Shaurya Path: Indian Army और Indian Air Force के साहस की अमर गाथा है Battle of Badgam

By नीरज कुमार दुबे | Nov 04, 2025

भारतीय वायुसेना ने भारतीय सैन्य इतिहास के पन्नों से एक अंश साझा किया है, जिसमें याद दिलाया गया है कि कैसे स्पिटफायर, हार्वर्ड और टेम्पेस्ट लड़ाकू विमानों ने दुश्मन के ठिकानों को तबाह करके, हवाई जहाज से रसद गिराकर और देश के पक्ष में रुख मोड़कर 1947 में लड़े गए ऐतिहासिक बडगाम युद्ध में ‘‘जोरदार प्रहार’’ किया था। हम आपको बता दें कि यह प्रथम भारत-पाक युद्ध के दौरान एक महत्वपूर्ण लड़ाई थी, जो जम्मू-कश्मीर के रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बडगाम जिले में हुआ था।


वायु सेना ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘1947 में 03 नवंबर 1947 को बडगाम का युद्ध हुआ था। जब कश्मीर में अराजकता का माहौल था, भारतीय वायुसेना ने घाटी की रक्षा के लिए आसमान में उड़ान भरी थी। श्रीनगर और अमृतसर से, स्पिटफायर, हार्वर्ड और टेम्पेस्ट विमानों ने दुश्मन के ठिकानों को तबाह करके, हवाई जहाज से रसद गिराकर और रुख मोड़कर जोरदार प्रहार किया।’’ इसमें एक पोस्टर भी था, जिसके कैप्शन में लिखा था कि भारतीय वायुसेना के विमानों ने अथक आक्रामक और आपूर्ति अभियानों को अंजाम दिया, बलों और फंसे शरणार्थियों की सहायता की। हम आपको बता दें कि भारतीय वायुसेना के स्पिटफायर विमान ने श्रीनगर एयरफील्ड को दुश्मन के जबरदस्त हमले से बचाते हुए, स्थिति का रुख मोड़ दिया था। इस पोस्ट में, भारतीय सेना की स्थिति और उसके जवाब का विस्तार से वर्णन किया गया है।

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पोस्ट में कहा गया है, ‘‘बडगाम में भारतीय सैनिकों के रुख ने श्रीनगर एयरफील्ड की सुरक्षा सुनिश्चित की, जो भारतीय सेना के संचालन के लिए महत्वपूर्ण थी। यह लड़ाई साहस, बलिदान और जुझारूपन का प्रतीक है, जो संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।'' यह मोर्चा इसलिए भी विशेष था क्योंकि राजधानी श्रीनगर और वहाँ के एयरफील्ड को बचाए रखना तत्कालीन भारतीय प्रयासों की दिशा तय करने वाला था। उस समय महाराजा हरि सिंह के राज्य के भारत में विलय के बाद, कश्मीर में स्थिति अस्थिर हो गई थी। वहाँ सेलगिय आंदोलन और पाकिस्तान-समर्थित कबायलियों (लश्करों) का आगमन हुआ, जिनका उद्देश्य श्रीनगर एयरफील्ड और घाटी के मुख्य मार्गों पर नियंत्रण हासिल करना था। बडगाम क्षेत्र श्रीनगर एयरफील्ड के नजदीक था और यदि यह क्षेत्र खो जाता, तो हवाई मार्ग द्वारा सैनिकों का स्थानांतरण कठिन हो जाता।


इसको देखते हुए भारतीय सेना की 4 कुमाउं बटालियन (4 Kumaon) की कम्पनी-D को बडगाम के समीप मोर्चा संभालने के लिए भेजा गया। इसके कमांडर थे Major Somnath Sharma, जिन्हें बाद में सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीरचक्र से सम्मानित किया गया। उस समय कबायली लश्कर लगभग 1000 की संख्या में बडगाम की ओर बढ़ रहे थे। उनका उद्देश्य श्रीनगर एयरफील्ड तथा उसके आसपास के मार्गों को अवरुद्ध करना था। 3 नवंबर दोपहर के आसपास उन्होंने अचानक हमला किया, चारों ओर से कंपनी को घेर लिया गया। इस मुकाबले में IAF की विमान-सेवाएँ निर्णायक रहीं। स्पिटफायर, हारवार्ड, टैम्पेस्ट जैसे विमानों ने घेराबंदी में फंसे सैनिकों को आपूर्ति पहुंचाई तथा शत्रु के छिपे ठिकानों पर आक्रमण किया। इन वायुहमलों ने न केवल लश्कर को पीछे धकेला, बल्कि उन्हें भारी नुकसान भी पहुँचाया।


