जल, जमीन और पैसा, साउथ एशिया को भारत से दूर करने की प्लानिंग में लगा चीन, 3 पड़ोसी देशों में कर दिया बड़ा खेल

By अभिनय आकाश | Mar 30, 2024

नई दिल्ली को दक्षिण एशिया में अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यहाँ एक छद्म वॉर चल रहा है। भारत और चीन के बीच लड़ाई। शी जिनपिंग अपने मिशन को छुपाने के लिए कई पैंतरें आजमा रहे हैं। वो साउथ एशिया को भारत से दूर करना चाहते हैं। लेकिन क्या वो अपने इस मिशन में सफल हो रहे हैं। हम भारत के तीन पड़ोसी देश मालदीव, श्रीलंका और नेपाल की बात करेंगे। सबसे पहले मालदीव से शुरू करते हैं। मालदीव की सरकार ने घोषणा की है कि चीन ने माले को 1,500 टन पीने का पानी भेजा है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि मालदीव को पीने का पानी उपलब्ध कराने का निर्णय चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के अध्यक्ष यान जिनहाई की मालदीव की आधिकारिक यात्रा के दौरान किया गया, जहां उन्होंने पिछले नवंबर में राष्ट्रपति डॉ मोहम्मद मुइज्जू से मुलाकात की थी। 

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जब भारत ने चलाया था ऑपरेशन नीर

अब इसकी आधिकारिक घोषणा कर दी गई है। समाचार पोर्टल Edition.mv ने मंत्रालय की एक घोषणा के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि 1,500 टन पीने के पानी की खेप देश में लाई गई है। यह चीन की ओर से नवीनतम सहायता है जिसने मालदीव को कई मोर्चों पर मदद करने का वादा किया है, खासकर जब से चीन समर्थक मोहम्मद मुइज्जू ने नवंबर 2023 में राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला है। मालदीव में कोई भी स्थाई नदी या जलधारा नहीं है। इससे यहां स्वभाविक तौर पर पीने का पानी नहीं मिलता। राजधानी में लोग इसके लिए वाटर ट्रीटमेंट प्लांट्स पर निर्भर हैं। साल 2014 में मालदीव भीषण जल संकट का सामना कर रहा था। 1.5 लाख लोग पीने के पानी को तरसते नजर आ रहे थे तो भारत मदद के लिए सामने आया था। भारत ने ऑपरेशन नीर चलाते हुए पांच बड़े प्लेनों के जरिए 2700 टन पानी मालदीव को पहुंचाया था। लेकिन अब मालदीव में सरकार बदल चुकी है और मुइज्जू चीन की गोद में बैठे नजर आ रहे हैं। ऐसा नहीं है कि 2014 में चीन ने मालदीव को पानी पहुंचाने में मदद नहीं की थी। बीजिंग ने उस वक्त करीब 1 हजार टन पानी माले भेजी थी। लेकिन वक्त और हालात अब पूरी तरह से बदल चुके हैं। 

प्लानिंग के साथ एडवांस में की गई एग्रीमेंट 

2014 मालदीव के लिए संकट का दौर था और उसे सभी प्रकार के मदद की आवश्यकता थी। मालदीव सरकार ने भारत के अलावा श्रीलंका, चीन और अमेरिका से भी मदद मांगी थी। लेकिन इस बार खेल जरा अलग है। ये पूरी प्लानिंग के साथ और एडवांस में की गई एग्रीमेंट सरीखा है। ये मुइज्जू के एजेंडे में फिट भी बैठता है। वो  चाहते हैं कि मालदीव हेल्थ, केयर, मिलिट्री जरूरतें, लोन और इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर भारत से परे देखे। लेकिन सवाल यह है कि क्या पानी में कोई अंतर होना चाहिए। लॉजिकली हां, मालदीव से चीन की दूरी भारत की अपेक्षा लगभग दोगुनी है। इसलिए शिपिंग टाइम और लागत भी काफी अधिक रहा होगा। लेकिन क्या इस बात को मुइज्जू नहीं जानते थे? या फिर उन्हें भारत विरोध में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। 

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श्रीलंका में एक और 'हंबनटोटा' बनाने की तैयारी

