विश्व स्वास्थ्य संगठन को अपनी छवि पर लगे दाग धोने ही होंगे

By डॉ. सत्यवान सौरभ | May 22, 2020

महामारी को लेकर अमेरिका, चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के बीच चल रही जुबानी जंग में हर रोज कुछ न कुछ नया शामिल जो जाता है। इस लड़ाई को आगे बढ़ाते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रमुख को एक चेतावनी भरा पत्र लिखा, लेकिन इसका जवाब उन्हें चीन की तरफ से मिला। चीनी विदेश मंत्रालय ने ट्रंप के पत्र को ‘संकेतों, शायद, किंतु-परंतु’ से भरा हुआ बताया और यह भी कहा कि अमेरिका जनता को गुमराह करने के लिए इस तरह के हथकंडे अपना रहा है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने डोनाल्ड ट्रंप के पत्र पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘अमेरिका अपनी जिम्मेदारी को सीमित करने और विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रति अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों पर सौदेबाजी के लिए चीन को मुद्दा बना रहा है लेकिन अमेरिका ने गलत लक्ष्य चुना है।'


कोरोना महामारी ने अमेरिका में काफी कहर बरपाया है। 90,000 से अधिक मौतों और 14 लाख से अधिक संक्रमित मरीजों के साथ यूएस कोरोना वायरस का केंद्र बिंदु बन गया है। अमेरिका के इस हाल के लिए राष्ट्रपति ट्रंप चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन को कुसूरवार ठहरा रहे हैं। उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन की फंडिंग भी फिलहाल रोक दी है। इसी मुद्दे पर डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रमुख को पत्र भी लिखा है, जिसमें चीन पर भी निशाना साधा गया है पर चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि ट्रंप प्रशासन एंटी-वायरस बनाने के चीन के प्रयासों को नष्ट करने की दिशा में काम कर रहा है और कोरोना से निपटने में अपनी नाकामी छिपाने के लिए उस पर दोष लगा रहा है।

 

इसे भी पढ़ें: महामारी के प्रकोप के बीच ही उत्तर प्रदेश में भाजपा ने शुरू की पंचायत चुनावों की तैयारी

डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस एडहोम को लिखे पत्र में स्पष्ट किया है कि यदि 30 दिनों में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी कार्यप्रणाली में सुधार नहीं किया, तो अमेरिका की ओर से उसे मिलने वाली फंडिंग स्थायी रूप से बंद कर दी जाएगी। पत्र में आगे लिखा है, ‘यह साफ है कि महामारी से निपटने में आपके और आपके संगठन द्वारा बार-बार गलत कदम उठाये गए, जिसका खामियाजा पूरी दुनिया को उठाना पड़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका यह है कि वह चीन से अपनी स्वतंत्रता साबित करे।'


विश्व स्वास्थ्य संगठन पर सबसे बड़ा आरोप यही लगा है कि उसने जानते-बूझते दुनिया को कोरोना महामारी के बारे में पहले से सचेत नहीं किया और इसी का नतीजा रहा कि लगभग सभी देश इस महामारी की चपेट में आ गए और बचाव के लिए पहले से कोई तैयारी नहीं कर पाए। आरोप यह भी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ऐसा चीन के दबाव में किया पर जो हो, अब जांच होगी और हकीकत सामने आएगी, इसकी उम्मीद की जानी चाहिए लेकिन अब बड़ा सवाल यह है कि यह जांच कितनी कठिन होगी? कौन इस में सक्रिय तौर पर भाग लेगा और कौन परदे के पीछे से? हालाँकि  यह किसी से छिपा नहीं है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की घेराबंदी दुनिया के दो ताकतवर मुल्कों की लड़ाई का नतीजा है। चीन और अमेरका के बीच अरसे से व्यापार को लेकर जिस तरह से ठनी हुई है, उसे लेकर दोनों देश किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। अमेरिका का मकसद विश्व स्वास्थ्य संगठन के जरिये चीन को घेरने का है।


इस समय दुनिया के जिम्मेदार राष्ट्रों को दो देशों की राजनीति और तनातनी से अलग हट कर ऐसे प्रयास करने होंगे जिससे विश्व स्वास्थ्य संगठन के ऊपर कोई आंच न आए। विश्व स्वास्थ्य संगठन एक विवेकशील संस्था है, जिसका काम दुनिया के सभी देशों खासकर विकासशील और गरीब देशों को बुनियादी सेवाओं से जुड़े अभियानों में मदद करना है। लेकिन यह संस्था जिस तरह विवादों में आ गई है, उससे सबसे बड़ी मुश्किल यह खड़ी होगी कि अब इस संस्था को अधिकांश देश संदेह की नजर से देखेंगे। ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जांच कराने का फैसला कर सही कदम उठाया है।

 

इसे भी पढ़ें: कोरोना के बढ़ते आंकड़े चिंताजनक जरूर हैं, मगर अब इसके साथ ही जीना होगा

