नारी ने तो नजरिया बदल लिया पर समाज का नजरिया नहीं बदला

By डॉ. नीलम महेंद्र | Jul 20, 2018

नारी, स्त्री, महिला वनिता, चाहे जिस नाम से पुकारो नारी तो एक ही है। ईश्वर की वो रचना जिसे उसने सृजन की शक्ति दी है, ईश्वर की वो कल्पना जिसमें प्रेम त्याग सहनशीलता सेवा और करुणा जैसे भावों से भरा हृदय है।

 

जो शरीर से भले ही कोमल हो लेकिन इरादों से फौलाद है।

जो अपने जीवन में अनेक किरदारों को सफलतापूर्वक जीती है।

वो माँ के रूप में पूजनीय है,

बहन के रूप में सबसे खूबसूरत दोस्त है बेटी के रूप में घर की रौनक है,

बहु के रूप में घर की लक्ष्मी है

और पत्नी के रूप में जीवन की हमसफर।

 

पहले नारी का स्थान घर की चारदीवारी तक सीमित था लेकिन आज वो हर सीमा को चुनौती दे रही है। चाहे राजनीति का क्षेत्र हो चाहे सामाजिक, चाहे हमारी सेनाएँ हों चाहे कारपोरेट जगत, आज की नारी हर क्षेत्र में सफलता पूर्वक दस्तक देते हुए देश की तरक्की में अपना योगदान दे रही है।

 

समय के साथ नारी ने परिवार और समाज में अपनी भूमिका के बदलाव को एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया है अपनी इच्छा शक्ति के बल पर सफल भी हुई लेकिन आज वो एक अनोखी दुविधा से गुजर रही है। आज उसे अपने प्रति पुरुष अथवा समाज का ही नहीं बल्कि उसका खुद का भी नजरिया बदलने का इंतजार है।

 

क्योंकी कल तक जो नारी और पुरुष एक दूसरे के पूरक थे, जो एक होकर एक दूसरे की कमियों को पूरा करते थे, जो अपनी अपनी कमजोरियों के साथ एक दूसरे की ताकत बने हुए थे, आज एक दूसरे से बराबरी की लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन यह समझ नहीं पा रहे कि इस लड़ाई में वे एक दूसरे को नहीं बल्कि खुद को ही कमजोर और अकेला करते जा रहे हैं।

 

आधुनिक समाज में नारी स्वतंत्रता, महिला सशक्तिकरण, महिला उदारीकरण जैसे भारी भरकम शब्दों के जाल में न केवल ये दोनों ही बल्कि एक समाज के रूप में हम भी उलझ कर रह गए हैं। इन शब्दों की भीड़ में हमारे कुछ शब्द, इन कल्पनाओं में हमारी कुछ कल्पनाएँ, इन आधुनिक विचारों में हमारे कुछ मौलिक विचार कहीं खो गए।

 

इस नई शब्दावली और उसके अर्थों को समझने की कोशिश में हम अपने कुछ खूबसूरत शब्द और उनकी गहराई को भूल गए।

अपनी संस्कृति में नारी और पुरूष की उत्पत्ति के मूल "अर्धनारीश्वर" को भूल गए।

भूल गए कि शिव के अर्धनारीश्वर के रूप में शवि पुरुष का प्रतीक हैं और शक्ति नारी का।

भूल गए कि प्रकृति अपने संचालन और नव सृजन के लिए शिव और शक्ति दोनों पर ही निर्भर है।

भूल गए कि शिव और शक्ति अविभाज्य हैं।

भूल गए कि शिव जब शक्ति युक्त होता है, तो वह समर्थ होता है।

भूल गए कि शक्ति के अभाव में शिव शव समान है।

भूल गए कि शिव के बिना शक्ति और शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है।

 

क्योंकि,

 

शिव अग्नि हैं तो शक्ति उसकी लौ हैं।

शिव तप हैं तो शक्ति निश्चय।

शिव संकल्प करते हैं तो शक्ति उसे सिद्ध करती हैं।

शिव कारण हैं तो शक्ति कारक हैं।

शिव मस्तिष्क हैं तो शक्ति हृदय हैं।

शिव शरीर हैं तो शक्ति प्राण हैं।

शिव ब्रह्म हैं तो शक्ति सरस्वती हैं।

शिव विष्णु हैं तो शक्ति लक्ष्मी हैं।

शिव महादेव हैं तो शक्ति पार्वती हैं।

शिव सागर हैं तो शक्ति उसकी लहरें।

 

जब प्रकृति का अस्तित्व ही अर्धनारीश्वर में है, पुरुष और नारी दोनों ही में है तो दोनों में अपने अपने अस्तित्व की लड़ाई व्यर्थ है। इसलिए नारी गरिमा के लिए लड़ने वाली नारी यह समझ ले कि उसकी गरिमा पुरुष के सामने खड़े होने में नहीं उसके बराबर खड़े होने में है। उसकी जीत पुरुष से लड़ने में नहीं उसका साथ देने में है। इसी प्रकार नारी को कमजोर मानने वाला पुरुष यह समझे कि उसका पौरुष महिला को अपने पीछे रखने में नहीं अपने बराबर रखने में है। उसका मान नारी को अपमान नहीं सम्मान देने में है। उसकी महानता नारी को अबला मानने में नहीं उसे सम्बल देने में है। इसी प्रकार नारी को एक संघर्षपूर्ण जीवन देने वाले समाज के रूप में हम सभी समझें कि नारी न सिर्फ हमारे परिवार की या समाज की बल्कि वो सृष्टि की जीवन धारा को जीवित रखने वाली नींव है।

 

-डॉ. नीलम महेंद्र

प्रमुख खबरें

Vastu Tips: घर की नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने के लिए रोजाना करें ये काम, घर आएगी सुख-समृद्धि

Shaniwar Vrat Vidhi: इस दिन से शुरू करना चाहिए शनिवार का व्रत, शनि की ढैय्या और साढ़ेसाती से मिलेगी मुक्ति

चार करोड़ रुपये से अधिक कीमत वाले घरों की बिक्री मार्च तिमाही में 10 प्रतिशत बढ़ीः CBRE

Chhattisgarh : ED ने चावल घोटाले में मार्कफेड के पूर्व MD Manoj Soni को किया गिरफ्तार