By अनन्या मिश्रा | Dec 03, 2025
हिंदू धर्म में भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व होता है। वहीं शिवलिंग को भी भगवान शिव का ही स्वरूप माना जाता है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक रोजाना शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने से जातक को जीवन में आने वाले सभी संकटों से मुक्ति मिलती है। वहीं घर में सुख-शांति बनी रहती है। लेकिन क्या आपके मन में कभी यह सवाल आया है कि शिवलिंग की उत्पत्ति कब और कैसे हुई। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको शिवलिंग की उत्पत्ति की कथा के बारे में बताने जा रहे हैं।
बता दें कि शिवपुराण के खंड 1 के नौवें अध्याय में शिवलिंग की उत्पत्ति का वर्णन मिलता है। पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्माजी के बीच द्वंद हो गया कि कौन अधिक शक्तिशाली है। जब यह बात हर तरफ फैल गई, तो सभी देवताओं, ऋषियों और मुनियों ने भगवान विष्णु और ब्रह्माजी को भगवान शिव के पास चलने के लिए कहा। जिसके बाद सभी देवता और विष्णुजी और ब्रह्माजी भगवान शिव के पास पहुंचे।
महादेव को पहले से इस बात की जानकारी थी कि भगवान विष्णु और ब्रह्माजी के बीच द्वंद चल रहा है। तब भगवान शिव ने देवताओं से कहा कि मेरे द्वारा उत्पन्न ज्योति के आखिरी छोर पर जो सबसे पहले पहुंचेगा। उसी को अधिक शक्तिशाली घोषित किया जाएगा। इस बात से भगवान विष्णु और ब्रह्माजी सहमत हुए। उस दौरान भगवान शिव के तेजोमय शरीर से एक ज्योत निकली। यह ज्योत पाताल और नभ की तरफ बढ़ रही थी। उसी समय भगवान विष्णु पाताल और नभ की तरफ बढ़ रही थी। उसी समय भगवान विष्णु और ब्रह्माजी ज्योत तक नहीं पहुंच पाए। वहीं भगवान विष्णु ने ज्योत तक न पहुंचने पर उन्होंने भगवान शिव से क्षमा मांगी।
तब भगवान शिव ने ब्रह्माजी से सवाल किया कि ज्योत के आखिरी छोर तक पहुंच पाए, तो ब्रह्माजी ने श्रेष्ठता की उपाधि प्राप्त करने के लिए झूठ बोला और कहा कि ज्योत की अंतिम बिंदु पाताल में है। इसके बाद महादेव ने कहा कि ब्रह्मदेव आप झूठ बोल रहे हैं। भगवान शिव ने भगवान विष्णु को श्रेष्ठ घोषित कर दिया। तब से इस ज्योत को शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है।