By अभिनय आकाश | Nov 18, 2025
4 और 5 जुलाई, 1972 की दरम्यानी रात को। पाकिस्तान रात को जब सोया, तो लोकतंत्र था। अगली सुबह जगा, तो मालूम हुआ कि सेना का राज फिर लौट आया है। प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो न केवल सत्ता से बेदखल हुए, बल्कि उन्हें जेल भी भेज दिया गया। अक्तूबर के महीने में उन पर हत्या का मुकदमा शुरू किया गया। मुकदमा लोअर कोर्ट में नहीं सीधे हाईकोर्ट में शुरू हुआ। उन्हें फांसी की सजा मिली। सुप्रीम कोर्ट ने भी बहुमत निर्णय में फांसी की सजा बहाल रखी। 4 अप्रैल को भुट्टो को फांसी पर लटका दिया गया। भुट्टो के आखिरी शब्द थे, ‘या खुदा, मुझे माफ करना मैं बेकसूर हूं। दुनिया का सबसे पुराना लोकतांत्रिक देश अमेरिका जिया के सपोर्ट में था। क्योंकि जिया अमेरिका की मदद कर रहे थे अफगानिस्तान में रूस के खिलाफ। कहते हैं इतिहास खुद को कई दफा दोहराता है, बस किरदार बदल सा जाता है। पाकिस्तान तो भारत का ऐसा पड़ोसी मुल्क है, जिसे हर कोई अपने पड़ोस से बदलना चाहेगा। लेकिन आज बात पाकिस्तान की नहीं बल्कि भारत के एक और पड़ोसी मुल्क की करेंगे। वो मुल्क जिसे पाकिस्तान नहीं बनना गंवारा था और इसी वजह से उसने साल 1971 में लड़-झगड़कर, कई कुर्बानियां देकर मुक्ति वाहिनी के साथ आम लोगों संग मिलकर एक मुल्क की नींव रखी। एक ऐसा देश बनाया जहां पर चाहत थी कि सत्ता जनता की हो ना कि तानाशाहों की। लेकिन आज बांग्लादेश को देखकर यह सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान से अलग होकर भी वह पाकिस्तान बनने की तरफ कदम बढ़ा चुका है? क्योंकि बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है वो पाकिस्तान में दशकों से होता आया है। 17 नवंबर 2025 को जब पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मौत की सजा सुनाई गई तो अदालत में तालियां गूंज रही थी। आजादी के दशकों बाद बांग्लादेश उसी दलदल में फंस गया जहां सत्ता बदलते विपक्ष के नेता जेल में चले आते हैं। फांसी के तख्त पर लटक जाते हैं। वो जो पाकिस्तान में दशकों से होता आया है। आज भी हो रहा है। पाकिस्तान के सबसे पॉपुलर लीडर इमरान खान जेल की सलाखों में सड़ रहे हैं। सिर्फ इसलिए क्योंकि जो सत्ता में थे उन्हें वह पसंद नहीं थे। आज जेल में डाला गया है। अब सवाल यह है कि क्या बांग्लादेश में भी वही हो रहा है? इसमें एक डीप स्टेट वाली थ्योरी भी सामने आ रही है। शेख हसीना के रिश्ते अमेरिका से खराब हो रहे थे। अमेरिका का इन्वॉल्वमेंट की बात है। ऐसे में आज हम बांग्लादेश के हालात का एमआरआई स्कैन करेंगे।
बांग्लादेश की इंटरनैशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल (आईसीटी) ने देश की बेदखल पूर्व पीएम शेख हसीना को मानवता के खिलाफ अपराधों में फांसी की सजा सुनाई। फैसला 2024 के छात्र-नेतृत्व वाले विद्रोह पर आया, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार लगभग 1,400 लोगों की मौत हुई थी। हसीना भारत में शरण लेकर रहने लगी थीं और अदालत में पेश नहीं हुई। आईसीटी ने बार-बार तलब किया, लेकिन अनुपस्थिति के कारण उन्हें फरार आरोपी घोषित किया गया और राज्य-नियुक्त वकील से प्रतिनिधित्व कराया गया। पीड़ित परिवारो ने क्या कहा? पीड़ित परिवार फैसले से संतुष्ट हैं लेकिन कई सवाल भी उठा रहे हैं कि पुलिस प्रमुख को मात्र 5 साल क्यों? ट्रायल बहुत तेजी से क्यों हुआ? डिफेंस टीम को पर्याप्त संसाधन क्यों नहीं मिले ?
