पाठ अवश्य करना चाहिए। इस पाठ को प्रभु की शक्ति और उर्जा का स्रोत माना जाता है। बजरंग बाण का पाठ करते समय कई बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। नहीं तो, नियमों का पालन न करने से पूजा असफल हो सकती है।

इन बातों का जरुर रखें ध्यान

- अगर आप हनुमान जी की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो मंगलवार के दिन बजरंग बाण का पाठ करें।

- शास्त्रो की मानें तो इस पाठ की शुरुआत मंगलवार से करनी चाहिए।

- बजरंग बाण के बाद हनुमान चालीसा का पाठ जरुर करना चाहिए।

- पाठ को अधूरा नहीं छोड़े।

- इसके अलावा पूजा के दौरान लाल रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए।

- मांस मदिरा और तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।

बजरंग बाण 

" दोहा "

"निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।"

 "तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥"

"चौपाई"

जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।।


जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महासुख दीजै।।


जैसे कूदि सिन्धु महि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।


आगे जाई लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।


जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा।।


बाग़ उजारि सिन्धु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा।।


अक्षयकुमार को मारि संहारा। लूम लपेट लंक को जारा।।


लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर में भई।।


अब विलम्ब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु उर अन्तर्यामी।।


जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होय दुख हरहु निपाता।।


जै गिरिधर जै जै सुखसागर। सुर समूह समरथ भटनागर।।


ॐ हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहिं मारु बज्र की कीले।।


गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो।।


ऊँकार हुंकार प्रभु धावो। बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो।।


ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ऊँ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा।।


सत्य होहु हरि शपथ पाय के। रामदूत धरु मारु जाय के।।


जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।


पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत हौं दास तुम्हारा।।


वन उपवन, मग गिरिगृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।


पांय परों कर ज़ोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।


जय अंजनिकुमार बलवन्ता। शंकरसुवन वीर हनुमन्ता।।


बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक।।


भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बेताल काल मारी मर।।


इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की।।


जनकसुता हरिदास कहावौ। ताकी शपथ विलम्ब न लावो।।


जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा।।


चरण शरण कर ज़ोरि मनावौ। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।


उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई। पांय परों कर ज़ोरि मनाई।।


ॐ चं चं चं चं चपत चलंता। ऊँ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता।।


ऊँ हँ हँ हांक देत कपि चंचल। ऊँ सं सं सहमि पराने खल दल।।


अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होय आनन्द हमारो।।


यह बजरंग बाण जेहि मारै। ताहि कहो फिर कौन उबारै।।


पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।


यह बजरंग बाण जो जापै। ताते भूत प्रेत सब काँपै।।


धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहै कलेशा।।

"दोहा"


" प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान। "


" तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान।। "

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