By नीरज कुमार दुबे | Sep 25, 2025
बिहार, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य हैं, जहां आगामी विधानसभा चुनाव भाजपा की रणनीति और संगठनात्मक क्षमता के लिए असली परीक्षा मैदान बनने वाले हैं। भाजपा द्वारा इन तीनों राज्यों के चुनाव प्रभारियों की घोषणा ने यह संकेत दिया है कि पार्टी सिर्फ इंतजार करने वाली नहीं है; वह सक्रिय तैयारी और सटीक रणनीति के साथ मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है।
बिहार में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को प्रभारी नियुक्त करना भाजपा के लिए एक सोचा-समझा कदम है। ओडिशा के इस अनुभवी नेता ने पहले उत्तर प्रदेश और कर्नाटक जैसे बड़े राज्यों में चुनाव प्रभार संभाला है। उनकी रणनीतिक सूझबूझ और संगठनात्मक क्षमता महागठबंधन के सामने भाजपा की चुनौती को तीव्र बना सकती है। सह-प्रभारी के रूप में केशव प्रसाद मौर्य और सी.आर. पाटिल की तैनाती इस जिम्मेदारी को और मजबूत करती है। मौर्य का उत्तर प्रदेश अनुभव और पाटिल की गुजरात राजनीति में पकड़ बिहार में स्थानीय स्तर पर पार्टी की मजबूती बढ़ा सकती है। इस संयोजन से भाजपा का संदेश साफ है— यह सिर्फ सत्ता बचाए रखने तक सीमित नहीं, बल्कि महागठबंधन को चुनौती देने के लिए पूरी ताकत के साथ मैदान में है।
पश्चिम बंगाल में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को प्रभारी और त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब देब को सह-प्रभारी बनाना भाजपा की दूरदर्शिता को दर्शाता है। भूपेंद्र यादव का संगठनात्मक अनुभव टीएमसी की मजबूत पकड़ को चुनौती देने में निर्णायक होगा। वहीं बिप्लब देब का पूर्वोत्तर अनुभव बंगाल की स्थानीय राजनीति और मतदाताओं की मानसिकता को समझने में मदद करेगा। यह नियुक्ति बताती है कि भाजपा केवल केंद्रीय नेतृत्व पर निर्भर नहीं, बल्कि स्थानीय अनुभव और रणनीति के संयोजन से बंगाल में प्रभावी खेल खेलना चाहती है।
तमिलनाडु में भाजपा ने ओडिशा से सांसद बैजयंत पांडा को प्रभारी और महाराष्ट्र से मुरलीधर मोहोल को सह-प्रभारी नियुक्त किया है। दक्षिण भारत में पार्टी का विस्तार करना आसान नहीं, लेकिन पांडा का दक्षिण भारत में नेटवर्क और मोहोल की संगठनात्मक क्षमता भाजपा को इस चुनौती से निपटने में मदद करेगी। भाजपा तमिलनाडु में AIADMK के साथ पहले ही गठबंधन कर चुकी है।
देखा जाये तो तीनों राज्यों के प्रभारी नेताओं की व्यक्तिगत खूबियां भाजपा की ताकत को और बढ़ाती हैं। धर्मेंद्र प्रधान की रणनीतिक सूझबूझ, भूपेंद्र यादव का संगठनात्मक अनुभव और बैजयंत पांडा का दक्षिण भारत में नेटवर्क पार्टी को चुनावी मोर्चे पर मजबूत स्थिति दिला सकते हैं। इसके अलावा सह-प्रभारी केशव प्रसाद मौर्य, सीआर पाटिल, बिप्लब देब और मुरलीधर मोहोल स्थानीय स्तर पर संगठनात्मक मजबूती और अभियान की गति बढ़ाने में निर्णायक भूमिका निभाएंगे।
देखा जाये तो यह स्पष्ट है कि भाजपा की यह नियुक्तियां केवल प्रतीकात्मक नहीं हैं। बिहार में सत्ता बनाए रखना, बंगाल में टीएमसी को चुनौती देना और तमिलनाडु में दक्षिण भारतीय राजनीति में प्रवेश करना, यह सब रणनीतिक सोच का परिणाम है। यदि प्रभारी नेता अपनी सूझबूझ और संगठनात्मक क्षमता का सही इस्तेमाल कर पाए, तो यह भाजपा के लिए आगामी विधानसभा चुनावों में निर्णायक साबित हो सकता है।
बहरहाल, यह नियुक्तियां भाजपा की राजनीतिक रूप से पैनी नजर और संगठनात्मक तैयारी का संकेत हैं। तीनों राज्यों में जिम्मेदारी संभालने वाले नेता अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक खूबियों और अनुभव के बल पर पार्टी को चुनावी सफलता की राह पर ले जाने में सक्षम हैं। यह सिर्फ तैयारी नहीं, बल्कि विरोधी दलों पर एक रणनीतिक हमला है, जो अगले साल के चुनावी नतीजों पर गहरा असर डाल सकता है।