BJP को समाप्त करने की विचारधारा के जनक बन रहे ''रावण''

By अनुराग गुप्ता | Sep 17, 2018

भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद उर्फ 'रावण' ने जेल से रिहा होने के तुरंत बाद से ही बीजेपी के खिलाफ अपनी आवाज मुखर कर ली है। बता दें कि रावण ने कहा है कि योगी सरकार अगर मुझे रिहा नहीं करती तो उसकी छवि धूमिल हो जाती और दलितों के बीच मसीहा बनने के लिए उन्होंने ऐसा कदम उठाया था। हालांकि, सच्चाई यह नहीं है मेरे रिहा होने के लिए सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही थी और सरकार के पास मेरे खिलाफ पेश करने के लिए सबूत नहीं थे, जिसके बाद मुझे भरोसा था कि सुप्रीम कोर्ट मुझे रिहा करने का फैसला सुनाएगी।

रावण ने अलग-अलग टीवी चैनलों के माध्यम से अपनी बात रखते हुए कहा कि अगर योगी सरकार दलितों की हितैषी होती तो पिछले कई महीनों से मैं बीमार था, मेरा इलाज कराती। लेकिन, उन्होंने ऐसा नहीं किया और मैं यह बता देना चाहता हूं कि मैं अंत तक बीजेपी का विरोधी बना रहूंगा। रावण ने आगे कहा कि साल 2014 में सरकार बनाने में दलितों का बहुत बड़ा योगदान था, लेकिन 2019 में दलितों का हाथ सरकार गिराने में रहेगा। 

राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का सामना कर रहे रावण ने भीम आर्मी के बारे में बताते हुए कहा कि हम एक सामाजिक संगठन हैं, जिसका उद्देश्य दलितों को एकजुट करने का है और मैं यह बता देना चाहता हूं कि भीम आर्मी अनंत तक एक सामाजिक संगठन ही बनी रहेगी। जेल के अपने तजुर्बों को सामने रखने से हिचकिचाते हुए रावण ने कहा कि मानव जीवन जेल में नर्क के समान है। मुझे कई सारे जेल के अधिकारी मिले जिन्होंने कहा कि यहां की सुविधाओं के लिए आवाज उठाओ और मैं इस पर भी बात रखूंगा।

दलितों की नेता मायावती को लेकर जब चंद्रशेखर से संवाददाताओं ने पूछा कि आप के मैदान में आने से दलित आपस में बंट जाएंगे तो रावण ने जवाब देते हुए कहा कि दलितों के बीच तो टुकड़े तब होंगे जब मैं चुनावी मैदान में उतरूंगा, मैं तो चुनाव ही नहीं लड़ने वाला हूं। 

गौरतलब है कि जब रावण पर रासुका लगाया गया था और उस पर जातीय हिंसा को भड़काने का आरोप लगा था उस वक्त मायावती ने चंद्रशेखर को आरएसएस का एजेंट बताया था। जिसको लेकर रावण ने कहा कि बुआजी का दिमाग किसी ने बरगलाया होगा। तभी उन्होंने ऐसा कहा था और लड़ाईयां तो सभी के घरों में होती हैं ऐसे में हम घरवालों से नाराज तो नहीं हो सकते हैं। 

गठबंधन के चेहरे पर जब सवाल आया तो रावण ने कहा कि कोई दलित नेता अगर देश का प्रधानमंत्री बने इससे अच्छा हमारे लिए क्या होगा। रावण के इस बयान के बाद राजनैतिक गलियारों में इस बात के कयास लगाए जाने लगे कि भीम आर्मी बहुजन की भलाई के नाम पर अपना समर्थन बसपा को दे सकती है। लेकिन, यह उम्मीद उस समय खारिज हो गई जब मायावती ने इससे साफ-साफ इंकार कर दिया और कहा कि कुछ लोग राजनैतिक फायदे के लिए मेरे साथ जबरदस्ती रिश्ता जोड़ रहे हैं। 

इसी के साथ जब गठबंधन पर सवाल उठा तो रावण ने कहा कि सभी दल बीजेपी से पीड़ित हैं और एकजुटता से बदलाव होगा। मैं सामाजिक तौर पर काफी मजबूत हूं और चुनाव एकजुट होकर लड़ा जाएगा। हालांकि, रावण के अब-तक के बयानों को ध्यान से पढ़ा जाए तो सिर्फ यही कहा है कि हम दलितों को गुमराह होने से बचाएंगे। ऐसे में आने वाले चुनावों से पहले जो राजनैतिक रिश्ते रावण बनाने की कोशिश कर रहे हैं उससे भाजपा को फायदा मिलने वाला है।

भले ही रावण दलितों को एकजुट करने की बात कर रहे हों, मगर मायावती यह कभी भी नहीं चाहेंगी कि कोई आज का नेता उनके बराबर में आकर बैठ जाए और फिर यह लड़ाई दलितों से हटकर सत्ता की हो जाएगी। ऐसे में दलितों की आवाज रखने वाली मायावती और दलित उत्पीड़न को खत्म करने के लिए युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने वाले चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण के बीच में टकराव की स्थिति पैदा हो जाएगी। ऐसी स्थिति पैदा होने के बाद महागठबंधन पर इसका असर दिखाई देगा और भाजपा अपने दावे को वास्तविकता में बदलने पर उतारू हो जाएगी।

महागठबंधन की तरफ अगर ध्यान दें तो मायावती ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सम्मानजनक सीटें मिलने पर ही वह गठबंधन का हिस्सा बनेगी, हालांकि अखिलेश ने भी बुआजी का साथ दिया है। तभी तो उनकी तरफ से यह बयान आ गया कि अगर हमें थोड़ा पीछे हटना पड़ा तो हम हट जाएंगे और हाथी को साइकिल में बैठाकर चलेंगे। सवाल तो यह खड़ा हो रहा है कि आज के दौर में चुनावों से पहले आंदोलन कर अलग-अलग गुटों में देश की जनता को बांटने वाले युवा नेताओं ( चंद्रशेखर आजाद, हार्दिक पटेल, जिग्वेश मेवाणी, अल्पेश ठाकोर)  का भविष्य क्या है? 

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