जल शोधन में उपयोगी हो सकता है डीजल इंजन से निकला कार्बन

By उमाशंकर मिश्र | Feb 08, 2019

नई दिल्ली। (इंडिया साइंस वायर): वाहनों से उत्सर्जित कार्बन कण सेहत और पर्यावरण के लिए तो नुकसानदायक होते हैं। पर, अब पता चला है कि डीजल इंजन से निकली कालिख (कार्बन) का उपयोग जल शोधन के लिए भी हो सकता है। आईआईटी-मंडी के शोधकर्ताओं के अध्ययन में यह बात उभर कर आयी है। शोधकर्ताओं ने डीजल इंजन से उत्सर्जित कार्बन का उपयोग तेल और अन्य जैविक प्रदूषकों को पानी से हटाने के लिए किया है। उनका तर्क है कार्बन उत्सर्जन शून्य स्तर पर तो नहीं लाया जा सकता, पर उसका उपयोग फायदेमंद रूपों में किया जा सकता है।

 

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इस अध्ययन में डीजल इंजन से निकली कालिख को पॉलिमर के साथ मिलाकर एक खास स्पंज का निर्माण किया गया है और फिर पानी से तेल एवं अन्य जैविक पदार्थों को सोखने की उसकी क्षमता का मूल्यांकन किया गया है। किसी पूर्व उपचार के बिना इस हाइड्रोफोबिक स्पंज में विभिन्न प्रकार के तेलों को सोखने की अत्यधिक क्षमता पायी गई है।

  

इस प्रति ग्राम स्पंज की मदद से 39 ग्राम तेल का शोधन किया जा सकता है और इस स्पंज को बार-बार रिसाइकल करने के बाद भी उसकी सोखने की 95 प्रतिशत क्षमता बरकरार रहती है। इसकी मदद से मिथाइलीन ब्लू, सिप्रोफ्लोक्सासिन और डिटर्जेंट जैसे प्रदूषकों को पानी से अवशोषित कर सकते हैं।

 

इस अध्ययन से जुड़े आईआईटी-मंडी के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. राहुल वैश्य के अनुसार, “कार्बन नैनोट्यूब, ग्राफीन और मोमबत्ती से निकलने वाली कालिख समेत विभिन्न कार्बन रूपों की क्षमता को कई क्षेत्रों में उपयोगी पाया गया है। पानी से तेल के शोधन के लिए कार्बन नैनोट्यूब, फिल्टर पेपर, मेश फिल्म्स और ग्राफीन का इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह देखें तो वाहनों से ने निकली कालिख को भी इसी तरह उपयोग किया जा सकता है।”

 

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हाल के वर्षों में तेल टैंकरों या जहाजों से तेल और रासायनिक पदार्थों के रिसाव में तेजी से वृद्धि हुई है। पिछले कुछ दशकों में तेल उत्पादन और परिवहन में विस्तार के साथ औद्योगिक दुर्घटनाएं भी हुई हैं। यही कारण है कि इन हानिकारक तत्वों के शोधन के  लिए नई सामग्रियों के विकास की आवश्यकता है, ताकि विनाशकारी पर्यावरणीय परिणामों को रोका जा सके। डॉ. वैश्य के अनुसार, "तेल रिसाव के अलावा रंगों के अंश, उद्योगों तथा घरों से निकलने वाले डिटर्जेंट अवशेष जल प्रदूषण में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। ऐसे प्रदूषकों के निस्तारण के लिए इस स्पंज का उपयोग प्रभावी उपचार प्रक्रियाएं विकसित करने में किया जा सकता है।" 

 

इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में डॉ. वैश्य के अलावा विश्वेंद्र प्रताप सिंह और मूलचंद शर्मा शामिल हैं। यह अध्ययन हाल में शोध पत्रिका एन्वायरमेंटल रिसर्च ऐंड पॉल्यूशन में प्रकाशित किया गया है।

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