उस समय Major Somnath Sharma ने युद्ध के दौरान यही संदेश भेजा था कि “The enemies are only 50 yards from us. We are hopelessly outnumbered. I will not withdraw one inch but fight to the last man last round.” उन्होंने अपनी कंपनी को हिम्मत देकर नेतृत्व किया, अनेक बार स्वयं अग्रिम पोस्ट पर गए। अंततः उन्होंने वीर-गति प्राप्त की। युद्ध का परिणाम यह रहा कि भारतीय पक्ष ने 15-22 सैनिकों को खोया, जबकि कबायली दलों को लगभग 200 मौतें और 300 से अधिक घायल हुए। इस लड़ाई ने बडगाम और श्रीनगर एयरफील्ड को सुरक्षित रखने में अहम योगदान दिया, जिससे भारतीय सेना को घाटी में समय मिला और आगे की कार्रवाई संभव हुई। 


देखा जाये तो IAF की भूमिका इस युद्ध में केवल सहायक नहीं बल्कि निर्णायक की रही। युद्ध-भूमि पर वायु शक्ति ने फंसे हुए सैनिकों तक आपूर्ति पहुंचाई, घायल सैनिको को बचाया। साथ ही स्पिटफायर व अन्य विमानों ने लश्कर के ठिकानों को निशाना बनाया और उनकी थकावट बढ़ाई। इसके अलावा, सेना और वायुसेना के बीच समन्वय ने जमीनी मोर्चे को मजबूती दी। इस प्रकार, इस लड़ाई ने वायु शक्ति को जंग के प्रारंभिक चरण में ही एक निर्णायक माध्यम के रूप में स्थापित कर दिया।


देखा जाये तो यदि बडगाम पर कबायलियों का कब्जा हो गया होता, तो भारतीय सेना का घाटी में जो पहला जत्था पहुँचा था, वह बहुत कमजोर पड़ जाता। इस यूरोपीय स्तर की वायु-आधारित त्वरित कार्रवाई ने उस खतरे को टाला। साथ ही देश की आजादी के तुरंत बाद संपन्न यह लड़ाई यह संदेश देती है कि भारत सिर्फ रक्षा-तैयार नहीं, बल्कि सक्रिय रक्षा-नीति वाला देश है। उस युद्ध में पहली बार स्पष्ट दिखा कि एयर फोर्स युद्ध का केवल सपोर्टिंग अंग नहीं, बल्कि मोर्चा बदलने वाला रणनीतिक अंग है।


वैसे तो बडगाम की लड़ाई एक छोटा-सी लड़ाई थीं, पर उसकी गूंज बहुत दूर गई। सैनिकों और वायुसेना के जवानों ने यह दिखा दिया कि कम संख्याबल में कम होने के बावजूद दृढ़ इच्छाशक्ति, रणनीतिक जागरूकता और साहस से अभूतपूर्व विजय संभव है। आज जब हम इन घटनाओं को याद करते हैं, तो यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि वायु-शक्ति व थल-बल का सामरिक समन्वय, सुरक्षा-संवेदनशीलता और स्थिरता दृष्टि ही भारत को जटिल भू-राजनीतिक परिवेश में सक्षम बनाती है। बडगाम में दिखाए गए शौर्य और समर्पण की भावना अगले पीढ़ियों के लिए प्रेरणा-स्त्रोत बनी हुई है।


बहरहाल, आज, जब भारत के सामने सीमाई चुनौतियाँ बहुआयामी हैं। जैसे उत्तर में चीन की रणनीतिक सक्रियता, पश्चिम में आतंकवाद की निरंतरता और हिंद महासागर में भू-राजनीतिक स्पर्धा, तब बडगाम जैसी लड़ाइयाँ केवल इतिहास नहीं, बल्कि “सुरक्षा-सिद्धांत” की प्रेरणा हैं। यह युद्ध हमें सिखाता है कि राष्ट्र की रक्षा केवल शस्त्रों से नहीं, बल्कि मनोबल, समन्वय और कर्तव्यपरायणता से होती है।

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