By अनन्या मिश्रा | May 20, 2025
भारत की आजादी को करीब सात दशक से ज्यादा का समय बीत चुका है। लेकिन देश को आजादी इतनी आसानी से नहीं मिली है। देश को आजाद कराने में न जाने में कितने स्वतंत्रता सेनानियों को बलिदान देना पड़ा था। ऐसे ही एक स्वतंत्रता सेनानी बिपिन चंद्र पाल थे। आज ही के दिन यानी की 20 मई को बिपिन चंद्र पाल का निधन हो गया था। उनको भारत में 'क्रांतिकारी विचारों के जनक' कहा जाता है। बिपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय औऱ बाल गंगाधर तिलक की प्रसिद्ध लाल-बाल-पाल तिकड़ी का हिस्सा थे। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर बिपिन चंद्र पाल के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और परिवार
बांग्लादेश के सिलहट जिले के पोइल गांव में 07 नवंबर 1858 को बिपिन चंद्र पाल का जन्म हुआ था। वह पेशे से पत्रकार थे और वह साप्ताहिक अखबार परिदर्शक के संस्थापक-संपादक के रूप में काम करते थे। उन्होंने आजादी के आंदोलन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए बंगाली और अंग्रेजी भाषा में ढेरों व्याखान दिए और कई सारे लेख लिखे। बिपिन चंद्र को 'बंगाल टाइगर' के तौर पर भी जाना जाता है। उनको स्वतंत्रता और मुखर विचारकों में से एक माना जाता था।
बंगाल बंटवारा
अंग्रेजों ने जब सांप्रादायिक आधार पर बंगाल का विभाजन किया, तो इस घटना से बिपिन चंद्र पाल भीतर से हिल गए थे। वहीं साल 1905 में बंगाल विभाजन के जवाब में स्वदेशी आंदोलन का जन्म हुआ। इस आंदोलन के द्वारा ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार शुरू हुआ। बता दें कि यह ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ सबसे मजबूत आंदोलनों में से एक था। इस आंदोलन के दौरान लोगों ने बड़े पैमाने पर अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार किया और विदेशी सामान जलाया।
वहीं बिपिन चंद्र पाल का मानना था कि यदि देश को राजनीतिक आजादी चाहिए, तो भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को पुनरोद्धार होना होगा। इसलिए उन्होंने भारतीयों को प्राचीन सभ्यता, परंपराओं और मूल्यों पर गर्व करने की जरूरत पर जोर दिया। उनका मानना था कि भारत के सांस्कृतिक सार को पुनर्जीवित करने से लोगों को फिर से अपनी सभ्यता पर आत्मविश्वास बढ़ सकेगा।
विधवा महिला से शादी
बता दें कि वह सामाजिक स्तर पर भी बदलाव की मांग करते थे। उन्होंने इसका खुद की जिंदगी में उदाहरण भी पेश किया था। जब उनकी पहली पत्नी का निधन हो गया, तो उन्होंने एक विधवा महिला से शादी की। जिसके बाद वह ब्रह्म समाज से जुड़ गए। उन्होंने जाति व्यवस्था की आलोचना की और लैंगिक समानता का समर्थन किया। वहीं साल 1920 में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया, हालांकि वह अपने अंतिम समय तक देश की आजादी के लिए अपनी बात रखते रहे।
मृत्यु
वहीं 20 मई 1932 को बिपिन चंद्र पाल का निधन हो गया था।