5 अगस्त 2024 छात्रों के नेतृत्व वाले व्यापक विद्रोह के बाद शेख हसीना को पीएम पद से हटाया गया, वह भारत गईं।
8 अगस्त 2024 हालात से निपटते हुए मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया।
14 अगस्त 2024 अंतरिम सरकार ने घोषणा की कि छात्र आंदोलन के दौरान हुई हत्याओं पर मुकदमा चलेगा।
17 अक्टूबर 2024 शेख हसीना और कई वरिष्ठ नेताओं सहित 46 लोगों के खिलाफ गिरफ्तारी वॉरंट जारी हुए।
फरवरी 2025 संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में विरोध प्रदर्शनों के दौरान लगभग 1,400 लोगों की मौतों का मामला सामने आया।
3 अगस्त 2025 हसीना और उनके दो सहयोगियों के खिलाफ अनुपस्थिति में मुकदमे की शुरुआत।
23 अक्टूबर 2025 मामले की सुनवाई पूरी हुई। 13 नवंबर 2025: फैसला सुनाने की तारीख 17 नवंबर तय।
17 नवंबर 2025 हसीना और पूर्व गृह मंत्री कमाल अनुपस्थिति में दोषी ठहराए गए।
शेख हसीना ये कह रही है कि उनका वर्जन नहीं सुना गया और इस वजह से ये बेईमानी है। बांग्लादेश में सजा पाने के बाद शेख हसीना के पास अभी भी कानूनी राजनीतिक ऑप्शंस हैं। जैसे कानूनी ऑप्शन ये है कि वो बांग्लादेश की ऊपरी अदालतों में चुनौती दें। सबूतों को दोबारा जांच अनफेयर ट्रायल का हवाला देकर रिव्यू करने की मांग करें। हसीना जो है वो निष्पक्ष ट्रायल ना होने को लेकर अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार संगठन कानूनी संस्थाओं में शिकायत कर सके। हसीना बार-बार कह चुकी है कि वे चाहती है कि मामला आईसीसी में ले जाया जाए लेकिन आईसीसी तभी दखल दे सकता है जब बांग्लादेश की सरकार ऐसी अनुमति दे या फिर यूएन सुरक्षा परिषद आदेश दे।
बांग्लादेश और भारत के बीच में तो एक कॉन्ट्रैक्ट हुआ है। भारत और बांग्लादेश के बीच अगर आप नहीं जानते बता दें कि 2013 में एक ट्रीटी साइन हुई थी जिसमें ये कहा गया था कि दोनों देशों के बीच अपराधियों के एक्सचेंज किए जाएंगे। किसी भी अपराधी को प्रत्यार्पित यानी यहां से वहां भेजा जाएगा। अगर कम से कम एक साल की सजा हो। आरोपी पर अरेस्ट वारंट हो और इसी आधार पर 2020 में शेख मुजीब उर रहमान की हत्या के दो दोषियों को बांग्लादेश भेजा गया था। हालांकि इसमें दो क्लॉज़ हैं। आर्टिकल सिक्स और आर्टिकल एट। अगर भारत को ये लगता है कि ये अपराधिक की जगह राजनीतिक है तो भारत मना कर सकता है।
दो सिचुएशन बन सकते हैं। एक भारत से कूटनीतिक रिश्ते थोड़े खराब हो सकते हैं। कूटनीतिक दबाव बनाएगा। बांग्लादेश या ढाका बार-बार कहेगा कि भाई भारत हमारे न्यायिक फैसले का सम्मान नहीं कर रहा। कूटनीतिक बयानबाजियां बढ़ेंगी। हालांकि रिश्ते नहीं खराब होंगे क्योंकि भारत और बांग्लादेश के बीच में व्यापार ऊर्जा सप्लाई कई चीजों पर अभी भी एक दूसरे पर निर्भरता है। दूसरा तनाव बढ़कर स्ट्रेटेजिक शिफ्ट की तरफ जा सकता है। ये खतरनाक स्थिति होगी। अगर ढाका चीन पाकिस्तान की तरफ जाता है तो ये थोड़ा चिंताजनक होगा। यूनिस जो है वह ग्रेटर बांग्लादेश मैप हाथ में लेकर खड़े दिखाई पड़े हैं। भारत के लिए सबसे सुरक्षित विकल्प शेख हसीना को किसी तीसरे देश भेजना है। इससे हसीना सुरक्षित भी रहेंगी और भारत और ढाका का सीधा टकराव नहीं होगा।