अब भारत के दूसरे पड़ोसी देश श्रीलंका की ओर रुख करते हैं। श्रीलंका के प्रधानमंत्री इस हफ्ते चीन में थे। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात भी की। जिनपिंग ने श्रीलंका की राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक प्रगति के प्रयासों के लिए प्रधानमंत्री दिनेश गुणावर्द्धने को लगातार सहयोग का आश्वासन दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि श्रीलंका की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को बचाने के लिए बीजिंग खड़ा रहेगा। चीन के राष्ट्रपति ने श्रीलंका की राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक प्रगति के प्रयासों में चीन के निरंतर समर्थन का आश्वासन दिया। चीनी राष्ट्रपति ने कहा कि चीन हमेशा श्रीलंका की स्वतंत्रता, क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की रक्षा के लिए खड़ा रहेगा। सबसे बड़ा सवाल की कोलंबो को इस यात्रा से क्या मिला? कर्ज को लेकर राहत। चीन श्रीलंका का सबसे बड़ा द्विपक्षीय कर्जदाता है। 2023 तक श्रीलंका के ऊपर चीन का करीब 7 बिलियन का ऋण दर्ज था। श्रीलंका आईएमएफ के दरवाजे पर राहत के लिए पहुंचा। लेकिन आईएमएफ ने चीन के कर्ज की रीस्ट्रक्चरिंग करने की शर्त रख दी। श्रीलंका के पीएम गनवार्डेना ने प्रधानमंत्री ली के साथ बातचीत की, जिसके दौरान चीनी नेता ने कोलंबो की कर्ज पुनर्गठन प्रक्रिया में बीजिंग के समर्थन का आश्वासन दिया। हालांकि चीन ने आधिकारिक तौर पर इस तरह का कोई सार्वजनिक ऐलान अभी तक नहीं किया है। इसके अलावा चीन ने श्रीलंका के रणनीतिक गहरे बंदरगाह और कोलंबो एयरपोर्ट को विकसित करने का वादा किया है। चीन पहले से ही हंबनटोटा पोर्ट को 99 साल के पट्टे पर ले रखा है। अब बीजिंग इसका विस्तार करना चाहता है। श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति उसे हिंद महासागर में एक रणनीतिक महत्व देती है और इसी वजह से चीन उसपर नजर बनाए हुए है। चीन ने पहले श्रीलंका को कर्ज के जाल में फंसाया और अब धीरे-धीरे वहां की संपत्तियों को निगलने की साजिश में लग गया।

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BRI परियोजना में तेजी लाएगा नेपाल

अब भारत के ऐसे पड़ोसी देश की बात करेंगे जिसके साथ हमारा रोटी-बेटी का संबंध कहा जाता है। नेपाल के उपप्रधानमंत्री एवं विदेश मंत्री नारायण काजी श्रेष्ठ पद संभालने के बाद अपनी पहली आधिकारिक यात्रा पर चीन गए। इस दौरान उन्होंने अपने चीनी समकक्ष वांग यी के साथ बातचीत की। कहा जा रहा है कि दोनों देशों के बीच चीन के महत्वकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को लेकर चर्चा हुई। नेपाल ने बीआरआई पर 2017 में साइन किया। चीनी राष्‍ट्रपति की साल 2019 में हुई नेपाल यात्रा के दौरान 20 द्विपक्षीय समझौतों पर हस्‍ताक्षर हुआ था। वांग यी ने कहा था कि चीन सीमा पार रेलवे प्रॉजेक्‍ट के व्यवहार्यता अध्‍ययन पर ठोस प्रगति करेगा, ट्रांस हिमालय कनेक्‍टविटी नेटवर्क को सुधारेगा और नेपाल की परेशानियों को दूर करके उसका सपना पूरा करने में मदद करेगा। नेपाल ने बैठक के दौरान दोनों देशों ने बीआरआई के कार्यान्वयन योजना पर बहुत जल्द हस्ताक्षर करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। नेपाली अधिकारी के हवाले से कहा कि बीआरआई कार्यान्वयन योजना पर हस्ताक्षर करने में हमारी देरी के कारण चीन के साथ चीजें अटकी हुई हैं। कहा जा रहा है कि मई 2024 में इस पर हस्ताक्षर भी हो जाएंगे। नेपाल स्वयं में एक छोटा राष्ट्र है जो एक तरफ भारत तथा दूसरी तरफ चीन से घिरा हुआ है। चूंकि भारत एवं चीन मौलिक रूप से एक दूसरे के परस्पर विरोधी साबित हुए हैं, इसके चलते आधुनिक समय में नेपाल के अंदर किसी भी प्रकार की अस्थिरता उत्पन्न होने की प्रबल संभावना बनी होती है। समय के साथ, चीन की गतिविधियां नेपाल के अंदर बढ़ती ही जा रही है। 


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