Kartik Purnima 2025: कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान, दीपदान से होंगे पुनर्जन्म के कष्ट दूर

By शुभा दुबे | Nov 04, 2025

कार्तिक पूर्णिमा के दिन महादेवजी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था। इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन यदि कृतिका नक्षत्र हो तो यह महाकार्तिकी होती है, भरणी होने से विशेष फल देती है। लेकिन रोहिणी होने पर इसका महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। मत्स्य पुराण के अनुसार इस दिन संध्या के समय मत्स्यावतार हुआ था। इस दिन गंगा स्नान के बाद दीप दान आदि का फल दस यज्ञों के समान होता है। ब्राह्मणों को विधिवत आदर भाव से निमंत्रित करके भोजन कराना चाहिए।


ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य ने इसे महापुनीत पर्व की संज्ञा दी है। इसीलिए इसमें किये हुए गंगा स्नान, दीप दान, होम, यज्ञ तथा उपासना आदि का विशेष महत्व है। इस दिन कृतिका पर चंद्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो पद्मक योग होता है, जो पुष्कर में भी दुर्लभ है। इस दिन संध्या काल में त्रिपुरोत्सव करके दीप दान करने से पुनर्जन्मादि कष्ट नहीं होता। इस तिथि में कृतिका में विश्व स्वामी का दर्शन करने से ब्राह्मण सात जन्म तक वेदपाठी और धनवान होता है। इस दिन चंद्रोदय पर शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनसूया और क्षमा− इन छह कृतिकाओं का अवश्य पूजन करना चाहिए।

इसे भी पढ़ें: गुरु नानक पूर्णिमा: अंधविश्वास और भेदभाव मिटाकर, समानता का मार्ग दिखाने वाले गुरु के उपदेश

कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि में नक्त व्रत करके वृषदान करने से शिवपद प्राप्त होता है। गाय, हाथी, घोड़ा, रथ, घी आदि का दान करने से संपत्ति बढ़ती है। इस दिन उपवास करके भगवद् स्मरण एवं चितन से अग्निष्टोम के समान फल होता है तथा सूर्य लोक की प्राप्ति होती है। इस दिन स्वर्ण के मेष दान करने से ग्रह योग के कष्टों का नाश होता है। इस दिन कन्यादान करने से संतान व्रत पूर्ण होता है। कार्तिक पूर्णिमा से आरम्भ करके प्रत्येक पूर्णिमा को रात्रि में व्रत और जागरण करने से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं।


कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा


एक बार त्रिपुर राक्षस ने एक लाख वर्ष तक प्रयागराज में घोर तप किया। इस तप के प्रभाव से समस्त जड़ चेतन, जीव तथा देवता भयभीत हो गये। देवताओं ने तप भंग करने के लिए अप्सराएं भेजीं, पर उन्हें सफलता न मिल सकी। आखिर ब्रह्माजी स्वयं उसके सामने प्रस्तुत हुए और वर मांगने का आदेश दिया। त्रिपुर ने वर में मांगा, ''न देवताओं के हाथों मरूं, न मनुष्य के हाथों।''


इस वरदान के बल पर त्रिपुर निडर होकर अत्याचार करने लगा। इतना ही नहीं, उसने कैलाश पर भी चढ़ाई कर दी। परिणामतरू महादेव तथा त्रिपुर में घमासान युद्ध छिड़ गया। अंत में शिवजी ने ब्रह्मा तथा विष्णु की सहायता से उसका संहार कर दिया। तभी से इस दिन का महत्व बहुत बढ़ गया।


इस दिन क्षीर सागर दान का अनन्त माहात्म्य है। क्षीर सागर का दान 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली छोड़कर किया जाता है। यह उत्सव दीपावली की भांति दीप जलाकर सायंकाल मनाया जाता है।


- शुभा दुबे

प्रमुख खबरें

रूसी राष्ट्रपति पुतिन का विमान भारत जाते समय दुनिया का सबसे ज़्यादा ट्रैक किया जाने वाला विमान था

Shikhar Dhawan Birthday: वो गब्बर जिसने टेस्ट डेब्यू में मचाया था तहलका, जानें शिखर धवन के करियर के अनसुने किस्से

Parliament Winter Session Day 5 Live Updates: लोकसभा में स्वास्थ्य, राष्ट्रीय सुरक्षा उपकर विधेयक पर आगे विचार और पारित करने की कार्यवाही शुरू

छत्तीसगढ़ : हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल की तबीयत बिगड़ी, अस्पताल में भर्ती