इस समय भारत पर एक बड़ी जिम्मेदारी है, वह भी उस समय, जब हालात विषम हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन के इतिहास में विवादास्पद दौर चल रहा है। इस समय प्रतिकूल राजनीतिक व कूटनीतिक परिस्थितियों का सामना भारत को करना होगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि अमेरिका और चीन एक-दूसरे पर जमकर निशाना साधेंगे। ऐसा फिलहाल दो मुद्दों को लेकर हो रहा है। पहला मुद्दा विश्व स्वास्थ्य संगठन में ताइवान की भागीदारी से जुड़ा है, जबकि दूसरा है- संगठन द्वारा कोविड-19 से निपटने के तौर-तरीकों पर अमेरिकी ऐतराज और चीन का समर्थन।


अमेरिका व कुछ यूरोपीय देश ताइवान को पर्यवेक्षक देश का दर्जा देने की पुरजोर वकालत कर रहे हैं, लेकिन चीन इसका विरोध कर रहा है, क्योंकि मौजूदा ताइवानी सरकार ‘एक चीन' के सिद्धांत को स्वीकार नहीं करती है। चूंकि इस महामारी से मानवता खतरे में है, इसलिए राजनीति को इससे अलग रखने की वकालत भारत को करनी होगी और उसे ऐसा कोई रास्ता ढूंढ़ना होगा कि ताइवान डब्ल्यूएचओ की बैठक में शामिल होता रहे। यह काम रचनात्मक कूटनीति से ही संभव है और भारत को इसमें अगुवा की भूमिका निभानी होगी। वह चीन व ताइवान और इन दोनों के समर्थक देशों से लचीला रुख अपनाने की गुजारिश कर सकता है।


सवाल यह भी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोविड-19 से निपटने में बरती गई लापरवाही और चीन के दावों की गंभीरता से जांच न करने संबंधी विवाद पर भारत को क्या रुख अपनाना चाहिए? संगठन और उसके प्रमुख टेड्रोस को निश्चय ही कोविड-19 के खिलाफ चीन के प्रयासों की तारीफ नहीं करनी चाहिए थी। एक पेशेवर संगठन से इस तरह की अपेक्षा नहीं की जाती। एक मत तो यह है ही कि चीन ने सही समय पर दुनिया को इसके बारे में नहीं बताया। संभव है कि वह संजीदगी दिखाता, तो कोरोना की तबाही शायद रोकी जा सकती थी।


इसी के कारण अमेरिका और चीन के रिश्ते काफी तनावपूर्ण हो गए हैं, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बीजिंग पर गैर-जिम्मेदाराना रवैया अपनाने और वायरस के बारे में सच छिपाने का आरोप लगाया है। ट्रंप ने डब्ल्यूएचओ को भी चीन की कठपुतली बनने पर घेरा है और अमेरिका द्वारा उसे दी जाने वाली सभी वित्तीय मदद रोक दी है। यह कोई अच्छा फैसला नहीं है। लिहाजा भारत की चुनौती यह भी है कि वह इस समस्या से कैसे निपटेगा?


अच्छा होगा कि भारत स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा इस पूरे मामले की जांच करने संबंधी प्रस्ताव पर आम सहमति बनाए। इन विशेषज्ञों को यह पता करना चाहिए कि संगठन ने अपनी योग्यता के मुताबिक काम किया या वह वाकई किसी से प्रभावित हो गया। यह देखते हुए कि अमेरिका और चीन ने इसे अपने राष्ट्रीय सम्मान का विषय बना लिया है, स्वतंत्र जांच के लिए इन दोनों देशों को राजी करना आसान काम नहीं है। मगर भारतीय कूटनीति की असली परीक्षा तो इसी में होगी।

 

इसे भी पढ़ें: क्या है एक देश-एक राशन कार्ड योजना और इससे किसको कैसे मिलेगा फायदा?

हालांकि भारत चीन से मेल खाने वाली आबादी के साथ दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा देश है और बड़ी अर्थव्यवस्था होने के कारण अपने पड़ोस के पुनर्निर्माण में एक केंद्रीय भूमिका लेने के लिए अनुकूल है। इस समय अमेरिका के हित में भी यही है कि वह चीन के लिए भारतीय चुनौती को सक्षम करे। भारत को अब अपने नफा-नुकसान का अच्छे से आकलन कर कोई कदम आगे बढ़ाना होगा क्योंकि यही वो समय है जो भारत का भविष्य तय करेगा।


-डॉo सत्यवान सौरभ

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी

(कवि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार)

 

प्रमुख खबरें

SRH vs LSG: लखनऊ के खिलाफ सनराइजर्स हैदराबाद ने 58 गेंदों में चेज किया 166 रनों का टारगेट, ट्रेविस हेड और अभिषेक शर्मा की बेहतरीन पारी

Aurangabad और Osmanabad का नाम बदलने पर अदालत के फैसले का मुख्यमंत्री Shinde ने किया स्वागत

तीन साल में पहली बार घरेलू प्रतियोगिता में भाग लेंगे Neeraj Chopra, Bhubaneswar में होगा आयोजन

Israel ने Gaza में मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए एक अहम क्रॉसिंग को फिर से खोला