By अनन्या मिश्रा | Aug 13, 2025
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई वीरांगनाओं ने अपने साहस और बलिदान से इतिहास के पन्नों को स्वर्णिम किया है। इनमें से एक भीकाजी कामा का नाम भी बड़े सम्मान से लिया जाता है। आज ही के दिन यानी की 13 अगस्त को भीकाजी कामा का निधन हो गया था। वह एक भारतीय राजनीतिक कार्यकर्ता और महिला अधिकारों की समर्थक थीं। उन्होंने विदेश में रहकर देशसेवा का काम जारी रखा था। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर मैडम भीकाजी रुस्तम कामा के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
मुंबई में 24 सितंबर 1861 को भीकाजी कामा का जन्म हुआ था। वह शुरूआत से ही तीव्र बुद्धिवाली और संवेदनशील थीं। भीकाजी कामा में लोगों की मदद और सेवा करने की भावना थी। साल 1885 में इनका विवाह पारसी समाज सुधारक रुस्तम जी कामा से हुआ। यह दोनों अधिवक्ता होने के साथ सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। भीकाजी कामा अपने राष्ट्र के विचारों से प्रभावित थीं और उनको यह विश्वास था कि ब्रिटिश लोग भारतीयों के साथ छल कर रहे हैं। इस कारण वह हमेशा भारत की स्वतंत्रता को लेकर चिंतित रहती थीं।
धनी परिवार में जन्म लेने के बाद भी भीकाजी कामा ने अपने सुखी जीवन वाले वातावरण को तिलांजलि दे दी। उन्होंने साम्राज्य के विरुद्ध क्रांतिकारी कार्यों से उपजे खतरों और कठिनाइयों का सामना किया। भारत में स्वाधीनता के लिए लड़ते हुए भी भीकाजी कामा ने लंबे समय तक निर्वासित जीवन बिताया था। साल 1896 में मुंबई में प्लेग रोग फैल गया, तब उन्होंने तन-मन से गरीबों की सेवा की और इस दौरान वह खुद भी इस बीमारी की चपेट में गईं। जिसके बाद साल 1902 में वह लंदन आ गईं और यहां से भी उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए काम करना जारी रखा।
बता दें कि भीकाजी कामा 33 सालों तक भारत से बाहर रहीं। इस दौरान भीकाजी कामा यूरोप के अलग-अलग देशों में घूमकर भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के पक्ष में माहौल बनाया। इस दौरान लंदन में उनकी मुलाकात वीर सावरकर, क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा और हरदयाल से हुई। लंदन में रहने के दौरान भीकाजी दादाभाई नौरोजी की निजी सचिव रहीं। समाचार पत्र 'वंदे मातरम' तथा 'तलवार' में वह अपने क्रांतिकारी विचार प्रकट करती थीं। बता दें कि आजादी से करीब 4 दशक पहले पहली बार किसी विदेशी सरजमीं पर भारत का झंडा फहराया गया था।
वहीं 22 अगस्त 1907 को भीकाजी कामा ने सातवीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में पहली बार विदेशी धरती पर तिरंगा फहराया था। बाद में उनके द्वारा तैयार किए गए ध्वज से काफी ज्यादा मिलती-जुलती डिजाइन को भारत के ध्वज के रूप में अपनाया गया था।
अपने जीवन से आखिरी दिनों में साल 1935 को भीकाजी कामा 74 साल की उम्र में भारत वापस लौटीं। वहीं 13 अगस्त 1936 को भीकाजी कामा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।